सरताज ने साफ किया कि एक देशद्रोही की लाश वे कैसे ले सकते हैं। औलाद कितनी भी निकम्मी क्यों न हो जाए, मां-बाप के लिए औलाद ही होती है। सरताज ने दिखा दिया कि निकम्मेपन और देशद्रोही में बहुत बड़ा अन्तर होता है।
सरताज की सोच उन लोगों के लिए सबक होनी चाहिए जो थोड़े से लालच के लिए ईमान बेचने से बाज नहीं आते। आए दिन देश के अलग-अलग हिस्सों में आतंककारी और उनको पनाह देने वाले पकड़े जाते हैं। चंद रुपयों के लिए कश्मीर घाटी में लोग सुरक्षा बलों पर पथराव करने तक बाज नहीं आते।
आतंककारियों की मदद कोई धर्म के नाम पर करता है तो कोई लालच में। ऐसे लोगों को सरताज से सीख लेनी चाहिए। जिस मिट्टी में हम जन्मे, क्या उससे गद्दारी करना ठीक है? बेगुनाहों के खून से होली खेलने को भला कौन जिहाद कहेगा? इराक और सीरिया से लेकर समूची दुनिया में आतंकवाद के नाम पर आज जो हो रहा है, उससे फायदा किसी को नहीं होने वाला।
आतंकवाद की आग में मानवता जल रही है। ये समय मानवता से प्यार करने वालों के लिए एक मंच पर आने का है। आतंकवाद से मुकाबला न अकेले सरकारें कर सकती हैं और न कोई संगठन। आतंकवाद को पराजित करने के लिए हर किसी को आगे आना होगा।
कानपुर के सरताज ने यही तो किया है। कश्मीर में मुठभेड़ के दौरान मारे जाने वाले आतंककारियों की अंतिम यात्रा में हजारों लोग शामिल होते हैं। बिना ये सोचे कि उनके इस कृत्य से देश कमजोर होगा। आतंकवाद की आग ने भारत को खूब जलाया है।
सीमापार बैठे आतंककारियों को देश के भीतर से समर्थन नहीं मिले तो भी आतंकवाद पर लगाम लगाई जा सकती है। इस मुद्दे पर राजनीति करने वाले दलों को भी समझना होगा। आतंकवाद के मुद्दे पर राजनीति का सीधा-सा मतलब देश को कमजोर करना ही माना जाएगा।