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ट्रैवलॉग अपनी दुनिया : बेमिसाल मरिंडा ताल में स्नो लेपर्ड का रोमांच

3970 मीटर की ऊंचाई पर मरिंडा ताल पहुंचा, तब थककर चूर था। ठंडे पानी में मैंने पैर डुबोए तो पूरे बदन में सिहरन दौड़ गई। बावजूद इसके कि यहां तक पहुंचने के दौरान मैं पसीने से तर था। यही पहाड़ों का असल जादू होता है।

नई दिल्लीSep 24, 2020 / 02:52 pm

shailendra tiwari

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ओसला से जब मैं चला था तब शुरुआती 3-4 किमी. में ही थककर पस्त हो गया था। इससे पहले दिन मैं तकरीबन 18 किलो सामान के साथ 14 किमी. पैदल चला था, लिहाजा कलकत्तेधार की चढ़ाई ने ही मुझे तोड़ दिया था। कलकत्तेधार की चढ़ाई चढऩे से पहले 58 साल के चंदराम ने मुझ से कहा था – यहां समय मत खराब कीजिए, आगे अंधेरे में जंगल पार करना मुश्किल हो जाएगा। तेंदुए और भालू सामने पड़ सकते हैं, लिहाजा चलना शुरू कर दीजिए।

चंदराम वो शख्स था जिसे हर की दून में वन विभाग के रेस्ट हाउस में हमारे लिए व्यवस्थाएं करनी थीं। चंदराम के साथ उसका जवान बेटा भी था, जो शाम तक मेरे साथ ही चलता रहा, जबकि चंदराम न जाने कब हमें पीछे-बहुत पीछे छोड़कर हर की दून की ओर बढ़ चुका था। चार किमी. की चढ़ाई वाले कलकत्तेधार को पार करने में मुझे तकरीबन डेढ़ घंटा लग गया। रास्ते में जगह-जगह गिरी हुई बर्फ चलने में मुश्किल पैदा कर रही थी। जब मैं हर की दून पहुंचा तो वहां चंदराम ने खाना तैयार कर दिया था। तब रात गहरा चुकी थी और मुझे पहाडिय़ों और बर्फीली सुपिन नदी का आभास भर हो पाया था, नजारों के लिए अगली सुबह का इंतजार था।

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Gourav Naudiyal IMAGE CREDIT:
अगली सुबह जब मैं जागा तो हिमालय के इतने करीब मैंने खुद को कभी नहीं पाया था। बर्फ से लक-दक चोटियों पर सूरज की किरणें बिखर रही थीं। ऊंचे पहाड़ों, घने जंगलों और हिमालयी नदियों को लांघकर जब मैं 3970 मीटर की ऊंचाई पर मरिंडा ताल पहुंचा, तब थककर चूर था। ठंडे पानी में मैंने पैर डुबोए तो पूरे बदन में सिहरन दौड़ गई। बावजूद इसके कि यहां तक पहुंचने के दौरान मैं पसीने से तर था। यही पहाड़ों का असल जादू होता है। चारों ओर नजर दौड़ाई। मैं जानता था कि आगे बढऩे पर दो दिन तक पैदल चलने के बाद सीधे हिमाचल के छितकुल पहुंच जाऊंगा। खैर, मेरी मंजिल मरिंडा ताल ही थी।

ये फूलों का मौसम नहीं था, लिहाजा मुझे थोड़ी मायूसी मिली। हर की दून गर्मियों और सर्दियों, दोनों मौसम में एक मुफीद ट्रैक है। मैं रुइनसारा लेक जाना चाहता था, लेकिन वहां जाने का मतलब कच्ची बर्फ पर चलकर मौत को दावत देना था, लिहाजा मैंने मरिंडा ताल का रुख किया। मरिंडा ताल पहुंचने में मुझे दो घंटे का वक्त लगा। बेमिसाल मरिंडा ताल के आस-पास मुझे स्नो लेपर्ड के पगमार्क नजर आए तो मैं रोमांचित हो उठा। निगाहें घंटों तक स्नो लेपर्ड को तलाशती रहीं। स्नो लेपर्ड काफी शर्मीले होते हैं। खैर, अब तक मैं करीब 32 किमी. पैदल चल चुका था। अब वापसी की तैयारी थी।

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