scriptपानी रे पानी | Water Importance in life on earth | Patrika News

पानी रे पानी

Published: Dec 26, 2020 07:17:06 am

Submitted by:

Gulab Kothari

कहा जा रहा है कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी को लेकर होगा। जिस प्रकार की स्थितियां चल रही हैं, उनको देखकर नहीं लगता कि लोग युद्ध की प्रतीक्षा के लिए बचेंगे।

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– गुलाब कोठारी

कहा जा रहा है कि तीसरा विश्वयुद्ध पानी को लेकर होगा। जिस प्रकार की स्थितियां चल रही हैं, उनको देखकर नहीं लगता कि लोग युद्ध की प्रतीक्षा के लिए बचेंगे। किसको फर्क पड़ता है? राजनीति, आज लोगों के जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है। लोकतंत्र के साथ कैसा खिलवाड़ हो रहा है? जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा। जो कुछ हो रहा है, उसमें जनता की उपस्थिति कहीं दिखाई नहीं पड़ती। बल्कि ये लगता है कि अगले चुनाव तक जनता की ओर बिना देखे ही काम चल जाए तो और भी अच्छा।
जीवन में हवा के बाद पानी दूसरी बड़ी आवश्यकता है। पानी के साथ पिछले 20-25 वर्षों में जितना आसुरी व्यवहार हुआ है, जितने लोगों के जीवन को नरक बना दिया गया है, जितनी खेती उजाड़ी गई है, वहीं कहीं तो राजनीति के चलते अति-कृपा से जमीनें भी दलदल हो गई हैं। राजस्थान देश का अकेला राज्य है जहां न्यूनतम वर्षा है, अधिकतम रेगिस्तान-पहाड़ हैं। जहां कहीं तालाब-झीलें बनीं, सरकारी दैत्य चाट गए। जयपुर के रामगढ़ बांध से बड़ा उदाहरण क्या होगा? लोकतंत्र के तीनों स्तम्भ झूठे और जनहित के विरोधी हो गए। ऐसे कितने जलाशय सूखे, दूषित जल से अटे पड़े हैं, फ्लोराइड जैसे रसायनों से जीवन को पंगु बना रहे हैं और चारों ओर सत्ता का अट्टाहास। वाह!
ईश्वर ने जीवन दिया है तो जीने की पहले व्यवस्था करता है। कहते हैं कि ‘चोंच दी है तो चुग्गा भी देगा।’ सृष्टि में तीन चौथाई पानी दिया है। साथ ही तीन चौथाई असुर भी दिए हैं। एक चौथाई तक यह पानी पहुंचने ही नहीं दिया जाता। मानवता प्यासी, अभयारण्यों के पशु-पक्षी प्यासे, धरती के कण्ठ तक सूखे हैं। आज का शिक्षित-अपूर्ण मानव ही अज्ञानवश अहंकार की तुष्टि में लगा है। सम्पूर्ण मानवता हाहाकार कर रही है। जो कुछ प्रकृति ने प्रदान किया-इस पर सत्ता ने अतिक्रमण कर लिया। ईश्वर के एक अंश ने दूसरे को लाचार कर दिया।
हाल ही राजस्थान सरकार ने अंधाधुंध पानी निकालने (बोरिंग) की खुली छूट दे दी। इस संबंध में केन्द्र सरकार पहले ही राज्यों को दिशा-निर्देश जारी कर चुकी है। इनमें कहा गया है कि घरेलू उपयोग, किसान, ग्रामीण जलापूर्ति, सशस्त्र बल व छोटे उद्योगों को जलदोहन के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) से छूट दी जाए। राजस्थान में भी मंत्रिमंडल ने इन दिशा-निर्देशों को मंजूर कर लिया है जिसकी अधिसूचना भी जारी होने वाली है। अब तक जलदोहन के लिए प्रशासन से स्वीकृति ली जाती थी। कानून जितने सख्त होते हैं, उतना भ्रष्टाचार भी फलता-फूलता है। रात को किसी पुलिस चौकी पर खड़े हो जाओ, देखो क्या-क्या निकलता है? अधिकारी ही अपने स्वार्थ के लिए कानून की धज्जियां उड़वाते हैं। बजरी को देखो, मादक पदार्थों से लेकर नगर परिषदों तक के भ्रष्टाचार में बड़े-बड़े अधिकारी दिखाई पड़ जाएंगे। कल ही समाचार था-‘नोटिस दरकिनार, कम्पनी लगाती रही इश्तहार।’ इसमें यह भी लिखा था कि किस अधिकारी की ‘निश्रा’ में यह होता है। अपने पेट के लिए कोई मरे, मरता रहे।
पानी निकालने की छूट को भी राजनीति की सौगात ही कहना चाहिए। इस छूट से राजस्थान में तो जल के लिए विश्व युद्ध की प्रतीक्षा भी नहीं करनी पड़ेगी। सरकारों की जनसेवा तथा जनता के नौकरों की स्वामीभक्ति किस तेजी से विकास कर रही है, यह सब उसी के प्रमाण हैं। पत्रिका ने सांभर झील में अवैध बोरिंग को लेकर अभियान चलाया था। सरकार ने सोचा कि काम तो हो रहा है, फिर क्यों नहीं छूट दे दी जाए। सरकार को यह भी जानकारी है कि तीन-चार दशक पहले लगभग 236 ब्लॉक में से केवल 33 ही संकट में थे-‘डार्क जोन’ थे। इनमें भी दो तिहाई ही गंभीर स्तर तक पहुंचे थे। वर्ष 2017 में कुल ब्लॉक 295 हो गए। इनमें अंधाधुंध जलदोहन भी होता रहा। सरकारें मौज करती रहीं, जनता के कण्ठ सूखते गए। नतीजा यह हुआ कि आज 218 ब्लॉक में जल स्तर खतरे के निशान से भी नीचे चला गया। अब तो खुली छूट है। पानी बचे न बचे, सरकार भी बचे, और पेट भी भरता रहे।
सिंचाई सुविधाओं को बढ़ाने तथा जल निकासी की बाधाओं को हटाने के लिए ‘राजस्थान सिंचाई एवं जल निकासी अधिनियम 1954’ बना था। फिर किसानों की सहभागिता बढ़ाने की दृष्टि से वर्ष 2000 में दूसरा अधिनियम आया। किसानों को इसकी कितनी जानकारी होगी, कह नहीं सकते। वर्ष 2012 में जल प्रबन्धन की नीतियां बनाने एवं सहयोग करने के लिए ‘राजस्थान जल संसाधन एवं विनियामक प्राधिकरण अधिनियम’ लाया गया। जल परिषद् भी बनी-मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में। जल संसाधन मंत्री की अध्यक्षता में राज्य जल बोर्ड भी बना। जनता के सिर पर सफेद हाथी बैठ गए। काम-काज गिनाने लायक कुछ नहीं हुआ। न ही संस्थाएं भंग की गई।
सरकार की कारीगरी देखिए! वर्ष 2015 में नदियों को जोडऩे के लिए राजस्थान नदी बेसिन और जल संसाधन योजना अधिनियम लाया गया। इसके जरिए वर्ष 2012 के कानून को समेट दिया गया। मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में नौ मंत्रियों के साथ जल संसाधन सलाहकार परिषद् बनी। जल स्वावलम्बन के अभियान चले, लोगों से दान देने के लिए दबाव भी खूब बनाए। नदियों को जोडऩे के स्थान पर जगह-जगह पर एनिकट बन गए। नदियां सूख गईं। रामगढ़ बांध में खेत निर्मित हो गए। कानूनों की तो बाढ़ आती रही, किन्तु वर्षा के जल को भूमि में एकत्र करने में किसी ने रुचि नहीं दिखाई। ईश्वर की कृपा समुद्री नमक में समा गई। वर्ष 1990 में बाढ़ की समस्या को लेकर भी अधिनियम बनाया गया। बाढ़ पर नियंत्रण के स्थान पर शहरों में अतिक्रमण करके जल निकासी को जगह-जगह रोक दिया। ऐसे अधिकारी मानव हैं या दानव, सोचना पड़ेगा। ‘पानी बेचकर शराब पी जाते हैं’-ये नई कहावत बनी है इनके लिए।
बोरिंग करने की इस नई छूट से प्रदेश को जल-संकट का नया कैंसर लग जाएगा। बजरी, जल, खनिज, पत्थर चारों के अवैध और अमर्यादित खनन इस प्रदेश की भावी पीढ़ी को रसातल का चित्र दिखा रहा है। चंद लोगों के घरों में पानी के झरने बहेंगे, विकास के चेहरे का तो पानी उतर जाएगा।
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