ब्रिटेन का यूरोपीय यूनियन से बाहर होना, अमरीका द्वारा आव्रजन नियमों को कठोर बनाना, व्यापार पर शुल्क संबंधी प्रतिबंध लगाना, कुछ व्यापार समझौतों को रद्द करना आदि ऐसे परिवर्तन हैं जो विश्व को तेजी से गैर उदारीकरण की ओर धकेल रहे हैं। अमरीका ने फिलहाल चीन, यूरोपीय यूनियन, कनाडा और भारत के खिलाफ व्यापारिक युद्ध छेड़ रखा है।
दरअसल दुनिया के विकसित राष्ट्र कुछ संरक्षणवादी नीतियां अपना रहे हैं। वैश्वीकरण के लाभों का असमान वितरण, बढ़ती असमानता और कम होते रोजगार अवसर इन्हीं नीतियों का परिणाम है। इसके अलावा आइएसआइएस के उदय और सुरक्षा के लिए खतरा बने आतंकवाद के चलते भी आव्रजन कम हुआ है। पिछले कुछ समय से उदारीकरण पर हमले जारी हैं। कभी उदारीकरण में आगे रहा अमरीका हमलों में सबसे आगे है। राष्ट्रपति ट्रंप ने आयात शुल्क बढ़ाकर इसकी शुरुआत कर दी है। यह प्रचार और किया जा रहा है कि उदारीकरण की दौड़ में कई लोग पिछड़ गए।
अहम सवाल यह है कि जब उदारीकरण से कई देशों में समृद्धि आई है और गरीबी घटी है तो फिर गैर उदारीकरण के युग को क्यों आमंत्रित किया जा रहा है? यूनिसेफ के आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक आय का 83 प्रतिशत अंश दुनिया की सर्वाधिक अमीर 20 फीसदी आबादी को मिलता है जबकि गरीब को मात्र एक प्रतिशत। जरूरत है कि बजाय उदारीकरण का विरोध करने के विकासशील देशों में बढ़ रही असमानता की खाई को पाटा जाए। उदारीकरण से मिलने वाले लाभ ज्यादा गहन और अधिक कुशल वैश्विक बाजार से सम्बद्ध हैं।
आम तौर पर व्यापार युद्ध का विजेता कोई होता ही नहीं है। यह युद्ध विश्व की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच है, जिससे महंगाई बढऩे, रोजगार के अवसर कम होने व निवेश में कमी आने की आशंका है। भारत भी महाशक्तियों के व्यापार युद्ध के प्रभावों से अछूता नहीं रहेगा। अर्थशास्त्री इस घटनाक्रम को विश्व स्तरीय मंदी को आमंत्रित करने वाला बता रहे हैं।