स्वार्थ बड़ा कारण
किसी भी अपराध की प्राथमिक वजह स्वार्थ भी है। देश के कानून का लचीला होना भी आपराधिक सीढ़ी का काम करता है। यदि किसी भी अपराध के बदले में सख्त कानूनी सजा का प्रावधान हो तो अपराधों में अप्रत्याशित कमी देखने को मिलेगी। पारिवारिक संस्कार भी आपराधिक प्रवृत्ति को बढ़ाने और कम करने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
-विनोद दाधीच, मेड़ता सिटी, नागौर
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किसी भी अपराध की प्राथमिक वजह स्वार्थ भी है। देश के कानून का लचीला होना भी आपराधिक सीढ़ी का काम करता है। यदि किसी भी अपराध के बदले में सख्त कानूनी सजा का प्रावधान हो तो अपराधों में अप्रत्याशित कमी देखने को मिलेगी। पारिवारिक संस्कार भी आपराधिक प्रवृत्ति को बढ़ाने और कम करने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
-विनोद दाधीच, मेड़ता सिटी, नागौर
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अपराधियों को कड़ी सजा नहीं
रातों-रात अमीर बनने का सपना देखने वाले अपने ऊंचे शौक पूरे करने के लिए गलत तरीके से धन कमाने के लिए अपराध की राह चुन लेते हैं। अशिक्षा, गरीबी और बढ़ती बेरोजगारी से उपजी हताशा और कुंठा भी बढ़ते अपराधों की वजह बन रही है। सहनशीलता की कमी, अश्लील सामग्रियों की आसान उपलब्धता, अपराधियों को कड़ी सजा न होने या सजा में देरी इत्यादि कारणों से अपराधियों के हौसले बढ़ रहे हैं।
-भारती जैन, जयपुर
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रातों-रात अमीर बनने का सपना देखने वाले अपने ऊंचे शौक पूरे करने के लिए गलत तरीके से धन कमाने के लिए अपराध की राह चुन लेते हैं। अशिक्षा, गरीबी और बढ़ती बेरोजगारी से उपजी हताशा और कुंठा भी बढ़ते अपराधों की वजह बन रही है। सहनशीलता की कमी, अश्लील सामग्रियों की आसान उपलब्धता, अपराधियों को कड़ी सजा न होने या सजा में देरी इत्यादि कारणों से अपराधियों के हौसले बढ़ रहे हैं।
-भारती जैन, जयपुर
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पुलिस व प्रशासन की शिथिलता
देश में बढ़ते अपराधों के लिए पुलिस व प्रशासन की शिथिलता जिम्मेदार है। अपराधियों में पुलिस व कानून का खौफ नहीं रहा है। कई ऐसी घटनाएं देखने-सुनने में आती है, जिनमें अपराधियों द्वारा पुलिस पर ही हमला कर दिया जाता है। अपराधियों में भय व्याप्त होना अनिवार्य है। इसके लिए पुलिस प्रशासन को सुदृढ़ प्रक्रिया अपनानी होगी।
-पारुल कुमावत, चौमूं, जयपुर
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देश में बढ़ते अपराधों के लिए पुलिस व प्रशासन की शिथिलता जिम्मेदार है। अपराधियों में पुलिस व कानून का खौफ नहीं रहा है। कई ऐसी घटनाएं देखने-सुनने में आती है, जिनमें अपराधियों द्वारा पुलिस पर ही हमला कर दिया जाता है। अपराधियों में भय व्याप्त होना अनिवार्य है। इसके लिए पुलिस प्रशासन को सुदृढ़ प्रक्रिया अपनानी होगी।
-पारुल कुमावत, चौमूं, जयपुर
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मूल कारण बेरोजगारी
अपराधों का मूल कारण बेरोजगारी है। इसके अलावा आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया व परिवार के बुजुर्गों का भय नहीं होना भी है। कुछ समय पहले परिवार के लोगों का भय, उनकी इज्जत के ख्याल से लोग अपराध करने से डरते थे। अब लोगों की मानसिकता ही बदल चुकी है।
-राकेश जैन, वडोदरा
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अपराधों का मूल कारण बेरोजगारी है। इसके अलावा आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपया व परिवार के बुजुर्गों का भय नहीं होना भी है। कुछ समय पहले परिवार के लोगों का भय, उनकी इज्जत के ख्याल से लोग अपराध करने से डरते थे। अब लोगों की मानसिकता ही बदल चुकी है।
-राकेश जैन, वडोदरा
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दिखावा करना
अपराधों की मुख्य वजह है- बढ़ती बेरोजगारी, युवा पीढ़ी में सहनशीलता की कमी, कम समय और कम मेहनत में अमीर बनने की चाहत रखना। अपनी क्षमता से ज्यादा दिखावा करना भी अपराधों को बढ़ावा देते हैं।
-गोकुलसिंह आंवले, इन्दौर
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अपराधों की मुख्य वजह है- बढ़ती बेरोजगारी, युवा पीढ़ी में सहनशीलता की कमी, कम समय और कम मेहनत में अमीर बनने की चाहत रखना। अपनी क्षमता से ज्यादा दिखावा करना भी अपराधों को बढ़ावा देते हैं।
-गोकुलसिंह आंवले, इन्दौर
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खत्म हो गया है सजा का डर
अपराधियों को सजा का डर नहीं है। किसी भी अपराध की सजा देने में अपने देश का कानून कछुए की चाल चलता है। सजा में देरी से अपराधियों को बढ़ावा मिलता है। अपराधियों को अपने अपराध का पश्चाताप जब तक नहीं होगा, तब तक अपराध को रोकना मुश्किल है।
-रितु शेखावत, जयपुर
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अपराधियों को सजा का डर नहीं है। किसी भी अपराध की सजा देने में अपने देश का कानून कछुए की चाल चलता है। सजा में देरी से अपराधियों को बढ़ावा मिलता है। अपराधियों को अपने अपराध का पश्चाताप जब तक नहीं होगा, तब तक अपराध को रोकना मुश्किल है।
-रितु शेखावत, जयपुर
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अच्छे संस्कारों का अभाव
देश में बढ़ते अपराध का मुख्य कारण लोगों का देश की सभ्यता, संस्कृति, नैतिकता से दूर जाना और नशा है। अच्छे संस्कारों के अभाव इंसान को पथ भ्रष्ट करते हैं। अगर देश, समाज में बढ़ते अपराधों को रोकना है तो बच्चों को घर और शिक्षा संस्थाओं में नैतिकता का सबक जरूर पढ़ाना होगा।
-राजेश कुमार चौहान, जालंधर
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देश में बढ़ते अपराध का मुख्य कारण लोगों का देश की सभ्यता, संस्कृति, नैतिकता से दूर जाना और नशा है। अच्छे संस्कारों के अभाव इंसान को पथ भ्रष्ट करते हैं। अगर देश, समाज में बढ़ते अपराधों को रोकना है तो बच्चों को घर और शिक्षा संस्थाओं में नैतिकता का सबक जरूर पढ़ाना होगा।
-राजेश कुमार चौहान, जालंधर
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सिनेमा भी है कारक
हमारे समाज में अपराधों को बढ़ाने में सिनेमा की भूमिका भी कम नहीं है। फिल्में बनाते समय उसके दुष्प्रभाव को ध्यान में नहीं रखा जाता। बुजुर्गों से रहित एकल परिवार, जिसमें बच्चों को संस्कारित करने का प्रयास नहीं है, वहां भी आपराधिकता पनपती है।
-श्रीकृष्ण पचौरी, ग्वालियर
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हमारे समाज में अपराधों को बढ़ाने में सिनेमा की भूमिका भी कम नहीं है। फिल्में बनाते समय उसके दुष्प्रभाव को ध्यान में नहीं रखा जाता। बुजुर्गों से रहित एकल परिवार, जिसमें बच्चों को संस्कारित करने का प्रयास नहीं है, वहां भी आपराधिकता पनपती है।
-श्रीकृष्ण पचौरी, ग्वालियर
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बढ़ती जनसंख्या भी है कारण
जनसंख्या के विस्फोटक रूप से बढऩे से भी रोजगार के साधन नहीं मिल पाते और आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं होतीं। अपराधों पर अंकुश लगाना है तो हमें अपनी भारतीय संस्कृति की ओर वापस लौटना पड़ेगा।
-बलजीत सिंह, गांधीनगर, गुजरात
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जनसंख्या के विस्फोटक रूप से बढऩे से भी रोजगार के साधन नहीं मिल पाते और आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं होतीं। अपराधों पर अंकुश लगाना है तो हमें अपनी भारतीय संस्कृति की ओर वापस लौटना पड़ेगा।
-बलजीत सिंह, गांधीनगर, गुजरात
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सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास
वर्तमान समय में आपराधिक गतिविधियों में बढ़ोतरी का कारण समाज के सांस्कृतिक गतिविधियों व मूल्यों का ह्रास होना है। पाश्चात्य संस्कृति हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति पर हावी हो रही है। इससे युवा वर्ग में अपराधी प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिल रहा है।
-उदय सिंह, नीमकाथाना, सीकर
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वर्तमान समय में आपराधिक गतिविधियों में बढ़ोतरी का कारण समाज के सांस्कृतिक गतिविधियों व मूल्यों का ह्रास होना है। पाश्चात्य संस्कृति हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति पर हावी हो रही है। इससे युवा वर्ग में अपराधी प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिल रहा है।
-उदय सिंह, नीमकाथाना, सीकर
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कानून व व्यवस्था में सुधार जरूरी
आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग मे इंसान की महत्त्वाकांक्षा दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। असफलता से निराश होकर युवा वर्ग अपराध की तरफ रुख करते हैं और भविष्य तबाह कर लेते है। पैसे कमाने का लालच उन्हें धीरे-धीरे उस रास्ते पर ले जाता है, जहां से उनका सभ्य समाज में लौटना नामुमकिन-सा हो जाता है। कानून और व्यवस्था भी बहुत हद तक इसके लिए जिम्मेदार है, क्योंकि आज अपराध को राजनीति का प्रश्रय मिला हुआ है।
-गुमान दायमा, नागौर, राजस्थान
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आज के प्रतिस्पर्धात्मक युग मे इंसान की महत्त्वाकांक्षा दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। असफलता से निराश होकर युवा वर्ग अपराध की तरफ रुख करते हैं और भविष्य तबाह कर लेते है। पैसे कमाने का लालच उन्हें धीरे-धीरे उस रास्ते पर ले जाता है, जहां से उनका सभ्य समाज में लौटना नामुमकिन-सा हो जाता है। कानून और व्यवस्था भी बहुत हद तक इसके लिए जिम्मेदार है, क्योंकि आज अपराध को राजनीति का प्रश्रय मिला हुआ है।
-गुमान दायमा, नागौर, राजस्थान
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कानूनी पेचीदगियों का सहारा
मुख्य कारण कानून का कमजोर होना और उसकी पेचीदगियां हैं। अपराधी अपराध करने के बाद भी कानूनी गलियों का सहारा लेकर बच निकलता है। ऐसा होने के बाद वह और खुलकर अपराध करने लगता है।
-राम बाबू शर्मा, भरनी, टोंक
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मुख्य कारण कानून का कमजोर होना और उसकी पेचीदगियां हैं। अपराधी अपराध करने के बाद भी कानूनी गलियों का सहारा लेकर बच निकलता है। ऐसा होने के बाद वह और खुलकर अपराध करने लगता है।
-राम बाबू शर्मा, भरनी, टोंक
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गरीबी व शोषण भी हैं जिम्मेदार
अपराध गरीबी, शोषण, ईर्ष्या, हताशा एवं आतंक की भावना के कारण पैदा होता है। देश में एकल अपराधी एवं संगठित अपराधी हैं। एकल अपराधी को व्यक्तिगत प्रशिक्षण के माध्यम से सुधारा जा सकता है। संगठित अपराध राजनैतिक, धार्मिक एवं गैंग द्वारा नियोजित होता है। सामाजिक एवं स्वच्छ राजनैतिक क्रियाकलापों द्वारा इन तत्वों से निपटा जा सकता है।
-नरेन्द्र कुमार शर्मा, जयपुर
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अपराध गरीबी, शोषण, ईर्ष्या, हताशा एवं आतंक की भावना के कारण पैदा होता है। देश में एकल अपराधी एवं संगठित अपराधी हैं। एकल अपराधी को व्यक्तिगत प्रशिक्षण के माध्यम से सुधारा जा सकता है। संगठित अपराध राजनैतिक, धार्मिक एवं गैंग द्वारा नियोजित होता है। सामाजिक एवं स्वच्छ राजनैतिक क्रियाकलापों द्वारा इन तत्वों से निपटा जा सकता है।
-नरेन्द्र कुमार शर्मा, जयपुर
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नींव ही खोखली है
खाली जमीन पर खरपतवार पनपते देर नहीं लगती। इसे सीमित करने के लिए जरूरी है, उपयोगी फसल बोना। एकल परिवार, माता-पिता दोनों की आर्थिक आवश्यकता पूरी करने की मजबूरी के चलते व्यस्तता, किताबों की जगह टीवी और फोन का ले लेना आदि गिरते नैतिक मूल्यों के कारण बन गए हैं। इससे समाज में अपराधी प्रवृत्तियां बढ़ रही हैं।
-चित्रा चेलानी, पारादीप, ओडिशा
खाली जमीन पर खरपतवार पनपते देर नहीं लगती। इसे सीमित करने के लिए जरूरी है, उपयोगी फसल बोना। एकल परिवार, माता-पिता दोनों की आर्थिक आवश्यकता पूरी करने की मजबूरी के चलते व्यस्तता, किताबों की जगह टीवी और फोन का ले लेना आदि गिरते नैतिक मूल्यों के कारण बन गए हैं। इससे समाज में अपराधी प्रवृत्तियां बढ़ रही हैं।
-चित्रा चेलानी, पारादीप, ओडिशा