घटना की जांच होगी। रिपोर्ट आने में शायद बरसों लग जाएं। लेकिन एक बात बिलकुल स्पष्ट है कि इस घटना के पीछे न दो समुदायों की वैमनस्यता थी और न किसी तरह की सांप्रदायिकता। कारण दो ही थे, प्रशासनिक अदूरदर्शिता और राजनीतिक निष्क्रियता। प्रशासनिक अदूरदर्शिता इसलिए कि शहर के ज्यादातर संवेदनशील माने जाने वाले इलाकों को प्रशासन ने भगवान भरोसे छोड़ रखा है। न सफाई और मरम्मत जैसे कार्यों पर ध्यान और न कानून-व्यवस्था बनाए रखने की कोई तैयारी। अतिक्रमण, आवारा पशुओं, गदंगी और टूटी-फूटी सडक़ों से यह क्षेत्र ही नहीं, चारदीवारी के भीतर का पूरा जयपुर त्रस्त है, पर जयपुर विकास प्राधिकरण, नगर निगम जैसी किसी भी संस्था को यहां झांकने की फुर्सत नहीं है।
कल की घटना की जड़ में भी अतिक्रमण और *****्त-व्यस्त यातायात व्यवस्था थी, जिसे पुलिस का एक मात्र सिपाही अपने तरीके से ‘ठीक करने’ की कोशिश कर रहा था। उसकी इसी कोशिश से कहासुनी शुरू हुई, फिर मामला नेताविहीन उन्मादी भीड़ के हाथ में पहुंच गया और अंजाम सबके सामने है। एक मौत हो चुकी है और पुलिसकर्मियों और नागरिकों सहित कई लोग घायल हुए हैं। सरकारी निष्क्रियता की पराकाष्ठा यह कि शनिवार सुबह तक शीर्ष पदों से कहीं भी न शांति की अपील सुनाई पड़ी न संवेदना के स्वर। सांसद और विधायक तो क्या पार्षद तक घटना के समय समझाइश को नहीं पहुंचे। जो पहुंंचे वे दूसरे दिन। प्रशासनिक अधिकारियों ने भी पूरी रात कोई सुध नहीं ली। सिर्फ पुलिस आयुक्त भागदौड़ करते नजर आए।
आश्चर्यजनक तथ्य यह सामने आ रहा है कि रामगंज जैसे संवेदनशील क्षेत्र से हमेशा तैनात रहने वाला दंगा नियंत्रण बल भी हटाया जा चुका है। थाने में किसी को भी उग्र भीड़ को काबू करने का प्रशिक्षण हासिल नहीं था। ऐसे मामलों में प्राय: पहले पानी की तेज धार छोड़ी जाती है या हल्का लाठी चार्ज किया जाता है। पर यहां तो दंगा निरोधी दस्ता ही नहीं था। इसे प्रशासनिक लापरवाही की पराकाष्ठा ही कहा जाएगा। वरिष्ठ राजनेता चैन की नींद सो रहे थे। रात भर सब मनमाने तरीके से चलता रहा न किसी ने बीच-बचाव की कोशिश की और न समझाइश की।
कहते हैं जब रोम जल रहा था, तब नीरो बंसी बजा रहा था। हमारे नेता और अफसर इसी तरह नीरो के नक्शे कदम पर चलते रहे तो एक क्षेत्र से शुरू हुई लपटों को दावानल बनने में देर नहीं लगेगी।