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आधी आबादी: विज्ञान और तकनीक से दूर क्यों हैं महिलाएं

locationनई दिल्लीPublished: May 17, 2021 09:01:28 am

– महिलाएं अपार क्षमता के बावजूद विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में अपना स्थान बनाने में कामयाब नहीं हुई हंै। इस विषय पर चिंतन-मनन की जरूरत है।

आधी आबादी: विज्ञान और तकनीक से दूर क्यों हैं महिलाएं

आधी आबादी: विज्ञान और तकनीक से दूर क्यों हैं महिलाएं

ऋतु सारस्वत

कोविड-19 महामारी ने इंसानों की बेहतरी और वजूद के लिए विज्ञान, टेक्नोलॉजी और नवाचार की अहमियत को रेखांकित किया है, परंतु यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आधी आबादी अपार क्षमताओं के बावजूद इस क्षेत्र में अपेक्षित स्थान बनाने में कामयाब नहीं हो पाई है। इसके पीछे दशकों से स्थापित वह पूर्वाग्रह है, जो यह तथ्य स्थापित करने का निरंतर प्रयास करता है कि विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित जैसे विषय लड़कियों के लिए नहीं हैं, जबकि कुछ समय पूर्व साठ देशों में किए गए अध्ययन ने इस सत्य को उद्घाटित किया कि विज्ञान विषय की प्राथमिकता का जैविकता से कोई संबंध नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक एवं सामाजिक रूढि़वादिता का परिणाम है। तेजी से बदलती दुनिया में विज्ञान की शिक्षा की भूमिका को कम करके नहीं आंका जा सकता।

एक अनुमान के मुताबिक भविष्य में नब्बे प्रतिशत नौकरियां ऐसी होंगी, जिनमें किसी न किसी रूप में सूचना और संचार तकनीक का ज्ञान होना आवश्यक होगा। चिंता का विषय यह है कि मात्र तीन प्रतिशत महिलाएं ही सूचना और संचार तकनीक के विषयों को चुनती हैं। विज्ञान का महत्त्वपूर्ण भाग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता के महत्व को नकारा नहीं जा सकता और इससे जुड़ी तकनीकों को पूर्वाग्रह से मुक्त रखने के लिए एआइ पर काम करने वाले लोगों में विविधता होना जरूरी है। इस बीच विश्व आर्थिक मंच की ग्लोबल जेंडर रिपोर्ट बताती है कि एआइ तकनीक पर कुल पेशेवरों में सिर्फ बाइस प्रतिशत ही महिलाएं हैं। इसके पीछे घिसी पिटी लैंगिक मान्यताएं और प्रोत्साहन देने वाले वातावरण की कमी है।

पितृ सत्तात्मक व्यवस्था विज्ञान और तकनीक से जुड़े क्षेत्र मे एकाधिकार बनाए रखना चाहती है। इसी सोच को अमरीका की विज्ञान इतिहासकार माग्रेट डब्ल्यू रोसिटर ने 1993 में ‘मटिल्डा इफेक्ट’ नाम दिया था। ‘मटिल्डा इफेक्ट’ महिला वैज्ञानिकों के प्रति एक तरह का पूर्वाग्रह होता है, जिसमें उनकी उपलब्धियों को मान्यता देने की बजाय उनके काम का श्रेय पुरुष सहकर्मियों को दे देते हैं।

(लेखिका समाजशास्त्री हैं और महिलाओं से जुड़े विषयों पर निरंतर लेखन करती हैं)

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