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दंगों को मोहरा क्यों?

1984 में दिल्ली-पंजाब में हुए दंगे तो राहुल को याद होंगे ही। देश ने
इंदिरा गांधी के रूप में एक सशक्त राजनेता को खोया था, तो राहुल ने अपनी
दादी को। लेकिन उसके बाद देश भर में सिखों पर हुए हमले के समय किसकी
सरकारें थीं?

Apr 01, 2016 / 11:06 pm

शंकर शर्मा

Opinion news

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लगता है कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को देश में हुए दंगों के इतिहास की जानकारी नहीं है। या फिर जानकारी होते हुए भी वे झूठ बोल रहे हैं। असम की एक चुनावी सभा में भाजपा पर आरोप लगाते हुए राहुल कह गए कि जहां भाजपा आती है, वहां हिंसा भड़कती है। बीते दो-तीन सालों में जिन भी राज्यों में हिंसा भड़की, वहां भाजपा का शासन है कहां? उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में दंगे हुए तो वहां समाजवादी पार्टी का शासन रहा है।

पश्चिम बंगाल में हिंसा भड़की तो वहां तृणमूल कांग्रेस का शासन चल रहा है। देश के नेताओं में यह फैशन चल निकला है कि बात हिंसा की हो या भ्रष्टाचार की, प्रतिद्वंद्वी पर हमला बोल दो। राहुल गांधी को समझना चाहिए कि इस देश ने आजादी के बाद से अब तक जितने दंगे देखे हैं उस दौरान अलग-अलग राजनीतिक दलों की सरकारें रही हैं। दंगे कांग्रेस के शासन में भी खूब हुए तो भाजपा शासन में भी।

समाजवादी पार्टी के शासन में भी हो रहे हैं और तृणमूल कांग्रेस के राज में भी। राहुल को शायद याद नहीं होगा कि 1969 और 1985 में जब गुजरात दंगों की आग में झुलसा तो वहां कांग्रेस की सरकारें ही थीं और इन दंगों में सात सौ से अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी। 1980 में उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद और 1987 में जब मेरठ दंगों की आग में झुलसा था तो वहां कांग्रेस की सरकार ही सत्ता में थी। उत्तर प्रदेश के इन दो दंगों में भी 750 लोगों को जिंदगी से हाथ धोना पड़ा था। 1992 के मुम्बई दंगे के समय भी कांग्रेस सरकार थी। सन् 2002 में जब गुजरात में मारकाट मची तो वहां भाजपा की सरकार थी।

यहां सवाल ये महत्वपूर्ण नहीं कि किसके राज में कितने दंगे हुए। सवाल ये मायने रखता है कि कौन-सा राजनीतिक दल दंगों की आग में रोटी नहीं सेंकता। 1984 में दिल्ली-पंजाब में हुए दंगे तो राहुल को याद होंगे ही। उस समय देश ने इंदिरा गांधी के रूप में एक सशक्त राजनेता को खोया था, तो राहुल ने अपनी दादी को। लेकिन उसके बाद देश भर में सिखों पर हुए हमले के समय किसकी सरकारें थीं?

और इन दंगों को रोकने के लिए उन्होंने क्या किया? आजादी के बाद हुए कुल साम्प्रदायिक दंगों में जितने लोगों की मौत नहीं हुई उससे ज्यादा मौतें 1984 के सिख विरोधी दंगों में हुईं। राहुल राजनेता हैं सो राजनीति करने का उन्हें पूरा हक है। लेकिन कुछ बोलने से पहले उसके बारे में जानकारी हासिल कर लिया करें तो ये उनके लिए भी अच्छा होगा और कांग्रेस तथा देश के लिए भी। साम्प्रदायिक दंगे देश के माथे पर वह काला दाग है जिसे हर राजनीतिक दल को मिलकर साफ करना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य देश का, कि हर राजनेता दंगों की आड़ में भी राजनीति करने से बाज नहीं आता। बिना ये सोचे-समझे कि उसके बयान से माहौल फिर बिगड़ सकता है।

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