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आरक्षण के सवाल के जल्द खोजने होंगे जवाब

locationनई दिल्लीPublished: Mar 07, 2017 02:01:00 pm

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पूरे देश में संक्रमण की तरह फैल रहे आरक्षण आंदोलन की आग कभी समूचे देश में भड़क जाए तो कोई आश्चर्य नहीं।

देश में आरक्षण का मुद्दा ज्वलंत होता जा रहा है। आजादी के बाद सामाजिक व आर्थिक रूप से पिछड़ी कुछ जातियों के अनुसूचित जाति व जनजाति के वर्ग में शामिल कर आरक्षण की सुविधा प्रदान की गई थी। हालात में सुधार के बावजूद न केवल इन वर्गों का आरक्षण बना रहा बल्कि मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर कुछ और जातियां भी अन्य पिछड़ा वर्ग के नाम पर आरक्षण के दायरे में आ गई। 
इसके बाद जिन जाति समुदायों का दबाव बना उनको भी आरक्षण देने की कहीं केंद्र तो कहीं राज्य सरकारों ने व्यवस्था कर दी। इसके प्रभाव तत्काल नजर आने लगे और पूर्व से शामिल पिछड़ी जातियों में असंतोष पनपने लगा। 
यह असंतोष अभी मिटा ही नहीं कि आरक्षण के लिए राजस्थान से लेकर हरियाणा और उत्तरप्रदेश तक में आंदोलन देखने को मिल रहा है। आज आरक्षण शब्द ही किसी समस्या के निदान के बजाए समस्या पैदा करने वाला बनता जा रहा है। 
एक तरफ आरक्षण की आग बढ़ती जा रही है दूसरी ओर राजनीतिक दल अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हैं। इसी कारण आज तक समस्या का समाधान नहीं हो पाया। राजनीति लाभ के लिए आरक्षण का दौर जारी रहा तो राजपूत, ब्राह्मण सहित अन्य अनारक्षित जातियां भी आरक्षण आंदोलन के मार्ग पर उतर आई हैं।
देखा जाए तो आरक्षण गरीबी व पिछड़ेपन के समाधान का माध्यम नहीं बन कर राजनीतिक लाभ का जरिया बन गया है। आरक्षण की मांग कोई भी करे जब वे सड़कों पर उतरते हैं तो ऐसे आंदोलनों से नुकसान सार्वजनिक संपत्ति का ही होता है।
यह हमने पिछले कई आंदोलनों में देखा है। दिशाविहीन आंदोलनों का स्वतंत्र भारत में कोई उचित समाधान दूर-दूर तक दिखाई नहीं देता। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर राजनीति से प्रेरित आंदोलनों का समाधान कैसे हो? यूं तो देश में पिछड़ेपन एवं गरीबी को दूर करने के लिए आरक्षण कुछ समय के लिए लागू किया गया था। 
आजादी के 7 दशक बाद हम यह पिछड़ापन दूर नहीं कर पाए तो इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा। जहां तक गरीबी एवं पिछड़ेपन का सवाल है, आज प्राय: सभी जातियां इससे प्रभावित है। ऐसे में समाधान यह भी है कि सभी जातियों को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण दे दिया जाए। 
पूरे देश में संक्रमण की तरह फैल रहे आरक्षण आंदोलन की आग कभी समूचे देश में भड़क जाए तो कोई आश्चर्य नहीं। राजस्थान में सवर्णों को आरक्षण की मांग को लेकर शुरू हुआ आंदोलन भी इसका संकेत है। देश के दूसरे हिस्से भी इससे अछूते नहीं हैं। ऐसे में समय पर ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

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