कालेधन को समाप्त करने के लिए केंद्र सरकार डाल-डाल चल रही है तो कालेधन के सौदागर पात-पात चलते नजर आ रहे हैं। पांच सौ एवं एक हजार रुपए के नोटों का चलन बंद करने के कदम को सरकार जहां कालेधन पर प्रहार के रूप में देख रही है, वहीं दो नंबर का पैसा रखने वाले इसका तोड़ तलाशने में जी-जान से जुट गए हैं।
जन-धन खातों में शुरू हो चुकी धनवर्षा से लेकर हवाला कारोबार और कृषि आय के जरिए कमाई दिखाकर कालेधन को सफेद करने की खबरें बाहर आने लगी हैं। कर सलाहकार ऐसे तोड़ सुझा रहे हैं ताकि कालाधन ‘सफेद’ बन जाए। सरकार ने अगर आठ-दस महीने की तैयारी के बाद नोटबंदी का कदम उठाया है तो जाहिर है कि ऐसे तोड़ निकालने की आशंकाओं का आकलन उसने भी कर लिया होगा। प्रधानमंत्री देश की आर्थिक सेहत सुधारने के लिए देश से 50 दिन मांग रहे हैं।
कालेधन और भ्रष्टाचार के जंजाल में जकड़ा देश प्रधानमंत्री को 50 नहीं 100 दिन भी देने को तैयार हो जाएगा। बशर्ते बीमारी जड़ से साफ हो! ऐसा न हो कि अच्छी मंशा होते हुए भी यह कवायद परवान नहीं चढ़ सके। कालेधन और भ्रष्टाचार से लडऩे का संकल्प हर सरकारें दोहराती रही हैं।
चुनावी घोषणा-पत्रों में लोक-लुभावन वायदे हर राजनीतिक दल वर्षों से करते आ रहे हैं लेकिन आज तक हुआ कुछ नहीं। मर्ज है कि बढ़ते-चढ़ते लाइलाज बीमारी में तब्दील हो चुका है। ऐसे दौर में बड़े नोट बंद करने का जो कड़ा फैसला लिया गया है वह फलीभूत होता भी नजर आना चाहिए। अमूमन देखने में यही आता है कि सरकारें जो भी बड़े फैसले लेती आई हैं उसके पीछे मंशा राजनीतिक ही रहती आई है। ये फैसला वोटों की राजनीति से अलग नजर आए, इसके लिए कालेधन को सफेद बनाने के तरीके अपनाने वालों पर न सिर्फ कड़ी नजर रखनी होगी बल्कि उन्हें बेनकाब भी करना चाहिए।