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सच की बुनियाद पर ही हम आगे बढ़ सकते हैं

locationनई दिल्लीPublished: Jul 23, 2021 07:39:50 am

केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री भारती प्रवीण पवार ने संसद में अपने लिखित उत्तर में कहा कि ‘स्वास्थ्य राज्य का विषय है।

Union Minister of State for Health Bharti Pravin Pawar

Union Minister of State for Health Bharti Pravin Pawar

सत्ता का अपना चरित्र है। राज्य की सत्ता हो या देश की। इस दल की हो या उस दल की। जनता के बीच कुछ और, सत्ता के गलियारों में कुछ और। ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों के मामलों में चल रही बयानबाजी में इसे देखा जा सकता है। केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री भारती प्रवीण पवार ने संसद में अपने लिखित उत्तर में कहा कि ‘स्वास्थ्य राज्य का विषय है। सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों को कोरोना के दौरान हुई मौतों के बारे में सूचित करने के लिए गाइडलाइन दी गई थीं। किसी भी राज्य या केन्द्र शासित प्रदेश की रिपोर्ट में यह नहीं कहा गया है कि किसी की मौत ऑक्सीजन की कमी से हुई है।’ कुछ ही दिनों पहले की बात है जब ऑक्सीजन की कमी से हो रही मौतों से अखबारों की सुर्खियां लाल हो रही थीं। ऑक्सीजन नहीं मिलने की वजह से किसी के बुढ़ापे का सहारा छिन गया तो किसी के माथे का सिंदूर मिट गया।

कई मासूमों को अब तक पता नहीं कि उनके पालनहारों को क्रूर कोरोना ने नहीं, बल्कि सिस्टम की लापरवाही ने छीना है। स्थानीय प्रशासन से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चिंतित था। सुप्रीम कोर्ट ने तो सरकार को यहां तक कह दिया था कि आप आंखें बंद कर सकते हैं, हम नहीं। लेकिन सत्ता की मजबूरी देखिए कि किसी राज्य सरकार ने यह रिपोर्ट नहीं दी कि ऑक्सीजन की कमी से मौत हुई। कुछ ऐसे राज्य भी हैं जिन्होंने पीठ थपथपाते हुए यह तक कहा कि ऑक्सीजन की कमी तो थी, पर सरकार के कुशल प्रबंधन के कारण किसी की मौत नहीं हुई। पल्ला झाडऩे का काम हमारे राजनेताओं को खूब आता है। दलील यह है कि केंद्र सरकार का काम सिर्फ आंकड़ों को कम्पाइल करना है। बाकी जवाबदेही तो राज्यों की ही है। बात सच भी है कि स्वास्थ्य राज्य का विषय है। लेकिन जिस तरह से कोरोना के दौरान केंद्र सरकार ने सक्रियता दिखाई है, उसके बाद उससे ऐसे जवाब की उम्मीद किसी को नहीं रही होगी। आखिर केंद्र सरकार यह कैसे कह सकती है कि उसका काम सिर्फ आंकड़ों को कम्पाइल करना है, जबकि महामारी का पूरा प्रबंधन उसी के दिशा-निर्देशन में हो। यदि राज्यों ने सही रिपोर्ट नहीं दी तो उनसे जवाब-तलब किया जाना चाहिए। आगे के बेहतर प्रबंधन के लिए भी यह जरूरी है, लेकिन राज्यों के जवाब में केंद्र को अपने लिए भी ऑक्सीजन मिलती दिखी, इसलिए उसने पल्ला झाड़ लेना मुनासिब समझा।

राजनीतिक नुकसान से बचने के लिए आंकड़ों को छिपाने के खेल को क्रूरता से कम नहीं माना जाना चाहिए। हालांकि इस मामले में मुख्य रूप से राज्यों के रवैये पर ही सवाल उठाता है, पर संसद में केंद्र सरकार ने भी असंवेदनशीलता का ही परिचय दिया। बुनियादी बात यह है कि सच स्वीकार करके ही हम कठिन से कठिन समस्याओं का समाधान कर सकते हैं।

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