राय पिथौरा किला, महरौली, सिरीफोर्ट, तुगलकाबाद, फिरोजशाह कोटला, पुराना किला, लाल किला! एक के बाद एक शहर उजड़ते और बसते रहे। सैकड़ों बार उजडऩे के बाद भी दिल्ली, दिल्ली ही रही।
दिल्ली रंग, रोशनी और विविधतापूर्ण संस्कृतियों का एक समृद्ध शहर है। इसका हर रंग कुछ कहता है, हर रोशनी हमारा हाथ पकड़कर हमें दूर तक ले जाती है, और संस्कृतियां एक ऐसे समय का दीदार कराती हैं जो इतिहास के सारे बंद पड़े दरवाजों को एक-एक करके खोल देता है। इसीलिए कहा गया है कि दिल्ली को देखने के लिए समय की हथेली को देखना पड़ता है।
देखा जाए तो दिल्ली का समूचा इतिहास ही समय की खूबसूरत बानगी है। हम जिस समय में प्रवेश करते हैं दिल्ली जर्रा-जर्रा हमें बिल्कुल वैसी ही आज भी दिखाई देती है। इसीलिए लुटियंस की दिल्ली लुटियंस की होते हुए भी कभी एक टुकड़ा गालिब तो एक टुकड़ा मीर की हो जाती है। यह शहर जितना खूबसूरत रहा है, उससे भी कहीं ज्यादा खुरदुरा है। दिल्ली की पीठ पर समय के कई ऐसे निशान हैं जो गुजरे हुए वक्त की दास्तां बयां करते हैं। इतिहास की महानतम कही जाने वाली कई लड़ाइयां इसी की पीठ पर लड़ी और जीती गई हैं।
हर बार रौंदे जाने, हर युद्ध के बाद, दुबारा तख्तो-ताज भी दिल्ली के ही माथे पर चढ़ा है। समय की न जाने कितनी परते हैं? इतिहास के न जाने कितने पन्ने? 735 ईसवी से शुरू होकर 2020 तक के समय के हर रंग और हर रोशनी को खुद में समेटे दिल्ली का विस्तृत फलक आंखों से शुरू होकर सिर्फ आंखों तक में ही नहीं खत्म हो जाता है। दिल्ली का आकर्षण आंतरिक है, लंबे समय से चली आ रही एक तरह की व्यावहारिकता है। इसके वर्तमान को जानने के लिए इसका अतीत जानना जरूरी हो जाता है। सही मायने में दिल्ली एक शहर नहीं, बल्कि शहरों का शहर है। इसका वर्तमान स्वरूप सात शहरों से बनता है जो अलग-अलग समयकाल में अलग-अलग शासकों ने बसाए थे। हर नया शहर बसने के साथ इसके पुराने शहर की रौनक खोई नहीं। सैकड़ों बार उजडऩे और बसने के बावजूद दिल्ली ने समय के हर रंग, हर रोशनी को खुद में समेटकर रखा जो आगे चलकर सभ्यता और संस्कृति का मूल आधार बनीं।
अगर हम अवलोकन करें तो सेकंड सिटी ऑफ दिल्ली बनने के साथ ही फस्र्ट सिटी ऑफ दिल्ली की रौनक खो जानी चाहिए थी। इसी तरह थर्ड सिटी ऑफ दिल्ली बनने के साथ सेकंड सिटी ऑफ दिल्ली की। लेकिन ऐसा कहां हुआ? राय पिथौरा किला, महरौली, सिरीफोर्ट, तुगलकाबाद, फिरोजशाह कोटला, पुराना किला, लाल किला! एक के बाद एक शहर उजड़ते और बसते रहे। सैकड़ों बार उजडऩे के बाद भी दिल्ली, दिल्ली ही रही। नाम बदले, पर पहचान नहीं बदली और यह अपना समृद्ध इतिहास लिखने में कामयाब रही।