आज कोविड-19 को लेकर जितनी दहशत है, वास्तव में चिकित्सा तंत्र को भी इसके ऐसी भयावहता की सपने में भी कल्पना नहीं थी। मरीजों को ऑक्सीजन बेड की जरूरत है। देश के उपलब्ध ऑक्सीजन सिलेंडर के अनुपात में कोरोनावायरस संक्रमित व्यक्तियों की संख्या अचानक ही लगभग 10 गुना बढ़ गई है। अपने सीमित संसाधनों के कारण रेमडेसिविर इंजेक्शन से लेकर ऑक्सीजन सिलेंडर तक की भारी किल्लत बनी हुई है। इससे चिकित्सा तंत्र की कमजोरी का पता चलता है। चिकित्सा तंत्र को मजबूत करने पर अविलंब ध्यान देना चाहिए।
-सतीश उपाध्याय, मनेंद्रगढ़ कोरिया, छत्तीसगढ़
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हमारी यह आदत हो गई है कि जब समस्या ज्यादा विकट हो जाती है तो हल खोजने का प्रयास करते हैं। कोरोना की प्रथम लहर के बाद कोरोना की रफ्तार में कमी आई, तब सब लापरवाह हो गए। अब कोरोना नियंत्रण के लिए कर्फ्यू लगाया जा रहा है।
-नरेंद्र जांगु, मौखातर,जालोर
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स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का मौजूदा स्वास्थ्य-तंत्र कोरोना महामारी के हमले को झेल पाने में असमर्थ है। लचर स्वास्थ्य सेवाएं, शहरों में घनी आबादी, भीषण वायु प्रदूषण, जागरूकता की भारी कमी और गंदगी ने महामारी को भयावह बना दिया है। ग्रामीण इलाकों में तो चिकित्सा सुविधाएं नजर ही नहीं आतीं। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में हमेशा ताला लगा रहता है। ऐसे में यदि सुदूर गांवों में कोरोना का संक्रमण पहुंच जाए, तो मौतों का आंकड़ा कहां तक पहुंच सकता है, इसकी कल्पना से ही सिहरन होती है। अब भी यदि भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था सुधर जाए, तो लाखों लोगों की जान बचाई जा सकती है।
– भवदीप भाटी, सुजानगढ़
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टीकाकरण को गति देनी होगी
चिकित्सा तंत्र को समय रहते मजबूती दी गई, मगर कोरोना काबू से बाहर हुआ है। देश-प्रदेश की सरकारों ने प्रयास किए हैं, मगर कोरोना प्रकृति का कहर है। टीकाकरण को गति देनी होगी। कोरोना गाइडलाइन की अनुपालना, स्वच्छता, सतर्कता, सजगता जरूरी।
-शिवजी लाल मीना, जयपुर
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गत वर्ष अचानक कोरोना आया और सभी सकते में आ गए। सरकार ने अपनी सूझबूझ से कोरोना के खिलाफ लड़ाई शुरू की। लॉकडाउन किया गया। कोरोना गाइडलाइन की पालना सुनिश्चित की गई। अस्पतालों मे अतिरिक्त पलंग लगाए गए। वेंटिलेटर का आयात किया गया और वैक्सीन भी आ गई। चिकित्सकों ने जी जान से मरीजों की सेवा की। बड़ी विकट परिस्थिति के बावजूद प्रशासन ने हार नहीं मानी। कोरोना करीब-करीब जाने को था। चिकित्सा जगत और सरकार को यह आभास नहीं था कि कोरोना की दूसरी लहर इतना भयंकर रूप ले लेगी।
-लता अग्रवाल, चित्तौडग़ढ़
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सरकार ने पिछले साल की कोरोना महामारी से सबक नहीं लिया और चिकित्सा क्षेत्र को मजबूत बनाने पर ध्यान नहीं दिया। सरकार ने तो सिर्फ चुनाव पर ही ध्यान दिया, जिसका खमियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। आज जो हालात हैं, उसके लिए भी पूरी तरह से सरकार दोषी है। चिकित्सा व्यवस्था इतनी खराब है कि लोग ऑक्सीजन बेड और इंजेक्शन के लिए भी तरस रहे हैं।
-बालकिशन अग्रवाल, सूरत, गुजरात
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कोरोना की दूसरी लहर पूरे भारत में विशेषकर महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब आदि क्षेत्रों में तेजी से फैल रही है। चिकित्सा तंत्र को समय रहते मजबूत नहीं किया गया, तो हालात गंभीर हो जाएंगे। सरकार को अस्पतालों में ऑक्सीजन और बेड की व्यवस्था करने पर ध्यान देना चाहिए।
-सुरेंद्र बिंदल, जयपुर
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महामारी का वक्त है। हर किसी के प्राणों पर संकट है। हर जगह उपचार के साधनों और दवाओं की कमी पड़ रही है। भरपूर प्रयास करने के बाद भी पर्याप्त मात्रा में बिस्तर, इंजेक्शन, दवाइयां, ऑक्सीजन की व्यवस्था नहीं हो पा रही। दवा और चिकित्सा सुविधाओं के बीच मांग और आपूर्ति का बहुत बड़ा अंतर जिम्मेदार विभागों की लापरवाही दर्शाता है। देश में कोरोना संक्रमण के हर दिन बढ़ते आंकड़े तो ये ही जाहिर करते हैं कि सभी सरकारों ने अपनी स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं के प्रति बीते सालों मे बेहद लापरवाही बरती। इन सेवाओं मे सुधार के लिए समय रहते किसी ने कुछ नहीं किया।
-नरेश कानूनगो, गुन्जुर, बेंगलूरु
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कोरोना महामारी के फैलने के लिए आम जनता को दोष दिया जा रहा है। माना कि आम जनता नियमों का पालन नहीं कर रही। इसलिए बीमारी विकराल रूप लेती जा रही है, लेकिन एक प्रश्न यह भी उठता है कि नियमों की अनदेखी करने की सीख जनता कहां से ले रही है ये सभी जानते हैं। नियम तो जारी कर दिए जाते हैं, किन्तु राजनीतिक नेता व प्रभावशाली संगठन इन नियमों की धज्जियां उड़ाते हैं। आम जनता यह सब देखती है। वह जैसा देखती है वैसा करने लगती है। नेता व विभिन्न राजनीतिक दल नियमों का पालन कर आदर्श प्रस्तुत करें, तो जनता पर भी उसका असर पड़ेगा।
-भगवती प्रसाद गेहलोत, मंदसौर, मप्र
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चिकित्सा तंत्र आंशिक रूप से मजबूत है। कोई तंत्र कितना मजबूत है, उसमें कार्य करने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों की कार्य कुशलता पर निर्भर करता है। कर्मचारियों व अधिकारियों की लापरवाही के कारण व्यवस्था बिगड़ती है।
-महेश गुप्ता, सागर