रोडवेज बसों की ओर से तय किए गए रूटों पर अवैध बसों का संचालन थमने का नाम नहीं ले रहा। इस साल जनवरी के अंत तक रोडवेज प्रबंधन को चार सौ से ज्यादा शिकायतें इस बाबत मिली थीं। शिकायतों के बाद जुर्माना वसूली की कार्रवाई भी हुई, पर रोडवेज अफसर इन बसों को बंद करने में लाचारी जताने के अलावा कुछ नहीं कर पाए। बस संचालकों के राजनीतिक रसूखात भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं। अब तो एक कदम और बढ़कर परिवहन विभाग ने बसों में माल ढुलाई करने की इजाजत भी दे दी है। यह बात और है कि बस संचालकों को इसके लिए लाइसेंस लेना होगा। लाइसेंस लेने के बाद मनमानी ढुलाई पर कैसे अंकुश लग पाएगा, इसकी विभाग के पास कोई तैयारी नहीं है। तभी तो यह संदेह व्यक्त किया जा रहा है कि मोटर वाहन अधिनियम के प्रावधानों का जमकर उल्लंघन होने की आशंका बढ़ गई है। परिवहन विभाग साल-दर-साल रोडवेज के अफसरों को घाटे के कारण गिनाते हुए परिपत्र जारी कर खानापूर्ति करता रहा है। परिपत्र में बिना परमिट के बसों के संचालन तथा निगम की बसों के आगे-आगे निजी बसों के संचालित होने से राजस्व के नुकसान की दुहाई दी जाती है। अब सरकार इन्हीं कारणों को दरकिनार कर लीपापोती के नए बहाने तलाशने लगे तो कोई अचरज नहीं। (ह.पा.)