भगवान महावीर ने उस व्यक्ति को भक्त माना है, जो वित्त-वैभव के लिए या दूसरी लौकिक आकांक्षा से प्रेरित होकर भक्ति या उपासना नहीं करता। आप लोग धर्म की ओट में भी ऐसे काम करते हैं, जिससे संसार की वृद्धि हो रही है। आपकी उपासना में इच्छा और आकांक्षा न हो, तभी वास्तविक वीतरागता, वास्तविक स्वरूप ज्ञात हो जाएगा।
आज परिग्रह के पीछे जीवन इतना व्यस्त हो गया कि उपासना के दौरान भी विचारों की तरंगें चलती रहती हैं। आप सोचते हैं कि किसी खास स्थान की भगवान की मूर्ति में चमत्कार है। महावीर अथवा अन्य वीतरागी भगवान कोई चमत्कार नहीं दिखाते। चमत्कार का बहिष्कार कर, विषयों का तिरस्कार कर, नमस्कार करें, इसी में कल्याण निहित है।
– (आचार्य विद्यासागर एक प्रख्यात दिगम्बर जैन आचार्य हैं। उन्हें उनकी विद्वत्ता और तप के लिए जाना जाता है। आचार्य हिन्दी, अंग्रेजी आदि 8 भाषाओं के ज्ञाता हैं।)
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