खूबसूरती में बेमिसाल तुरतुक गांव
वाकई तुरतुक अपने आप में कुदरत की सौगात है, वहां उसकी अपनी रूह के लिए पहुंचना चाहिए, ना कि स्विट्जरलैंड याद करने के लिए।
Published: June 28, 2022 07:56:16 pm
तृप्ति पांडेय
पर्यटन और संस्कृति विशेषज्ञ मैंने कभी इस गांव के बारे में न पढ़ा था और न ही सुना था। अपनी लद्दाख की दूसरी यात्रा के दौरान नूब्रा में पड़ाव के दौरान मैंने अपने गाइड से कहा कि कोई ऐसी जगह ले जाए, जो उन जगहों में शामिल न हो, जहां आमतौर पर पर्यटक जाते हैं। गाइड बोला कि वह मुझे एक ऐसे गांव ले जा सकता है, जिसकी सुंदरता स्विट्जरलैंड को भी टक्कर देती है और वहां बहुत कम ही लोग जाते है और विदेशियों को तो वहां जाने के लिए अनुमति लेनी होती है। खैर, गाइड साहब ने तो स्विट्जरलैंड नहीं देखा था, पर उनका विश्वास गजब का था। यह जानने के बाद भी कि यात्रा में आठ घंटे आने-जाने में लगेंगे, मेरा यायावर मन वहां जाने का निर्णय ले चुका था। हम बहुत सवेरे ही निकल पड़े। रास्ता ऊबड़-खाबड़ भी था, पर बेहद खूबसूरत। जब हरियाली, बड़े पेड़ और नीचे तैरते बादल दूर से अचानक नजर आते, तो गाइड चुप्पी तोड़ कर पूछता, क्यों मैडम, है ना हमारा तुरतुक स्विट्जरलैंड से ज्यादा खूबसूरत? अचानक हरियाली से घिरा वह गांव भी आ जाता है।
इस छोटे से गांव का थोड़ा इधर, थोड़ा उधर होने का इतिहास हमें सन् उन्नीस सौ इकहत्तर के दिसम्बर महीने में ले जाता है, जब आठ से चौदह तारीख़ तक तुरतुक का वह युद्ध लड़ा गया था, जिसमें भारतीय सेना ने तुरतुक के इधर वाले हिस्से को अपने अधिकार में वापस ले लिया था, पर आधा हिस्सा अब भी पाक अधिकृत कश्मीर में है। तुरतुक बाल्टिस्तान क्षेत्र में है, जो कभी एक स्वतंत्र राज्य हुआ करता था। वहां अलग जनजातियों और वंशों ने राज किया, जिनमें से प्रमुख रहा यागबू जो मध्य एशिया से आया और लगभग एक हजार साल तक राज किया।
गौरतलब है कि एक समय में ये पूरा इलाका सिल्क रूट का महत्त्वपूर्ण हिस्सा और बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र हुआ करता था। इस्लाम यहां ईरान के सूफी प्रचारक सैयद अली शाह हमदानी के साथ आया। आज भी यहां के कई लोग नूरबकशिया संप्रदाय से जुड़े हैं, जबकि शिया और सुन्नी विचारधारा के कारण परिवर्तन उन्नीसवीं सदी से हुआ। अठारह सौ चौंतीस मैं महाराजा गुलाब सिंह ने इसे अपने अधिकार में लिया।
इतना सब इतिहास कुछ गाइड से तो तुरतुक के राजा याबगोमोहम्मद खान काचो से जाना। राजा तो कभी हुआ करते थे, पर अब वो उस पूर्व राज परिवार के वशंज हैं, जिसने कभी शान-शौकत से भरपूर समय देखा था। उनका निवास जो नाम भर के लिए राजमहल कहलाता है और वही हाल उनके संग्रहालय का है। हां, उस तीन सौ के करीब घर और चार हजार की आबादी वाले गांव में उनका घर ऊंचाई पर है, बस उतनी से शान जो दिखती है। बाकी उनकी बोली और आंखों से झलकती है, जो गुजरे जमाने की दास्तां सुना रही थीं।
मैं वहां के छोटे बच्चों के गोरे चेहरे और उनकी भूरी आंखें अब भी नहीं भूल पाती। इन्हीं दिनों की बात थी, जब मैं वहां गई थी। चूंकि कुछ साल बीत गए और महामारी कोविड की मार भी रही, तो सोचा कि राजा जी के बारे में लिखने से पहले उनके हाल तो जान लूं। नेट पर बड़ी तलाश के बाद में जिसका नंबर हाथ में आया वह बोला कि 'मैडम राजा तो सोशल मीडिया ने बना रखा है, वैसे वे ठीक हैंÓ। जिस आदमी से बात हुई, उसका जन्म भारत के तुरतुक गांव में उन्नीस सौ चौरासी में हुआ था। इसलिए उसे यह सब कहानी लगती होगी, पर भले ही मीडिया ने ही बनाया हो, वह राजा तो हैं ही। वाकई तुरतुक अपने आप में कुदरत की सौगात है, वहां उसकी अपनी रूह के लिए पहुंचना चाहिए, ना कि स्विट्जरलैंड याद करने के लिए।

खूबसूरती में बेमिसाल तुरतुक गांव
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