‘डेफर्ड एक्शन फॉर चाइल्डहुड अराइवल्स’ (डीएसीए) जैसी आव्रजन नीति के बावजूद आज भी अमरीका को सभी जाति, धर्मों और नस्लीय भेद से परे बहुसंस्कृतिवाद का पर्याय माना जाता है। ‘डीएसीए’ अमरीका पहुंचने वाले बाल आव्रजकों पर लागू होने वाला वही नियम है, जिसके बारे में ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान काफी बातचीत की। उस वक्त उन्होंने यह भी कहा था कि मैक्सिको सीमा पर ‘बड़ी दीवार’ खड़ी की जाएगी। विश्व स्तर पर इन घटनाक्रमों को लेकर अच्छा-खासा बवाल मचा था।
अमरीका से अवांछित आव्रजकों को निकालने के लिए मार्च 2018 तक का समय निर्धारित किया गया था, लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप को इस मामले में डेमोक्रेट्स और कभी-कभार रिपब्लिकन सांसदों का ही साथ नहीं मिला। संसदीय कार्यवाही और बहस के दौरान उनके भाषणों में यह दर्द साफ झलकता था। ट्रंप ने कई बार ट्वीट किया – ‘चूंकि डेमोक्रेट्स नहीं चाहते कि कोई दीवार खड़ी की जाए, इसीलिए देश में अपराध, गंदगी और नशे की प्रवृत्ति ने घर कर लिया है।’
2012 में राष्ट्रपति ओबामा ने अल्पायु और बिना कागजात वाले आव्रजकों को तुरंत निर्वासन से बचाने के लिए ‘डीएसीए’ कार्यक्रम की शुरुआत की थी। यह काफी उदारतावादी नियम था। इसके तहत करीब आठ लाख युवाओं को अमरीका में रहने की अनुमति दी गई, जिन्हें ‘ड्रीमर’ कहा गया।
ट्रंप अक्सर ‘सीमा सुरक्षा’ के महत्त्व को रेखांकित करते हैं। ११ सितंबर और शू बॉम्बर जैसी घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में ट्रंप की यह चिंता जायज प्रतीत होती है। आव्रजकों के कुछ समूहों द्वारा अपनाए गए कट्टरपंथ ने अमरीका की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा पैदा किया है। राष्ट्रपति ट्रंप मूलत: ‘शृंखलाबद्ध आव्रजन’ के खिलाफ हैं, जिसके तहत आव्रजकों के परिवार भी वहां बस जाते हैं। जबकि ट्रंप के अनुसार, आव्रजक माता-पिता या भाई-बहनों की अमरीका में बसने के लिए मदद नहीं कर सकते हैं।
साउथ एशियन अमेरिकंस लीडिंग टुगेदर (साल्ट) की सुमन रंगनाथन के अनुसार, चूंकि ट्रंप ने ‘डीएसीए’ कार्यक्रम समाप्त कर दिया है, इसलिए करीब 17,000 भारतीयों पर तुरंत अमरीका से निर्वासन की तलवार लटक रही है। इससे भारतीयों सहित कई दक्षिण एशियाई युवा प्रभावित होंगे। ट्रंप ने भारतीयों के लिए एच1बी वीजा हासिल करना भी कठिन कर दिया है। यदि अमरीका खास तौर पर भारत के लिए ऐसा रुख अपनाता है तो इसे अमरीका का भारत के प्रति दुर्भावनापूर्ण रवैया माना जाएगा।
एच1बी वीजा के नए नियम के अनुसार, एच1बी वीजा धारी कर्मचारी तीसरी पार्टी के किसी खास व्यवसाय में कोई न कोई काम कर सकता है। एच1बी वीजा पूर्णत: इस वजह से अस्तित्व में है कि अमरीका में उच्च स्तरीय कुशल पेशेवरों की कमी है और यह वीजा इस कमी को पूरा करता है। हालांकि भारत-अमरीका संबंध इस वजह से थोड़े तनावपूर्ण हुए हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कूटनीतिक प्रयासों के चलते दोनों लोकतांत्रिक देश इस वक्त साथ खड़े दिखाई देते हैं। भारत सरकार का कहना है कि एच1बी वीजा में कोई खास बदलाव नहीं हुए हैं और सरकार घटनाक्रम पर पूरी तरह नजर रखे हुए है ताकि भारतीय तकनीकी पेशेवरों के हितों पर कुठाराघात न हो।
अमरीका की व्यापारिक संरक्षणवाद की नीति ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उथल-पुथल मचा रखी है। अमरीका ने पहले यूरोप और चीन पर एलुमिनियम और इस्पात के व्यापार पर शुल्क लगाया और अब हाल ही चीन से आयात पर 200 अरब डॉलर के शुल्क की घोषणा कर दी। इससे तो लगता है कि अमरीका को चीन के साथ व्यापारिक संतुलन बहाल करने में कई वर्ष लग जाएंगे। चीन ने अमरीका के इस कदम को गंभीरता से लेते हुए मध्य-पश्चिमी अमरीका में ट्रंप के निर्वाचन क्षेत्र के किसानों और कामगारों के हितों को प्रभावित करने की बात कही है। इस तनाव के चलते चीनी मुद्रा युआन का अवमूल्यन हुआ और शंघाई स्टॉक एक्सचेंज दो साल के निम्नतम स्तर पर आ गया।
अमेरिकन चैम्बर ऑफ कॉमर्स के वक्तव्यों से स्पष्ट है कि अमरीकी उद्योगपति अपने देश की संरक्षणवाद की व्यापार रणनीति के पक्ष में नहीं हैं। देखना होगा कि ट्रंप अमरीकी विदेश नीति के लिए किस तरह बीच का रास्ता निकालते हैं।