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टीकाकरण से होगा जंग का खात्मा

मानव प्रजाति की रक्षा के लिए अगर वैक्सीन का निर्माण है तो यह सराहनीय कदम होगा। लेकिन इससे पहले इस बात की भी चिंता करनी होगी कि कहीं कोरोना जैसे वायरस का पहले जैविक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर बाद में व्यावसायिक हितों के उद्देश्य से उसकी वैक्सीन बाजार में उपलब्ध कराने का कुचक्र शुरू न हो जाए।

Apr 07, 2020 / 06:49 pm

Prashant Jha

टीकाकरण से होगा जंग का खात्मा

डॉ. जगदीश प्रसाद
आज मानव प्रजाति पर बड़ा खतरा आया है। कोरोना वायरस के टीके बनाने में जुटे देशों को इस दिशा मेें सक्रियता दिखानी होगी ताकि ये कोरोना से जंग में हथियार बन सकें। कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते खतरों के बीच अब सुरक्षा उपायों पर विचार करना बहुत जरूरी हो गया है ताकि इसकी रोकथाम के प्रयास शुरू हो सकें। बीमारी पर काबू करने पर ही देश-दुनिया में जनजीवन सामान्य होने की उम्मीद की जा सकती है। यह संतोष की बात है कि कोरोना के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए अमरीका ही नहीं बल्कि दुनिया भर में कोरोना वायरस से बचाव के लिए टीका बनाने का प्रयास हो रहा है। रूस, चीन और दक्षिण कोरिया भी इन प्रयासों में जुटे हैं।

चीन ने इस क्लीनिकल ट्रायल के लिए कुल 108 लोगों को चुना था। स्वेच्छा से परीक्षण के लिए आगे आने वाले इन लोगों में से 14 ने वैक्सीन के परीक्षण की अवधि पूरी कर ली है। 14 दिनों तक क्वारेंटाइन में रहने के बाद अब वे अपने-अपने घर भेज दिए गए हैं। इस वैक्सीन को चीन में सबसे बड़ी बायो-वॉरफेयर साइंटिस्ट चेन वी और उनकी टीम ने बनाया है। जिन 14 लोगों को घर भेजा गया है। अब उन्हें छह महीने तक चिकित्सकीय निगरानी में रखा जाएगा। हर दिन उनका मेडिकल टेस्ट होगा। इन 6 महीनों में यह देखा जाएगा कि अगर इन्हें कोरोना वायरस संक्रमण होता है तो इनका शरीर कैसी प्रतिक्रिया देता है। जैसे ही उनके शरीर में कोरोना वायरस से लडऩे की क्षमता विकसित हो जाएगी यानी उनके शरीर में एंटीबॉडी बन जाएगा, उनके खून का सैंपल लेकर वैक्सीन को बाजार में उतार दिया जाएगा।

अमरीका में भी कोरोना वायरस के टीके का परीक्षण शुरू हुआ और 45 लोगों को शामिल किया गया। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी टीके के परीक्षण को लेकर उत्साहित नजर आए। इतना ही नहीं ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक भी दो संभावित कोरोना वायरस के वैक्सीन को लेकर टेस्ट शुरू कर चुके हैं।

ऑस्ट्रेलिया के कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑर्गेनाइजेेशन (सीएसआईआरओ) का कहना है कि यह परीक्षण पहला पूरी तरह से जानवरों पर आजमाया गया प्री-क्लिनिकल ट्रायल होगा। पहला वेक्टर वैक्सीन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की ओर से विकसित किया गया है। इसमें कोरोना वायरस के प्रोटीन को इम्युन सिस्टम में डालने के लिए डिएक्टिव वायरस का इस्तेमाल किया जाता है और फिर इससे होने वाले प्रभावों परीक्षण किया जाता है। वे दूसरे वैक्सीन के बारे में भी बताते हैं जिसे अमरीकी कंपनी इनोविओ फर्मास्युटिकल्स ने तैयार किया है। यह वैक्सीन थोड़ा अलग तरीके से काम करता है। यह इस तरह से तैयार किया गया है कि यह इम्युन सिस्टम में कोरोना वायरस के कुछ प्रोटीन को इनकोड करता है और फिर शरीर की कोशिकाओं को उन प्रोटीन को पैदा करने के लिए उत्प्रेरित करता है। अगर नतीजे सही आते हैं तो वैक्सीन को क्लीनिकल परीक्षण के लिए भेजा जा सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और अमरीकी कंपनी इनोविओ फार्मास्युटिकल्स के बनाए वैक्सीन का जानवरों पर सफल परीक्षण किया जा चुका है। अगर ये वैक्सीन इंसानों पर परीक्षण में सफल पाए जाते हैं तो ऑस्ट्रेलिया की साइंस एजेंसी इसका आगे मूल्यांकन करेगी। पिछले महीने अमरीका में पहली बार इंसानों पर वैक्सीन का परीक्षण किया जा चुका है लेकिन उस वक्त जानवरों पर परीक्षण करने वाला चरण छोड़ दिया गया था।

कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए वैक्सीन के पहले मानव ट्रायल की शुरुआत अमरीका के सिएटल में की गई है। अमरीका के नेशनल हेल्थ इंस्टीट्यूट (एनआईएच) की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि इस ट्रायल को 18 से 55 वर्ष के 45 स्वस्थ वालंटियरों पर अंजाम दिया जाएगा। कोरोना वायरस की वैक्सीन के बारे में बताते हुए अमरीकी राष्ट्रपति ने कहा भी कि मुझे यह बताते हुए बेहद खुशी हो रही है कि कोरोना वायरस से लडऩे की दिशा में काम शुरू हो गया है। यह इतिहास में सबसे तेज वैक्सीन तैयार करने की दिशा में एक कदम उठाया गया है। हम एंटी वायरल थेरेपी और अन्य उपचार विकसित करने के लिए भी तेजी से कोशिश कर रहे हैं। हमारे पास कुछ आशाजनक शुरुआती परिणाम हैं।

फ्रांस की दिग्गज दवा कंपनी सनोफी और अमरीका की रीजॅनरान ने कोविड-19 से संक्रमित मरीजों पर नई दवा के क्लीनिकल ट्रायल की शुरुआत कर दी है। इटली कोरोना वायरस के प्रकोप से सबसे अधिक प्रभावित देशों में शामिल है। कोरोना के टीके को विकसित करने में जुटे सभी शोधकर्ताओं ने पूरी दुनिया से इस दिशा में मिलने वाले सहयोग की प्रशंसा की है। भारत के लिए राहत की खबर है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवाई का वृहत स्तर पर भारत में उत्पादन होता है और यह मलेरिया के उपचार में काम आती है। यह दवा कोरोना वायरस की रोकथाम में कारगर सिद्व हुई है।

मानव प्रजाति की रक्षा के लिए अगर वैक्सीन का निर्माण है तो यह सराहनीय कदम होगा। लेकिन इससे पहले इस बात की भी चिंता करनी होगी कि कहीं कोरोना जैसे वायरस का पहले जैविक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर बाद में व्यावसायिक हितों के उद्देश्य से उसकी वैक्सीन बाजार में उपलब्ध कराने का कुचक्र शुरू न हो जाए। पहले बीमारी पैदा करना और बाद में मुनाफे के लिए बाजार में वैक्सीन उपलब्ध कराने का कारोबार मानवता के खिलाफ षडयंत्र ही होगा। आज मानव प्रजाति पर बड़ा खतरा आया है। कोरोना वायरस के टीके बनाने में जुटे देशों को इस दिशा मेें सक्रियता दिखानी होगी ताकि ये कोरोना से जंग में हथियार बन सकें।

पूर्व वेटेनरी ऑफिसर एवं राजस्थान राज्य सेवा के अधिकारी

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