अतः देखा जा सकता है कि आज प्राकृतिक असंतुलन पैदा हो गया है । इसके परिणाम मानव मात्र को ही भोगने होंगे । एक तरफ अंधेरे में टिमटिमाते ऐसे दिए हैं जो तन मन धन खर्च कर पृथ्वी की हरीतिमा को बढ़ाने में लगे हैं वहीं दूसरी तरफ वे लालची लोग हैं जो दिन-ब-दिन पेड़ पौधों को काटकर हरीतिमा को लील रहे हैं । इस हरीतिमा की कमी की वजह से आज वन्य जीव जंतुओं पर संकट पैदा हो गया हैं और कई मानसून को प्रभावित करने वाले जीव जंतु भी धीरे-धीरे विलुप्ति के कगार पर पहुंच गए हैं ।ऐसे माहौल में हम कैसे अपेक्षा करें कि मानसून भी हमारा पूरी तरह से साथ दें । यही कारण है कि वर्षा असंतुलित हो रही है । इतनी बाढें आने के बाद भी भारत की अधिसंख्य आबादी पानी के लिए तरस रही है । इन सबके लिए हम धरा वासी ही जिम्मेदार हैं ।
हमने अपनी सुविधा भोगी व भौतिक आवश्यकताओं की अंधी दौड़ में प्रकृति के सभी तत्वों को दूषित करके रख दिया व करते जा रहे हैं । न केवल प्रकृति बल्कि सेहत के लिए भी ये पांच तत्व जिम्मेदार है। पांचो तत्वों में शेष चार तत्वों के अंश होते हैं। हमारे शरीर में ये तत्व तीन प्रकार के दोष के रूप में प्रकट होते हैं- वात, पित्त और कफ। हर व्यक्ति को ये दोष अलग तरह से प्रभावित करते हैं। जन्म के समय व्यक्ति की जो प्रकृति होती है, उसी के अनुसार उसे अन्य तत्व प्रभावित करते हैं। ज्यादातर लोगों की प्रकृति दो दोषों के योग से बनी होती है। जब ये दोष संतुलित रहते हैं, तो शरीर सामान्य रूप से कार्य करता है, लेकिन दोषों में असंतुलन स्थापित होने पर पाचन क्रिया प्रभावित होती है और शरीर में टॉक्सिन्स पैदा होने लगते हैं। परिणामस्वरूप शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है और तरह-तरह की बीमारियां होने लगती हैं ।