कहने को जबलपुर शहर में निगम के तीन प्लांट से जलापूर्ति की व्यवस्था है। देखा जाए, तो इन प्लांट से पूरे शहर को 24 घंटे पानी की आपूर्ति की जा सकती है। लेकिन, असल में यहां कई क्षेत्रों में बारिश के दिनों में भी पेयजल का संकट बना रहता है। घरों तक पहुंचने से ज्यादा पानी बर्बाद हो जाता है। सार्वजनिक नलों से पानी के फव्वारे फूटते रहते हैं। पाइपलाइन जगह-जगह फूटी रहती हैं। टंकियों में पानी भरने से पहले ही नालियों में चला जाता है। इस बार भी गर्मी की दस्तक होने के साथ यहां जलसंकट की आहट होने लगी है। कई इलाकों में रोजाना की जलापूर्ति व्यवस्था प्रभावित हो रही है। कुछ क्षेत्रों में टैंकर नहीं पहुंच रहे हैं। ऐसे में आने वाले दिनों के भयावह जलसंकट की तस्वीर अभी से दिखने लगी है।
एक बार फिर से नगर निगम के जल प्रबंधन पर सवाल उठने लगे हैं। सवाल उठने भी चाहिए। क्योंकि, यहां पर्याप्त जलस्रोत हैं। जरूरी संसाधन हैं। यदि पीने का पानी सभी घरों तक नहीं पहुंच रहा है, तो यह प्रकृति का प्रकोप नहीं है। यह निगम के जिम्मेदारों की नाकामी है। अभी गर्मी की शुरुआत हुई है। जलस्तर अभी ज्यादा नीचे नहीं गया है। जिम्मेदारों को चाहिए कि वाटर हार्वेस्टिंग के लिए लोगों को जागरूक करें। जहां ज्यादा जलसंकट होता है, वहां की टंकियों तक पानी पहुंचाने की पुख्ता व्यवस्था करें। पाइपलाइन बिछाने का काम पूरा किया जाए। सबसे जरूरी है कि पानी बर्बाद नहीं होने दिया जाए।
जबलपुर में पानी की किल्लत है, लेकिन नर्मदा के किनारे का एक शहर होशंगाबाद तो नर्मदा होने के बावजूद इससे महरूम रहता है। वहां के बाशिंदों को नर्मदा का पानी पीने को नहीं मिलता है। शासन प्रशासन का होशंगाबाद को नर्मदा का पानी पिलाने का विचार है, लेकिन इसे आगे बढ़ाने का काम पूरी शिद्दत से नहीं हो रहा हैै। सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए और विचार को मूर्त रूप देने का रास्ता खोजना चाहिए, ताकि लाखों और लोगों को नर्मदा का पानी सुलभ हो सके।