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यूएस-मैक्सिको सीमा: काफी नहीं होगा ट्रंप युग की अधूरी दीवार को गिरा देना

locationनई दिल्लीPublished: Mar 02, 2021 08:02:42 am

– असल में सीमाएं कभी भी तय नहीं की जा सकतीं। सीमा को अनंतिम और तरल रूप में देखने से ‘हमÓ और ‘वोÓ के बीच अंतर को कम करने में मदद मिल सकती है।

यूएस-मैक्सिको सीमा: काफी नहीं होगा ट्रंप युग की अधूरी दीवार को गिरा देना

यूएस-मैक्सिको सीमा: काफी नहीं होगा ट्रंप युग की अधूरी दीवार को गिरा देना

डेनियल ग्रांट

यूएस-मैक्सिको सीमा पर ट्रंप प्रशासन का दीवार बनाने का मुद्दा एक बार फिर अमरीकी राजनीति के केंद्र में है। पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने जब पद छोड़ा था, तब तक केवल 450 मील दीवार बनाई जा सकी थी। पन्द्रह बिलियन डॉलर की इस परियोजना में 7३8 मील लंबी दीवार बनाई जानी थी। नए बाइडन प्रशासन ने शरण चाहने वालों के प्रति ज्यादा ‘मानवीय नीति’ की जरूरत का हवाला देते हुए आगे दीवार न बनाने का फैसला किया है। आगामी कुछ महीने राष्ट्रपति जो बाइडन के बॉर्डर एजेंडे के मुश्किल परीक्षण के हो सकते हैं। पूरी दीवार बनेगी या नहीं, यह देखा जाना बाकी है। एक्टिविस्टों ने दीवार और उस कानून को खत्म करने के लिए बाइडन पर दबाव बना रखा है, जिनकी बदौलत इसका काम शुरू हो सका। दीवार को ढहाना आवश्यक रूप से पहला कदम है, पर इतना पर्याप्त नहीं है। दीवार की प्रतीकात्मकता मैक्सिको के लोगों या उनकी संस्कृति से घृणा तक सीमित नहीं है। यह उस मौलिक धारणा को भी दर्शाती है कि अंतरराष्ट्रीय सीमा का निर्धारण स्थायी होता है। एक ऐसी मान्यता, जो दीवार ढहा दिए जाने के बाद भी बनी रहेगी।

1889 में अमरीका और मैक्सिको, दोनों देशों की सरकारों ने सीमाई मुद्दे निपटाने के लिए अंतरराष्ट्रीय सीमा और जल आयोग का गठन किया था। इसके बाद 75 वर्षों तक आयोग ने 247 से अधिक बार नदियों की धारा बदलने के बारे में अपना फैसला दिया और दोनों देश सीमाएं फिर से तय करने को मजबूर हुए। 1924 में एक अमरीकी कानून के तहत नदियां पार करना जब मुश्किल हो गया तो मैक्सिको से आने वाले प्रवासियों के खिलाफ अमरीकी नस्लवाद की घटनाएं बढ़ीं। ऐसे मूल निवासियों, जिनके पूवर्जों के घर नई सीमा के जरिए दो भागों में बंट गए थे, को सीमा प्रवर्तन ने अपनी ही जमीन पर प्रवासी बना दिया था।

1970 की संधि के तहत सैद्धांतिक रूप से नदियों के कारण होने वाले सभी सीमा विवादों को सुलझा लिया गया, लेकिन वास्तव में नदियों की रेत के कारण सीमा विवाद अभी बना हुआ है और पर्यावरणीय बदलावों के चलते यह अतिसंवेदनशील भी है।

संक्षेप में, यही कहा जा सकता है कि असल में सीमाएं कभी भी तय नहीं की जा सकतीं। सीमा को अनंतिम और तरल रूप में देखने से ‘हम’ और ‘वो’ के बीच अंतर को कम करने में मदद मिल सकती है। आज दीवार अधूरी और संवेग रहित हो सकती है, जो ट्रंप युग का एक अधूरा अवशेष है। लेकिन इसका भूत अभी भी सरहदों पर मंडराता रहता है।
द वाशिंगटन पोस्ट
(प्रव्रजन व मानविकी में एंड्रयू डब्ल्यू. मेलन पोस्ट-डॉक्टरल फेलो, महिंद्रा ह्यूमैनिटीज सेंटर, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी )

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