इस बार राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बदलाव की बयार चली थी। इस बदलाव से जनता का तात्पर्य सिर्फ सरकार, राजनीतिक पार्टी और चेहरे बदलना ही नहीं था, बल्कि जनता की अपेक्षा सरकारों के कामकाज के ढंग में आमूल-चूल परिवर्तन की है। अब यह आशा की जा रही है कि राजस्थान में जिस तरह से नए लोगों को मंत्रिमंडल में लिया गया है, उससे न सिर्फ सरकार बल्कि नौकरशाही के कामकाज का भी तरीका बदलेगा। प्रदेश की समस्याओं और जरूरतों को देखने का नजरिया बदलेगा।
नए चेहरों के साथ नई ऊर्जा तो आती है, पर एक जोखिम भी बना रहता है-अनुभव की कमी का। नई सरकार और उसकी टीम को समय रहते इस जोखिम को पहचानना होगा। राजस्थान एक विशाल राज्य है। राज्य के अलग-अलग हिस्सों की समस्याएं अलग-अलग किस्म की हैं। उनको समझने और निराकरण के लिए गहरी सूझ-बूझ चाहिए। इसलिए बेहतर यह होगा कि पहली बार काम-काज संभाल रहे मंत्रियों के लिए विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए। उन्हें संविधान, कानूनों, नियम-कायदों के अलावा अपने विभाग के कामकाज की भी गहरी जानकारी दी जाए। प्रशिक्षण के लिए विषय-विशेषज्ञों को बुलाया जाए। निजी क्षेत्रों से विशेषज्ञ बुलाए जाते हैं तो और भी बेहतर रहेगा। वे विभिन्न विषयों का राजस्थान के परिप्रेक्ष्य में प्रशिक्षण देने का काम करें। हर मंत्री को राजस्थान और उसके विभाग से जुड़ी अपेक्षाओं की पूरी जानकारी होनी चाहिए। उन्हें राज्यहित की दीर्घकालीन नीतियों पर काम करना होगा। समस्याओं के निराकरण के अभिनव तरीके खोजने होंगे।
यह भी ध्यान रखना होगा कि मंत्रिमंडल के चेहरे तो बदले हैं, पर अफसरशाही के कामकाज का तरीका वही पुराना है। अफसरों की चिंता केवल अपने कार्यकाल के लक्ष्यों तक होती है। दीर्घकालीन चिंता जनप्रतिनिधि ही कर सकते हैं। मंत्रियों को तय करना होगा कि वे कितनी बातें अफसरों की माने और कितने निर्णय स्वयं की सूझ-बूझ से करें। अपनी ऊर्जा को किसी भी झांसे में गलत दिशा में तो नहीं मुडऩे दें।
अपेक्षा यह भी थी कि मंत्रिमंडल में महिलाओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व मिलता, जो अभी नहीं मिला। महिलाओं की संख्या बढऩे से सरकार में संवेदनशीलता का भाव भी बढ़ता है। कुछ कमी यह भी रह गई कि आपराधिक मनोवृति वाले कुछ लोग भी मंत्रिमंडल में जगह पा गए। सरकार को ऐसे लोगों का विभागों के बंटवारे के समय ध्यान रखना चाहिए। बड़े बजट, कमीशनखोरी की गुंजाइश और रोजमर्रा के कार्यों से जुड़े विभागों से ऐसे लोगों को दूर रखना चाहिए। नए मंत्रियों को कम से कम यह कसम भी जरूर खानी चाहिए कि राज्य के लिए काम करते समय वे जात-पात, सम्प्रदाय जैसे भेदभाव से ऊपर रहेंगे। ये ही वे बेडिय़ां हैं जो राजस्थान को पिछड़ेपन के अंधे दायरे से निकलने नहीं दे रहीं।