अगर उनसे कहो कि आज कटरीना, पादुकोण और सोनाक्षी जैसी सुन्दरियां हंै तो वे तुरंत नरगिस, मधुबाला और वैजन्ती माला का नख सिख वर्णन करने लगेंगे। आप कहो कि हमारे पास सलमान है तो वे तत्काल धर्मेन्द्र का नाम ले बैठेंगे। लेकिन साठवें पड़ाव पर आकर लगता है कि उनकी बात में दम है।
हालांकि यह बात कहते हुए गर्व होता है कि देश-दुनिया में जितना नाटकीय बदलाव हमने देखा है उतना चिपांजी से आदमी बनी किसी भी पीढ़ी ने नहीं देखा होगा। बचपन में कल्पना भी नहीं थी कि फ्रीज, मोबाइल, टीवी, कंप्यूटर,कार, बाइक जैसी चीजें इतनी आम हो जाएंगी।
इन्टरनेट और ई-मेल की तो कल्पना तक नहीं की थी। किशोरावस्था में सुनते थे कि करेन्सी मशीन से निकलती है तो हैरत से मुंह खुला का खुला रह जाता था। लेकिन आज दुनिया कितनी बदल गई है। एक दिन पुराने मित्र ने एक दिलचस्प संदेश भेजा और उसे पढ़ कर हम अतीत के सपनों में खो गए। उस संदेश को आप भी मुलाहिजा फरमाइएगा।
मित्र ने लिखा कि वे भी क्या दिन थे- जब घड़ी हजारों में से एकआध के पास होती थी लेकिन समय सबके पास होता था। तब बोलचाल में प्राय: हिन्दी का ही प्रयोग होता था और अंग्रेजी तो बहकने के बाद बोली जाती थी। तब समाज के लोग भूखे उठते थे लेकिन सोते भूखे नहीं थे।
अगर किसी को पता चल जाता कि उसका पड़ोसी भूखा है तो उसे खाना खिलाए बगैर वह भी नहीं खाता था। रही फिल्मों की बात तो तब की हीरोइनों को मेहनताना बेशक कम मिलता था पर वे कपड़े सलीके से पहना करती थी।
आज की तारिकाओं को जितने ज्यादा पैसे मिल रहे हैं उतनी ही तेजी से उनके कपड़े सिमटते जा रहे हैं। तब लोग साइकिलों पर चलते थे जो चार रोटी में चालीस का एवरेज देती थी चिटी-पत्री डाकिया लाता था उनमें भाषा वर्तिनी की अशुद्धियां हो सकती थी लेकिन भाव शुद्ध होते थे।
शादी में घर की औरतें खाना बनाती और बाहर की औरतें नाचती थीं अब घर वाली नाचती है और बाहर की औरतें खाना बनाती हैं। पहले खाना घर में खाया जाता था तो गाय, कुत्ते और मंगतों का भी पेट भरता था अब घर में मूसे फाका करते हैं और लोग-लुगाई होटल में खा आते हैं। ऎसी एक नहीं हजार बातें हैं जो तब और अब का भेद बताती है। आप भी सोचिए बड़ा मजा आएगा। – राही