विचारधारा रखते हैं ताक में
राजनीतिक दलों की कोई विचारधारा नहीं होती। ये आम जनता से येन-केन प्रकारेण सत्ता में आने के लिए लुभावने वादे करते हैं। आम जनता भी इनके लुभावने वादों में आकर इनको सत्ता में बैठा देती है और बाद में 5 साल तक परेशान रहती है।
-रामनरेश गुप्ता, सोडाला, जयपुर
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राजनीतिक दलों की कोई विचारधारा नहीं होती। ये आम जनता से येन-केन प्रकारेण सत्ता में आने के लिए लुभावने वादे करते हैं। आम जनता भी इनके लुभावने वादों में आकर इनको सत्ता में बैठा देती है और बाद में 5 साल तक परेशान रहती है।
-रामनरेश गुप्ता, सोडाला, जयपुर
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राजनीति से विचारधारा गायब
सच कहें तो यह कि आजकल राजनीति में ‘विचार’ कहां रहे हैं – सब एक ही उस धारा में प्रवाहित होते हैं, जो सत्ता तक ले जाती है लिखित और मौखिक निर्देश सिर्फ और सिर्फ सत्ता को पाने की चाह में दिए जाते हैं। एक तरह से ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ कहावत सिद्ध हो रही है।
-ईश्वर जैन ‘कौस्तुभ, उदयपुर
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सच कहें तो यह कि आजकल राजनीति में ‘विचार’ कहां रहे हैं – सब एक ही उस धारा में प्रवाहित होते हैं, जो सत्ता तक ले जाती है लिखित और मौखिक निर्देश सिर्फ और सिर्फ सत्ता को पाने की चाह में दिए जाते हैं। एक तरह से ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ कहावत सिद्ध हो रही है।
-ईश्वर जैन ‘कौस्तुभ, उदयपुर
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राजनीतिक शुचिता का प्रतीक
राजनीतिक दलों की विचारधारा उनके कार्यकर्ताओं को आदर्श और नैतिकता प्रदान करती हैं। साथ ही इनकी विचारधाराएं राजनीतिक शुचिता में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसलिए बिना विचारधारा के किसी राजनीतिक दल का अस्तित्व संभव नहीं हैं।
-मनु प्रताप सिंह,चींचडौली, खेतड़ी
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राजनीतिक दलों की विचारधारा उनके कार्यकर्ताओं को आदर्श और नैतिकता प्रदान करती हैं। साथ ही इनकी विचारधाराएं राजनीतिक शुचिता में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसलिए बिना विचारधारा के किसी राजनीतिक दल का अस्तित्व संभव नहीं हैं।
-मनु प्रताप सिंह,चींचडौली, खेतड़ी
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सत्ता की होड़ ही सब कुछ
लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों का निर्माण वैचारिक आधार पर होता रहा है। आजादी के पहले और बाद के कुछ समय तक देश में राजनीतिक दलों की पहचान विचारधारा के आधार पर थी, परंतु आपातकाल के बाद और फिर 90 के दशक के बाद तो विचारधारा का स्थान सत्ता प्राप्ति की होड़ ने ले लिया। आज देश में विचारधारा की राजनीति हाशिए पर खड़ी है, क्योंकि सबको सत्ता चाहिए। कल तक जो विचारधारा के आधार पर एक दूसरे की आलोचना करते थे, वे कुछ ही समय के बाद एक दूसरे के साथ खड़े दिखाई पड़ते हैं।
-बबली देवी नागलंका जोशी, श्रीमाधोपुर
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लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक दलों का निर्माण वैचारिक आधार पर होता रहा है। आजादी के पहले और बाद के कुछ समय तक देश में राजनीतिक दलों की पहचान विचारधारा के आधार पर थी, परंतु आपातकाल के बाद और फिर 90 के दशक के बाद तो विचारधारा का स्थान सत्ता प्राप्ति की होड़ ने ले लिया। आज देश में विचारधारा की राजनीति हाशिए पर खड़ी है, क्योंकि सबको सत्ता चाहिए। कल तक जो विचारधारा के आधार पर एक दूसरे की आलोचना करते थे, वे कुछ ही समय के बाद एक दूसरे के साथ खड़े दिखाई पड़ते हैं।
-बबली देवी नागलंका जोशी, श्रीमाधोपुर
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दलबदल दौर
अब राजनीतिक दलों में विचारधारा का कोई महत्व नहीं रह गया है। आया राम— गया राम , पलटू राम ही अब सरकारें गिराने और सरकारें बनाने का काम कर रहे हैं। दलों की विचारधारा व दल के लिए समर्पित विधायकों / सांसदों को मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिलता । दलबदलुओं को सीधा मंत्री पद से नवाजा जाता है। अब तो सब दलों की जैसे एक ही विचारधारा रह गई है ,कैसे भी हो सरकार बनाओ ।
-रणजीत सिंह भाटी राजाखेड़ी मंदसौर
अब राजनीतिक दलों में विचारधारा का कोई महत्व नहीं रह गया है। आया राम— गया राम , पलटू राम ही अब सरकारें गिराने और सरकारें बनाने का काम कर रहे हैं। दलों की विचारधारा व दल के लिए समर्पित विधायकों / सांसदों को मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिलता । दलबदलुओं को सीधा मंत्री पद से नवाजा जाता है। अब तो सब दलों की जैसे एक ही विचारधारा रह गई है ,कैसे भी हो सरकार बनाओ ।
-रणजीत सिंह भाटी राजाखेड़ी मंदसौर