अगले दिन 25 मार्च को मजदूरों ने गांव की ओर पैदल कूच कर दिया। एक साथ हजारों-हजार और अधिकारी ‘वर्क फ्रॉम होम’ की तर्ज पर। किसी की नींद नहीं उड़ी। प्रधानमंत्री ने 24 मार्च को रात 8 बजे पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा करते हुए कहा था कि ‘लापरवाही की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। जो जहां है, वहीं रहे’। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का समर्थन तो किया था, किन्तु कल राजस्थान दिवस पर उन्होंने कहा या कहना पड़ा कि ‘मेरी अपील की यदि गंभीरता से पालना होती तो बेहतर होता’।
जिस लोकतंत्र में नेतृत्व लाचार नजर आए, सर्वोच्च नेतृत्व क्षमा मांगे तो जनता की स्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है। क्यों नहीं हर स्तर पर लापरवाही की निष्पक्ष जांच कराई जाए। जो निकम्मे, अपराधी मानसिकता वाले, सरकार के आदेशों की अवहेलना करते नजर आएं, उन्हें सजा मिले और सेवा मुक्त भी तुरन्त-आपातकाल की स्थिति मानते हुए-किया जाए।
अचानक उद्योग बंद हो गए, अधिकारी बेखबर। क्या इस परिस्थिति को योजना बनाकर नियंत्रित नहीं किया जा सकता था। क्या यह अचानक हो गया? नहीं। अधिकारियों ने रुचि नहीं दिखाई। सम्पूर्ण देश के उद्योग एक ही दिन बंद हो गए।
उद्योगपतियों की सूझबूझ और संवेदनहीनता का और प्रमाण क्या चाहिए। उनको भी प्रशासन से चर्चा करनी चाहिए थी। जब बसें, रेलें, हवाई यात्राएं बंद थीं तो क्या दिखाई नहीं दे रहा था कि मजदूर कहां जाएगा? अधिकारी की नौकरी को खतरा होता तो यह सब नहीं होता। जब मजबूरी में राज्यों को बसें लगाकर लोगों को भेजना पड़ा, तो क्यों नहीं उद्योग बंद करने के साथ ही यह फैसला हो जाता। लोगों को सडक़ पर कष्ट भी नहीं उठाने पड़ते, न ही कोरोना के वायुमण्डल को और दूषित करना पड़ता। सरकार के किसी बंदे को अनुमान नहीं है कि पिछले 3-4 दिनों में देश भय के किस वातावरण से गुजरा है। मौत का यह भय मौत से भी बड़ा रहा है। क्यों राज्यों ने केन्द्र की एडवाइजरी को लागू नहीं किया? क्यों इस छंटनी तथा पलायन के मुद्दे पर केन्द्र और राज्यों में समन्वय की आवश्यकता महसूस तक नहीं हुई? उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों ने तो आने वालों के प्रवेश को ही रोक दिया। वाह रे, लोकतंत्र! मेरे लिए मेरा गांव ही विदेश हो गया! इस दुर्घटना में देश की एक नई तस्वीर उभरकर सामने आई है। प्रवासी मजदूरों के प्रति संवेदना नहीं-अपने ही देश में।
केन्द्रीय नेतृत्व के लॉकडाउन के प्रोटोकॉल का उल्लंघन सहजता से हो रहा है, किसी स्तर पर कोई पीड़ा ही नहीं। अब तीसरी बार केन्द्र को निर्देश जारी करने पड़े। कलक्टर और एस.पी. को व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार ठहराया जाएगा, जो कैडर में आमतौर पर सबसे जूनियर होते हैं। जवाबदारी केन्द्र और राज्यों के वरिष्ठ सेनापतियों के सिर पर होनी चाहिए। बाकी को लगाना उनका दायित्व हो। अभी समस्या की शुरूआत है। सीमा सील कर दी और पलायन जारी है। बांग्लादेश सीमा से लोग पार जा सकते हैं, तो उदयपुर की सीमा तो घर की है।
केन्द्र सरकार ने तो एक 1.7 लाख करोड़ का बजट राहत के लिए जारी कर दिया। कोई क्रियान्विति को भी नियंत्रित करे यह आवश्यक है। हमारे बीपीएल का अनाज आज भी बाजार में बिकता है। स्थिति गंभीर है। देश जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है। ऐसे में राज्यों की लापरवाही के लिए प्रधानमंत्री को क्षमा मांगनी पड़े, इस कंलक को तुरंत मिटाने के प्रयास करने चाहिए।