देखने में आ रहा है कि पूरे प्रदेश में जांचों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अच्छी बात है कि हर बीमारी की जांच हो, पर साधनों का दुरुपयोग किसी भी कीमत पर न हो। यदि हम उदाहरण के लिए राजस्थान के सिर्फ उदयपुर के आरएनटी मेडिकल कॉलेज को ही लें तो मार्च माह में कुल जांचों की संख्या 2,97,854 थी, जो अप्रेल माह में 3,84,343 हो गई। मई में ये जांचें बढ़कर 5 लाख से अधिक हो गईं। लगभग यही हाल राजस्थान के सभी जिलों व मेडिकल कॉलेजों का है। जांच करवाने से पहले हर उस व्यक्ति को ये देखना होगा कि यदि किसी सामान्य जांच से काम चल सकता है तो फिर किसी बड़ी जांच को बेवजह क्यों करवाया जाए। जैसे एमआरआइ हो या सिटी स्कैन, ऐसी जांचें करवाने से पहले देखना होगा कि एक्स-रे से काम चल रहा हो तो इन जांचों को करवाने से क्या फायदा है। ये भी ध्यान रहे कि एक्स-रे सहित कई जांचें शरीर के लिए बहुत घातक हैं। चिकित्सकों को अपने अनुभव के आधार पर निर्णय लेना चाहिए कि बेवजह की जांचों को नजरअंदाज करना ही ठीक रहता है। इसका अर्थ यह नहीं है कि संदेह होने पर जांच न करवाई जाए। कुल मिलाकर मरीज को भी लाभ मिले व सरकारी संसाधनों का भी दुरुपयोग न हो। ध्यान रहे कि सरकारी संसाधन आम आदमी के चुकाए गए टैक्स से ही उपलब्ध हो रहे हैं। यह किफायत से खर्च किया जाए, यह जिम्मेदारी आम आदमी के साथ चिकित्सा पेशे से जुड़े हर शख्स की है। सरकार ने तो पहल कर दी है अब बारी आपकी, हम सबकी है। (सं.पु.)