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कहां है कानून?

Published: Aug 02, 2017 12:35:00 am

नेताओं को न पुलिस पर भरोसा रह गया है और न ही कानून पर। मध्यप्रदेश के
सतना में एक डकैत ने फिरौती के लिए एक नेता के बेटे का अपहरण कर लिया तो
नेता ने डकैत के पूरे परिवार को ही उठवा लिया।

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सतना की एक घटना ने समूचे देश को स्तब्ध करके रख दिया है। साथ ही यह सोचने को मजबूर कर दिया है कि देश की राजनीति और राजनेता आखिर किस हद तक गिरते जा रहे हैं। नेताओं को न पुलिस पर भरोसा रह गया है और न ही कानून पर। मध्यप्रदेश के सतना में एक डकैत ने फिरौती के लिए एक नेता के बेटे का अपहरण कर लिया तो नेता ने डकैत के पूरे परिवार को ही उठवा लिया। डकैतों का काम तो है ही डकैती डालना और अपहरण करना। लेकिन क्या किसी अपहरण का जवाब अपहरण से हो सकता है? वो भी नामी डकैत के परिवार का।

सतना की चौंकाने वाली ये घटना सिर्फ सतना के एक राजनेता के चरित्र का वर्णन नहीं करती। देश की तमाम राजनीति आज जिस दिशा में जा रही है वहां अधिकांश राजनेता बदले की भावना में यकीन करने लगे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि ये कानून को अपने हाथ में लेने से भी बाज नहीं आते। चिंता की बात यह है कि जनता को पुलिस और कानून पर भरोसा करने की सीख देने वाले यही नेता खुद कानून पर भरोसा नहीं करते।

नामी डकैत के माता-पिता और भाई का अपहरण कराने वाले सतना के नेता को कानून पर भरोसा होता तो पहले वह अपने बेटे के अपहरण की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज कराता। यह तो सतना की ये खबर बाहर आ गई तो अखबारों की सुर्खियां बन गईं। लेकिन नेताओं से जुड़ी कितनी ही खबरें ऐसी होती हैं जो जनता के सामने तक आ ही नहीं पातीं। देशभर में सरकारी खजाने की लूट का कहीं खुलासा होता है तो इनमें नेता और इनके परिजन ही आगे रहते हैं।

कहीं कमीशन के नाम पर लूट तो कहीं काम कराने की एवज में रिश्वत के नाम पर लूट। पुल निर्माण का काम हो तो उसमें भी सेंधमारी की जाती है। अस्पताल भवन के निर्माण में भी लूट-खसोट की खबरें सामने आती रहती हैं। हथियारों की खरीद में होने वाले घोटालों से तो पूरा देश वाकिफ है। इसे क्या किसी डकैती से कम माना जा सकता है?

बात आर्थिक घोटालों तक ही सीमित नहीं रह गई है। संसद और विधानसभाओं में हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों में लिप्त लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो राजनीति का अपराधीकरण तेज गति से हो रहा है। लेकिन चिंता की बात ये कि कोई भी राजनीतिक दल इसे लेकर चिंतित नहीं है। चुनाव आयोग भी ऐसे अपराधियों पर लगाम लगाने में विवश नजर आ रहा है।

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