scriptजो असमय चले गए, उनसे माफी मांगने लायक बनें हम | We should be able to apologize to those who have gone untimely | Patrika News
ओपिनियन

जो असमय चले गए, उनसे माफी मांगने लायक बनें हम

आपातकालीन ढांचा होगा तो तीसरी लहर का सामना भी कर लेगा भारत…निष्क्रियता से महामारी का मुकाबला संभव नहीं है। राजनीतिक दांव-पेंच से दूर सारे मोर्चों पर एक साथ काम शुरू हो, तो विकरालता कम होने लगेगी।

May 14, 2021 / 08:59 am

विकास गुप्ता

जो असमय चले गए, उनसे माफी मांगने लायक बनें हम

जो असमय चले गए, उनसे माफी मांगने लायक बनें हम

कुमार प्रशांत

देश की आज जो दशा है, उसमें विधायिका-न्यायपालिका-कार्यपालिका का संवैधानिक संतुलन बिगड़े, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा। संविधान कागज पर लिखी इबारत मात्र नहीं है बल्कि देश की सभ्यता-संस्कृति का भी वाहक है। संविधान संशोधित किया जा सकता है, लेकिन छला नहीं जा सकता है। संकट के इस दौर में भी हमें संविधान के इस स्वरूप का ध्यान रखना ही चाहिए और उसकी रोशनी में इस अंधेरे दौर को पार करने का दायित्व लेना चाहिए। यह जीवन बचाने और विश्वास न टूटने देने का दौर है।

जिस तरह सर्वोच्च न्यायालय ने ऑक्सीजन के लिए कार्यदल का गठन किया, उसी तरह एक कोरोना नियंत्रण केंद्रीय संचालन समिति का अविलंब गठन प्रधान न्यायाधीश व उनके दो सबसे वरिष्ठ न्यायाधीशों की अध्यक्षता में होना चाहिए। इस राष्ट्रीय कार्यदल में सामाजिक कार्यकर्ता, ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्र में काम करने का लंबा अनुभव रखने वाले डॉक्टर, अस्पतालों के चुने प्रतिनिधि, राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि, कोविड तथा संक्रमण-विशेषज्ञ लिए जाने चाहिए। यही तत्पर कार्यदल कोरोना के हर मामले में अंतिम फैसला करे और सरकार व सरकारी मशीनरी उसका अनुपालन करे। इस कार्यदल में महिलाओं तथा ग्रामीण विशेषज्ञों की उपस्थिति भी सुनिश्चित करनी चाहिए। हमें इसका ध्यान होना ही चाहिए कि अब तक जितनी खबरें आ रही हैं और जितना हाहाकार मच रहा है, वह सब महानगरों तथा नगरों तक सीमित है। लेकिन कोरोना वहीं तक सीमित नहीं है। वह हमारे ग्रामीण इलाकों में पांव पसार चुका है। यह वह भारत है जहां न मीडिया है, न डॉक्टर, न अस्पताल, न दवा! यहां जिंदगी और मौत के बीच खड़ा होने वाला कोई तंत्र नहीं है।

ऐसा ही कार्यदल हर राज्य में गठित करना होगा जो केंद्रीय निर्देश से काम करे। सामाजिक संगठनों, स्वयंसेवी संस्थाओं, पंचायतों के सारे पदाधिकारियों, ग्रामीण नर्सों, आंगनवाड़ी सेविकाओं, आशा स्वयंसेविकाओं की ताकत इसमें जोडऩी होगी। अंतिम वर्ष की पढ़ाई पूरी कर रहे डॉक्टर-नर्स, प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे चिकित्सक, सभी अवकाशप्राप्त डॉक्टर जो काम करने की स्थिति में हैं, इन सबको जोड़ कर एक आपातकालीन ढांचा बनाया जा सकता है। युवाओं को कुछ घंटे समाज सेवा के लिए भी समर्पित करने होंगे, वे मास्क व सफाई के बारे में जागरूकता फैलाएं, मरीजों को चिकित्सा सुविधा तक पहुंचाएं, वैक्सीनेशन केंद्रों पर शांति-व्यवस्था बनाने का काम करें। इनमें से अधिकांश कंप्यूटर व स्मार्टफोन चलाना जानते हैं, ये लोग उस कड़ी को जोड़ सकते हैं जो ग्रामीण भारत व मजदूरों-किसानों के पास पहुंचते-पहुंचते अधिकांशत: टूट जाती है। यह पूरा ढांचा द्रुत गति से खड़ा होना चाहिए। सारी राष्ट्रीय संपदा नागरिकों की कमाई हुई है, उसे नागरिकों पर खर्च करने में कोताही का कोई कारण नहीं है। यह रुपए-दवाएं-वेंटिलेटर-ऑक्सीजन आदि गिनने का नहीं, नागरिकों को गिनने का वक्त है। आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि भ्रष्टाचारियों को उनके सबसे निकट के बिजली के खंभे से लटका दिया जाएगा। वे वैसा कर नहीं सके, लेकिन आज उससे कम करने से बात बनेगी नहीं।

कोरोना मारे कि भुखमरी, मौत तो मौत होती है। इसलिए शहरी बेरोजगारों और ग्रामीण आबादी को ध्यान में रख कर तुरंत व्यवस्थाएं बनाई जाएं। मनरेगा को बैठे-ठाले का काम नहीं, पुनर्निर्माण का जन आंदोलन बनाना चाहिए। निष्क्रियता से इस महामारी का मुकाबला संभव नहीं है। राजनीतिक दांव-पेंच से दूर इतने सारे मोर्चों पर एक साथ काम शुरू हो, तो विकरालता कम होने लगेगी। तब हम तीसरी लहर का मुकाबला भी कर लेंगे। कोरोना हमारे भीतर कायरता नहीं, सक्रियता का बोध जगाए, तो जो असमय चले गए उन सबसे हम माफी मांगने लायक बनेंगे।
(लेखक गांधी शांति प्रतिष्ठान, दिल्ली के अध्यक्ष हैं)

Hindi News / Prime / Opinion / जो असमय चले गए, उनसे माफी मांगने लायक बनें हम

ट्रेंडिंग वीडियो