कांग्रेस में मनमुटाव और अंदरूनी खींचतान से पार्टी की साख पर भी प्रभाव पड़ता है। कांग्रेस में विरोध स्वर के उठ रहे हैं। शीर्ष नेतृत्व पर सवाल उठाए जा रहे हैं। पार्टी में ही मनमुटाव पैदा होता है, तो चुनाव पर भी इसका असर नजर आएगा। कांग्रेस नेताओं को एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप से बचना चाहिए। कांग्रेस सबसे पुरानी पार्टी है। पार्टी नेताओं को एकजुट होकर लोगों का विश्वास जीतने पर ध्यान देना चाहिए।
-कान्तिलाल मांडोत, सूरत
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वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की नाराजगी पार्टी के लिए बहुत ही नुकसानदेह साबित हो सकती है। जिन नेताओं ने अपनी पूरी जिंदगी पार्टी की सेवा में लगा दी और उनको महत्व न देना बहुत ही चिंताजनक है। इस पार्टी में केवल एक ही परिवार का प्रभुत्व चला आ रहा है। यदि पार्टी को जीवित रखना है, तो जमीन से जुड़े नेताओं को महत्व देना होगा। पार्टी को मजबूत करने के लिए छोट-से-छोटे कार्यकर्ता का भी महत्त्व समझना होगा।
-कैलाश चन्द्र मोदी, सादुलपुर, चूरू
कांग्रेस पार्टी का इतिहास बताता है कि पार्टी पर नेहरू-गांधी परिवार का वर्चस्व हमेशा रहा है। पार्टी में बड़े-बड़े नेता हुए हैं। बरसों तक कांग्रेस ने भारत पर शासन किया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी से पार्टी की विचारधारा पर कोई असर नहीं पड़ता, बल्कि नाराज नेताओं का भविष्य खतरे में पड़ सकता है। कांग्रेस सात साल से सत्ता में नहीं है। इसका आशय यह नहीं है कि कांग्रेस के पास नेतृत्व की कमी है।
-नरेन्द्र कुमार शर्मा, जयपुर
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जम्मू में जी-23 गुट के नेताओं का जमावड़ा अंदरूनी कलह का सबूत है। भगवा साफे पहनने, मंच पर सोनिया -राहुल-प्रियंका की तस्वीरें न होने, असंतुष्टों के तीखे तेवर राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने की राह में रोड़े अटकाने का प्रयास लगता है। इसका जनता में गलत संदेश जाएगा।
-शिवजी लाल मीना, जयपुर
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देश की सबसे पुरानी पार्टी में आज जो संघर्ष चल रहा है, वह चिंताजनक है। कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता अपनी ही पार्टी से नाराज चल रहे हैं। ऐसी परिस्थिति केवल और केवल एक परिवार के कारण ही निर्मित हुई है। लोकतंत्र में परिवारवाद के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। यदि किसी पार्टी में परिवारवाद के आधार पर अयोग्य व्यक्ति को आगे किया जाता है, तो उस पार्टी का नुकसान ही होता है। कांग्रेस पार्टी की भी यही स्थिति है। वर्तमान नेतृत्व में पार्टी चलाने की क्षमता नहीं है और वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को पार्टी में आगे आने नहीं दिया जा रहा है। इससे टकराव की स्थिति बनी है।
-शिवम अवस्थी, उत्तर बस्तर कांकेर
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एक मुद्दत से कांग्रेस में सभी छोटे-बड़े फैसलों पर आखिरी मोहर गांधी परिवार द्वारा ही लगाई जाती रही है। कांग्रेस नाम मात्र की लोकतांत्रिक पार्टी बनकर रह गई है। इसलिए वरिष्ठ नेताओं के विरोध से कहीं न कहीं लोकतांत्रिक मूल्यों के पुनस्र्थापना होने की संभावना बढ़ेगी, जो कि पार्टी के साथ-साथ भारत जैसे एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के उत्थान लिए भी अति-आवश्यक है।
-स्वरूप गोस्वामी, इंद्रा नगर, बाड़मेर
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इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कांंग्रेस का परिवारवादी मोह उसे डुबो रहा है। माना कि पहले भी परिवारवाद था, परन्तु तब नेतृत्व सशक्त था और गैर कांग्रेसी दल कमजोर। आज भाजपा के पास सत्ता है, साधन है और सशक्त टीम भी, जबकि कांग्रेस से वरिष्ठ, अनुभवी और समर्पित लोग दूर जा रहे हैं। वरिष्ठ नेताओं का कांग्रेस से दूर जाना पार्टी के लिए घातक सिद्ध हो सकता है।
-देवेंद्र नेनावा, इंदौर
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कांग्रेस नेताओं का आपस में तालमेल कभी रहा ही नहीं। आए दिन आरोप-प्रत्यारोप लगाना इनका जन्मसिद्ध अधिकार हो गया है। इससे पार्टी के अंदर अंतरकलह तेजी से बढ़ी है। पार्टी में अंदरूनी मनमुटाव भी काफी हद तक पार्टी को नुकसान पहुंचा सकता है।विपक्षी पार्टी होने के बावजूद उनमें आपसी फूट दिखाई देती हैं, वरिष्ठ नेता भी आपस में लड़ते रहते हैं। इसका लाभ भाजपा और अन्य पार्टियों को मिलना स्वाभाविक है।
-योगेश खोबरागड़े, भोपाल
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कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी कर उन्हें हाशिये पर धकेलना निश्चय ही आने वाले समय में घातक सिद्ध होगा। देश की जनता ने वंशवादी कांग्रेस को पूरी तरह नकार दिया हैं। जिन नेताओं ने खून-पसीना बहा कर कांग्रेस को जिंदा रखा उसी कांग्रेस को युवा नेता चापलूसी व जी हुजूरी से तबाह करने पर तुले हैं। अच्छा तो यह है कि कांग्रेस के अनुभवी नेता वंशवाद का दामन छोड़कर राष्ट्रहित में असली कांग्रेस का फिर से उदय करें।
-गायत्री चौहान, जोधपुर