भारत की राजनीति में हिंसा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। हमारे देश मे राजनीतिक दलों के बीच संघर्ष में भी लोग मारे जा रहे हैं। हम भले ही लोकतंत्र पर गर्व करते हों, लेकिन सच्चाई यह है अब भी कई समस्याएं जड़ेें जमाए हैं, जिनका समय रहते समाधान करना आवश्यक है। आज की राजनीति में असहिष्णुता बढ़ती जा रही है, जिसमें राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता छोटी-2 बातों पर उत्पात मचाने लगते हैं। पहले लोग देश सेवा के लिए राजनीति में आते थे, लेकिन वर्तमान में लोगों ने राजनीति को धंधा बना लिया है। यह देश के लिए घातक है। अब ईमानदार व्यक्ति का राजनीति में प्रवेश बहुत मुश्किल हो गया है। इसलिए हमारे राजनीतिक तंत्र में व्यापक सुधार की जरूरत है। इसके लिए हम सबको आगे आना होगा!
-दिलीपसिंह, पिण्डारण, कल्याणपुर
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हम भारतीय लोकतंत्र पर भले ही गर्व करते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि जनप्रतिनिधि बनते ही व्यक्ति की संपत्ति में असाधारण इजाफा होने लगता है। इस कारण राजनीतिक में आने और उसमें बने रहने के लिए गला काट प्रतियोगिता शुरू हो गई है। सत्ता पाने के लिए कोई भी व्यक्ति या उसके जरिए लाभान्वित होने वाला समूह किसी भी हद तक जा सकता है। वह अपने विरोधियों का मनोबल तोडऩे के लिए हिंसा तक का सहारा लेता है। यह स्थिति वाकई ङ्क्षचताजनक है।
-लाभचंद पटेल, बांसवाड़ा
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असल में बड़े नेता अपनी कुर्सी बचाने के लिए या सत्ता पाने के लिए राजनीति में हिंसा का सहारा लेते हैं। इसके लिए धर्म, जाति और क्षेत्र के नाम पर लोगों को भडक़ाया जाता है। इससे सरकारी संपत्ति का भी नुकसान होता है। इस प्रवृत्ति पर अंकुश जरूरी है।
-सुरेंद्र कुमार बिंदल, जयपुर
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भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जनता चुने हुए नेताओं से समस्याओं के समाधान की आशा की जाती है, परंतु भारत में राजनीतिक हिंसा खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। हम भारतीय लोकतंत्र पर भले ही गर्व करते हों, लेकिन नेता हिंसा का सहारा लेने में संकोच नहीं करते। हरेक पार्टी भले ही सार्वजनिक रूप से राजनीति के अपराधीकरण का विरोध करती हो, लेकिन प्राय: सभी दलों में बड़ी संख्या में आपराधिक प्रवृत्ति के लोग शामिल हैं। समाज को जोडऩे की सकारात्मक राजनीति अब हमारी व्यवस्था में एक दुर्लभ चीज हो गई है। हमारे राजनीतिक तंत्र में व्यापक सुधार की जरूरत है। इसके लिए पूरे समाज को आगे आना होगा।
-डॉ.अजिता शर्मा, उदयपुर
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लोकतंत्र में राजनीतिक हिंसा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है। आज राजनीति में असहिष्णुता के कारण हिंसा बढ़ती जा रही है। कोई किसी को सुनने को तैयार नहीं है । छोटी-छोटी बात पर कार्यकर्ता उत्पात मचाने लगते हैं। सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं। प्राय: सभी दलों में बड़ी संख्या में आपराधिक प्रवृत्ति के लोग शामिल हैं। यही नहीं बड़े-बड़े नेता भी समय-समय पर ऐसे बयान देते हैं, जिससे समाज में जातीय या सांप्रदायिक हिंसा होती है, जो लोकतंत्र के लिए खतरा है । विकास की बात करते हुए भी धर्म विशेष का नाम लेकर राजनीति में हिंसा को बढ़ावा दिया जाता है। इस खतरनाक प्रवृत्ति पर अंकुश जरूरी है।
-सपना बिश्नोई, हनुमानगढ़
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हाल के दिनों में देश में ‘तंत्र’ ज्यादा मजबूत हो गया है और ‘लोक’ कमजोर हो गया है। देश में लगातार राजनीतिक हिंसा हो रही है। किसी भी लोकतांत्रिक देश में राजनीतिक दलों के बीच वैचारिक टकराव स्वाभाविक प्रक्रिया है, पर उसका हिंसक रूप लेना पूरे देश के लिए घातक है। इन हिंसक घटनाओं के लिए मुख्य रूप से संबंधित दल का नेतृत्व जिम्मेदार होता है, जो अपने दल में मौजूद आपराधिक वृत्ति के कार्यकर्ताओं की हरकतों को या तो नजर अंदाज करता है या फिर उन्हें बढ़ावा देता है। इस तरह की गतिविधियों से निरंकुशता और अराजकता बढ़ती है। हाल के दिनों मे पश्चिम बंगाल मे जो हालात पैदा हुए हैं वे इसी अनियंत्रित राजनीतिक हिंसा के परिणाम हैं। लोकतंत्र प्रणाली तभी कामयाब हो सकती है, जब इसे चलाने वाले समझदार हों, कुशल हों।
-नरेश कानूनगो, बेंगलूरु, कर्नाटक
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लोकतंत्र में अनैतिक तरीकों से जन समर्थन जुटाने की प्रवृत्ति राजनीतिक हिंसा का प्रमुख कारण है। विभिन्न राजनीतिक पार्टियों में विचारधारा का अंतर टकराव पैदा करता है, जिससे विवाद बढ़ता है। वर्चस्व के लिए होने वाला विवाद हिंसा का रूप लेता है। राजनीतिक हिंसा में संलिप्त अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण मिलता है, जो लोकतंत्र पर आघात है। हिंसा को बर्दाश्त न करें। ईमानदार, निर्भीक, बेदाग तथा सेवा भावी व्यक्ति को ही सदन में भेजें।
-नरेन्द्र कुमार शर्मा, जयपुर
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भारत में राजनीतिक हिंसा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही। दरअसल, पहले लोग देश सेवा के लिए अपना शानदार करियर छोडक़र राजनीति में आते थे, पर अब राजनीति अपने आप में एक करियर है। यह एक लाभप्रद व्यवसाय के रूप में उभरी है। हम भारतीय लोकतंत्र पर भले ही गर्व करते हों, लेकिन सच्चाई यह है कि हमारी व्यवस्था में कई बुनियादी समस्याएं जड़ जमाती जा रही हैं, जिनका समय रहते कोई समाधान ढूंढना जरूरी है।
-रामावतार प्रजापत, दूदू, जयपुर
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लोकतंत्र में राजनीतिक हिंसा से आम जनता में भय का माहौल बनता है। आम लोग भयभीत होते हैं जिससे लोकतंत्र में उनकी आस्था कमजोर पड़ती है। इसका सीधा असर मतदान प्रतिशत पर पड़ता है। स्वतंत्र एवं निष्पक्ष मतदान के अभाव में अपराधी तत्व जनता के प्रतिनिधि बनकर देश के लिए हानिकारक सिद्ध होते हैं।
-ओमप्रकाश जणवा, बड़ीसादड़ी, चित्तौडग़ढ़
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किसी भी लोकतांत्रिक देश में राजनीतिक हिंसा लोकतंत्र को कमजोर करती है। इससे मतदाता की भावनाओं को गहरा आघात पहुंचता है। चुनाव आयोग को ऐसी पार्टियों के साथ सख्ती से पेश आना चाहिए, जो हिंसा का सहारा लेकर चुनाव जीतने की कोशिश करती हैं।
-घनश्याम मौर्य, मसूदा, अजमेर