बंगाल चुनाव परिणाम सामने आने के बाद शुरू हिंसा का दौर चिंताजनक है। यकीनन हिंसा के बीज बोने का काम दिग्गज नेताओं के भाषणों से शुरू हुआ। अब हिंसा का ये ठीकरा एक-दूसरे पर फोड़ा जा रहा है। जनता, जन प्रतिनिधियों को नायक के रूप में देखती है, उनका अंधानुकरण करती है, उनके बहकावे में आकर हिंसा जैसी घिनौनी करतूतों को अंजाम देने में किंचित मात्र भी नहीं हिचकती है। इस प्रकार की हिंसा से हमारे देश की राजनीतिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था की कमजोरी स्पष्ट झलक रही है। राजनेताओं को राजनीतिक शुचिता एवं राजनीति को धर्म मानकर जनसेवा करनी चाहिए। जाति, धर्म, क्षेत्रवाद एवं निजी स्वार्थ के के लिए जनता को उकसाना नहीं चाहिए। खैर, जो भी हो, हिंसा किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं की जा सकती। दोषियों की धरपकड़ करनी चाहिए। उनकी पृष्ठभूमि की छानबीन कर वे जिस राजनीतिक दल से जुड़े हुए हैं, उस दल की मान्यता रद्द करनी चाहिए।
-सुनीता सांडेला, सरदारशहर
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पश्चिम बंगाल में चुनाव पश्चात हिंसा का मुख्य कारण यह है कि चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दलों ने आम जनता में साम्प्रदायिक द्वेष पैदा कर दिया है। जनता इन राजनीतिक दलों के छलावे को नहीं समझ पाती है। इसके साथ ही प्रशासनिक व्यवस्था की कमजोरी भी इसके लिए जिम्मेदार है, जो राजनीतिक दबाव के आगे अपने कर्तव्यों का पूरी तरह पालन करने में असफल हो रही है।
-राकेश पुरी गोस्वामी, फालना
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पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की प्रचंड जीत हुई है। इसके बाद राज्य में आगजनी, लूट और हत्या की वारदातें बेरोकटोक जारी हैं। यह वाकई चिंताजनक है। इस तरह की वारदातों को रोकना जरूरी है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को भी दखल देना चाहिए।
-बद्रीनारायण सुथार, भगवानगढ़, श्री गंगानगर
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अ सहिष्णुता का परिणाम
पश्चिम बंगाल में चुनाव परिणाम के बाद हिंसा असहिष्णुता व राजनीति के गिरते स्तर को बयां करती है। पश्चिम बंगाल में टीएमसी के एकछत्र राज को चुनौती देती भाजपा रास नहीं आ रही। लोकतंत्र में चुनाव से पूर्व के मतभेदों को भुलाकर जनता के विकास के लिए सत्ताधारी पार्टी को विपक्ष को भी तवज्जो देनी चाहिए। यही लोकतंत्र का मूल मंत्र है ।
-आजाद कृष्णा राजावत, निहालपुरा
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पश्चिम बंगाल में एक विशेष राजनीतिक दल के समर्थक भय तथा आतंक का वातावरण बनाने के लिए हिंसा का सहारा ले रहे हैं। उनका उद्देश्य आमजन को आतंकित कर हमेशा के लिए अपने ही राजनीतिक दल का समर्थन करने पर मजबूर करना है। लोकतंत्र में इस प्रकार की हिंसात्मक गतिविधियां सर्वथा अनुचित हैं, जो राजनीति के अपराधीकरण का ज्वलंत उदाहरण है
-रवि शर्मा, गंगापुर सिटी
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पश्चिम बंगाल की हिंसा ये बताती है कि वहां अब जो लड़ाई है वह सीधा भाजपा और टीएमसी की लड़ाई है। ऐसे में ममता बनर्जी अपने वर्चस्व को साबित करना चाहती है। वे यह संदेश देना चाहती हैं कि केंद्र में चाहे भाजपा हो, किन्तु जब बात पश्चिम बंगाल की आती है तो दबदबा टीएमसी का ही रहेगा।
-विवेक जैन, मंगलम सिटी, जयपुर
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जब चुनाव होते हैं तब नेता और कार्यकर्ता एक-दूसरे पर अनर्गल आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं। इससे हर किसी के दिल में कहीं न कहीं गहरी चोट लगती है। इसी के परिणामस्वरूप हिंसा होती है।
-शंकरलाल उपाध्याय, लाखुसर , बीकानेर
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ममता की हार के कारण हुई ङ्क्षहसा
पश्चिम बंगाल में चुनाव परिणाम के बाद हिंसा का मुख्य कारण नंदीग्राम में ममता बनर्जी की हार है। ममता की पार्टी के समर्पित कार्यकर्ताओं को दीदी की हार बर्दाश्त नहीं हो रही है। इसलिए पश्चिम बंगाल में चुनाव परिणाम के बाद हिंसा का बढऩा एक पूर्व नियोजित कार्यक्रम का हिस्सा लगता है।
डॉ. अशोक, पटना, बिहार
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चुनावी नतीजों के बाद हिंसा की ऐसी लपटें डराकर रख देती हैं। कारण चाहे जो भी हो, लेकिन यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। राजनीतिक दलों के साथ-साथ चुनाव आयोग को भी गंभीर होना पड़ेगा। सख्त कानून बनाने पड़ेंगे , नहीं तो ऐसी ही हिंसा हर बार देखने को मिलेगी और लोगों का लोकतंत्र पर से विश्वास उठ जाएगा।
-कुमकुम सुथार ,रायसिंहनगर श्रीगंगानगर
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पश्चिम बंगाल के कई हिस्सों से हिंसा की खबरें आने के बाद सोशल मीडिया तस्वीरों और वीडियो से भरा हुआ है। लोग हिंसा की पुरानी तस्वीर हालिया घटना से जोड़कर शेयर करने लगे हैं। ऐसी ही एक तस्वीर 3 साल पुरानी है जिसे हाल का बताया जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी, टीएमसी को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।
-आदर्श श्रीवास्तव, फतेहपुर
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बंगाल की राजनीति वामपंथियों के समय से ही रक्तरंजित रही है। वहां खूनी खेल से ही सत्ता का रास्ता जाता हैं। जो जितना ज्यादा खून खराब करता है, सत्ता उसी को मिलती है। वर्तमान खूनखराबा भी इसी प्रवृत्ति का हिस्सा है।
-ब्रह्म प्रकाश शर्मा करौली
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चुनाव में विभिन्न पार्टियों के बहुत सारे उम्मीदवार जनता के बीच अपना भाग्य आजमाते हैं, लेकिन फतह का ताज तो कुछ चुनिंदा प्रत्याशियों के सर को ही सुशोभित करता है। ऐसे में हार-जीत को लेकर हिंसा करना ठीक नहीं है। मुश्किल यह है कि पार्टियां एक दूसरे की कट्टर दुश्मन बन जाती हैं और ये दूषित स्तर की प्रवृत्ति हिंसा को जन्म देती है। राजनीतिक दलों को जनादेश स्वीकार कर हार का विश्लेषण करना चाहिए।
-अरविंद शर्मा, भगीना, झुंझुनू
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पश्चिम बंगाल में राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक वारदातें कम्युनिस्ट पार्टी के शासन काल से ही जारी हैं। तृणमूल कांग्रेस और भाजपा ने भी अपना जनाधार बनाने के लिए हिंसा को ही आधार बनाया। विधानसभा चुनावों के दौरान भी हिंसक वारदातें लगातार होती रही हंै और बड़े नेताओं ने भी अपने कार्यकर्ताओं को रोकने की कोशिश नहीं की, बल्कि बढ़ावा ही दिया। इसी का परिणाम है कि हिंसक वारदातें लगातार हो रही हैं।
-गिरीश कुमार जैन, इंदौर
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भारतीय जनता पार्टी सत्ता में नहीं आ पाई, तो उनके समर्थक पश्चिम में अराजकता फैला रहे हैं। ममता बनर्जी के समर्थक भी संयम नहीं रख रहे। नेताओं ने लोगों को धर्म के आधार पर बांट दिया है।
-जीतराम डिवांचली, लालसोट, दौसा
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पश्चिमी बंगाल में सत्ता पर काबिज होने के लिए चुनाव के पहले तथा बाद तक रक्तरंजित संघर्ष, दशकों से चला आ रहा है। यह खूनी परंपरा बन चुकी है। सत्ता हथियाने, अपना अस्तित्व तथा वर्चस्व कायम रखने के लिए, मुख्य प्रतिस्पर्धी पार्टियां खूनी संघर्ष का खेला खेलती रहती हैं। परिणामस्वरूप राजनीतिक हत्याएं होना अब आम बात हो चुकी है।
-कैलाश सामोता, शाहपुरा, जयपुर
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नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र में परिणाम के उलटफेर के बाद बीजेपी उम्मीदवार की जीत हिंसा की वजह मानी जा सकती है। चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े होना चिंतनीय स्थिति को दर्शाता है। परिणाम उलटफेर में साजिश की बू आती है।
-शिवजी लाल मीना,जयपुर
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भाजपा पहले तो उचित-अनुचित और मर्यादा का ध्यान रखे बिना चुनाव लड़ती है। अगर उसकी हार होती है तो वहां हिंसा फैलाने में भी गुरेज नहीं करती। पिछले दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी करारी हार के बाद भी उसने ऐसा ही किया था। अब बंगाल में भी यही हो रहा है।
-रमेश छाबड़ा, सूरतगढ़
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पश्चिम बंगाल में चुनाव परिणाम के बाद हिंसा का मुख्य कारण विपक्ष के समर्थकों में खौफ पैदा करना है। सत्ताधारी समर्थकों की दबंगई का खमियाजा विपक्ष के समर्थकों को अपनी जान देकर भुगतना पड़ रहा है। आज पूरा हिन्दुस्तान देख रहा है कि बंगाल में क्या हो रहा है?
-नीलिमा जैन, उदयपुर
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हिंसा कभी भी, कहीं भी, किसी भी स्तर पर उचित नहीं ठहराई जा सकती है। सभी दलों के जिम्मेदार नेताओं को आगे आकर समझाइश करनी चाहिए। हिंसा में शामिल लोगों को भी समझना चाहिए कि नेता दलबदल करते रहते हैं। इसलिए किसी के बहकावे में आकर ङ्क्षहसा न करें।
-विनोद यादव, हनुमानगढ़