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जहां है दृश्य से बड़ी अदृश्य की सत्ता

कलाओं में बड़ा यथार्थ वह नहीं होता है जो दिखाई देता है, वह होता है जो दिखने के बाद मन में घटता है। वैचारिक रूप से संपन्न कलाकृतियां इसीलिए आकृष्ट करती हैं।

जयपुरAug 11, 2024 / 09:54 pm

Gyan Chand Patni

डॉ. राजेश कुमार व्यास
संस्कृतिकर्मी, कवि और कला समीक्षक
न्यूयॉर्क टाइम्स की हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्वभर के युवाओं में बीते जमाने की बात रही सुलेखन कला या कहें कैलिग्राफी के प्रति रुचि तेजी से बढ़ रही है। सुलेखन दृश्य कला है। इसमें कलम, स्याही, ब्रश से अक्षरों में डिजाइन कर कुछ कहा जाता है। माने जितना दृश्य महत्त्वपूर्ण है, उतना ही अदृश्य भी है। असल में युवाओं में यह सुलेखन की रुचि भर नहीं है। यह ध्यान के ज्ञान से जुडऩे की प्रक्रिया है। कलाओं में बड़ा यथार्थ वह नहीं होता है जो दिखाई देता है, वह होता है जो दिखने के बाद मन में घटता है। वैचारिक रूप से संपन्न कलाकृतियां इसीलिए आकृष्ट करती हैं। कुछ दिन पहले कोलकाता जाना हुआ। यह देखकर सुखद अचरज हुआ कि देश के ख्यात कलाकार युसूफ की कलाकृतियों को देखने के लिए महानगर का बहुत बड़ा युवा वर्ग आया। उनकी कलाकृतियों को मुम्बई, लखनऊ, चेन्नई, पांडिचेरी, कोलकाता आदि शहरों में प्रदर्शित किया जा रहा है।
महत्त्वपूर्ण यह भी है कि कलादीर्घाओं में हर बार उनकी नई कलाकृतियां प्रदर्शित होती रही है। मसलन कोलकाता की आकृति आर्ट गैलरी में युसूफ की कलाकृतियां सुलेखन की भांति अर्थ की विरल छटाएं बिखेरती लुभा रही थीं। प्रकृति और जीवन वहां एकाकार हो रहा था। एक कलाकृति में बड़ी सी गर्दन और फिर कोई चेहरा। पर थोड़ा ठहरकर, ठिठककर देखेंगे तो पाएंगे वृक्ष है, भरी पूरी डालों का, कुछ टेढ़ा हुआ सा। यही होता है, एब्सट्रेक्ट अर्थ के आग्रह से मुक्त होती है। रंग, रूप और रेखाएं वहां स्वयं प्रतिष्ठित होकर अर्थ की भांति-भांति की छटाएं रचती हंै। युसूफ की कलाकृतियां घूंट-घूंट आस्वाद के लिए उकसाती हैं। वहां जैसे कथा कोलाज हैं। गोल-मटोल पृथ्वी इंक से बरती रंग लय में औचक अंडाकार होती दो भागों में विभक्त हो रही हैं। उन्हें देखने से कड़कती बिजली, पेड़, पानी, आकाश और ग्रह-नक्षत्रों की अनुभूति होती है। कहीं रंग लहर से निकल स्वयमेव लेटे हुए व्यक्ति की नींद से हमें साक्षात करा रहे हैं तो कहीं टेढ़े और खड़ी लाइन के आकार में इमारत, व्यक्ति, सीढ़ी और जमीन के टुकड़े संग कहीं कोई कस्बाई जीवन सांस लेता नजर आता है।
भारत भवन के पूर्व निदेशक जगदीश स्वामीनाथन के साथ युसूफ ने आरंभ में आदिवासी कलाओं का निरंतर अन्वेषण किया तो वहां का भी बहुत-कुछ उनकी कला में बाद में समाता चला गया। पेड़ की शाखाओं और उनसे झरते पत्तों की अनुभूतियों को टेक्सचर में जैसे उन्होंने घोल दिया है। वह कहते भी हैं, पेंटिंग जीवंत होती है। इसलिए कि उसमें ऊर्जा होती है। ऊर्जा का कोई एक रूप नहीं होता। वह बदलता रहता है। इसी तरह कला ऊर्जा के रूपाकार ग्रहण कर हमें लुभाती है। युसूफ की कलाकृतियां संवेदना से भरी-पूरी हंै, दृश्य आख्यान सरीखी। जो कुछ वहां है, लयात्मक है। एक खास तरह की एकांतिका वहां है। औचक कोई पहाड़ पेड़ में रूपांतरित हो जाता है, पेड़ पहाड़ में। फन फैलाए नाग और उसको मनुष्य की दो बाहों का घेरा जैसे आगे बढऩे से रोक रहा है। इसी तरह पत्तियां हैं, पेड़ से बिछड़ी पर हवा में ठहरी सी। कला में यही होता है, दृश्य से बड़ी वहां अदृश्य की सत्ता होती है। युसूफ की कलाकृतियां इसका उदाहरण हंै। युवाओं में कला के जरिए ध्यान के ज्ञान में प्रवेश कराती हुई।

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