मानसपटल से कैसे हट पाएगा असंसदीय व्यवहार
Published: Jul 28, 2022 10:14:09 pm
- सामयिक: सदन में सांसद और विधायक जिस भाषा का इस्तेमाल करते हैं, उससे तय होता है समाज में बहस का स्तर
- जनप्रतिनिधियों का दायित्व है कि उनकी चर्चा न केवल बहस की गुणवत्ता बल्कि विधायी संस्थाओं का गौरव भी बढ़ाए


प्रतीकात्मक चित्र
चक्षु राय
प्रमुख, आउटरीच पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च, नई दिल्ली मृदुला राघवन
प्रोग्राम मैनेजर, आउटरीच टीम, पीआरएस मानसून सत्र शुरू होने से एक सप्ताह पहले असंसदीय शब्दों के इस्तेमाल को लेकर बहस छिड़ गई। संसदीय सचिवालय ने असंसदीय अभिव्यक्ति वाले शब्दों की नई सूची जारी की, जिसे लेकर विवाद उठा कि कहीं इससे हमारे सांसदों व विधायकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित तो नहीं हो जाएगी। सूची में ऐसे शब्द और वाक्यांश शामिल किए गए हैं, जिन्हें संसद और विधायिकाओं के पीठासीन अधिकारी पूर्व में असंसदीय घोषित कर चुके हैं। सूची जारी होने के अगले ही दिन लोकसभा स्पीकर ने स्पष्टीकरण जारी कर बताया कि इन शब्दों पर प्रतिबंध नहीं लगाया गया है; और सचिवालय से जारी शब्द-संग्रह उन शब्दों का संकलन है, जिन्हें पिछली विधायी कार्यवाहियों में से हटाया जा चुका है।