नरेगा के नाम में महात्मा गांधी जोड़ देने से इसका न तो परिमार्जन हुआ, न ही अनियमितताओं या अवैध धन निकासी का माध्यम बन चुकी इस पवित्र और ठोस कार्य योजना का वास्तविक लक्ष्य साधा जा सका। आरंभ से ही गरीब मजदूरों को काम के बदले उचित मजदूरी देने के इस आकर्षक अभियान की राह में रोड़े अटकाए जाते रहे हैं।
बिचौलियों, ठेकेदारों और सरकारी अफसरों के बीच राशि की बंदरबांट का वंशानुगत और पारंपरिक रोग इस पवित्र रोजगार परक योजना को भी क्षतिग्रस्त कर चुका है। पिछले ही साल यूपी के महाराजगंज जनपद के परतावल और दूसरे प्रखंडों में सरकारी कर्मचारियों और ठेकेदारों तथा मनरेगा में नियुक्त हुए निरीक्षकों की मदद से करोड़ों की अवैध निकासी का मामला सामने आया था।
यह सब बंद हो चुकी निष्क्रिय आइडी रिओपन कर बिना काम कराए फर्जी तरीके से होता रहा। मामला प्रकाश में आया तब परतावल ब्लॉक के बीडीओ ने 25 लाख 87 हजार रुपए के गबन का पहला केस दर्ज करवाया। मामले में ५ केस दर्ज करवाए गए। आगरा में भी ऐसे ही मामले का पर्दाफाश हुआ, तो दिखावे के लिए कार्रवाई की चाबुक चलाई गई।
बिहार के मुंगेर समेत कई जिलों में फर्जी पहचान-पत्र के जरिए मजदूरी की रकम निकालने के मामले सामने आ चुके हैं। यह खुलासा भी हो चुका है कि असली आइडी पर निकासी की गई, पर मजदूरों को या तो भुगतान ही नहीं किया गया या बहुत कम भुगतान हुआ।
मामलों पर कार्रवाई होने के बाद भी यह सब जारी रहता है। सरकार सही निगरानी और नियमित सोशल ऑडिट कराकर इस योजना को भ्रष्टाचार से मुक्त करे। यदि यह संभव नहीं हो तो नए फॉर्मूले पर किसी दूसरी योजना को लागू करे।
ग्रामीणों की पूरी भागीदारी और वाजिब निगरानी से भी इस कार्यक्रम का पात्र लोगों को लाभ मिल सकता है। वरना मनरेगा कार्यक्रम यूं ही भ्रष्टाचार और अनियमितता का शिकार होता रहेगा। योजनाकारों को भी इस बाबत मंथन करना होगा।
बिचौलियों, ठेकेदारों और सरकारी अफसरों के बीच राशि की बंदरबांट का वंशानुगत और पारंपरिक रोग इस पवित्र रोजगार परक योजना को भी क्षतिग्रस्त कर चुका है। पिछले ही साल यूपी के महाराजगंज जनपद के परतावल और दूसरे प्रखंडों में सरकारी कर्मचारियों और ठेकेदारों तथा मनरेगा में नियुक्त हुए निरीक्षकों की मदद से करोड़ों की अवैध निकासी का मामला सामने आया था।
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यह सब बंद हो चुकी निष्क्रिय आइडी रिओपन कर बिना काम कराए फर्जी तरीके से होता रहा। मामला प्रकाश में आया तब परतावल ब्लॉक के बीडीओ ने 25 लाख 87 हजार रुपए के गबन का पहला केस दर्ज करवाया। मामले में ५ केस दर्ज करवाए गए। आगरा में भी ऐसे ही मामले का पर्दाफाश हुआ, तो दिखावे के लिए कार्रवाई की चाबुक चलाई गई।
बिहार के मुंगेर समेत कई जिलों में फर्जी पहचान-पत्र के जरिए मजदूरी की रकम निकालने के मामले सामने आ चुके हैं। यह खुलासा भी हो चुका है कि असली आइडी पर निकासी की गई, पर मजदूरों को या तो भुगतान ही नहीं किया गया या बहुत कम भुगतान हुआ।
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भ्रष्टाचार व छुआछूत सबसे बड़ा दंश
आखिर मनरेगा जैसी योजनाओं को भ्रष्टाचार और अनियमितता से मुक्त करने की सूझबूझ क्यों नहीं दिखाई जाती। समय पर सोशल ऑडिट से अनियमितताएं उजागर तो होती हैं, पर बिचौलियों, ठेकेदारों और सरकारी बाबुओं से टकराव के खतरे भी बने रहते हैं।मामलों पर कार्रवाई होने के बाद भी यह सब जारी रहता है। सरकार सही निगरानी और नियमित सोशल ऑडिट कराकर इस योजना को भ्रष्टाचार से मुक्त करे। यदि यह संभव नहीं हो तो नए फॉर्मूले पर किसी दूसरी योजना को लागू करे।
ग्रामीणों की पूरी भागीदारी और वाजिब निगरानी से भी इस कार्यक्रम का पात्र लोगों को लाभ मिल सकता है। वरना मनरेगा कार्यक्रम यूं ही भ्रष्टाचार और अनियमितता का शिकार होता रहेगा। योजनाकारों को भी इस बाबत मंथन करना होगा।
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