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भाजपा को भारी पड़ी उम्मीदवार चयन में गलती

Published: Oct 17, 2017 02:52:18 pm

सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों इतने बड़े मतों से भाजपा-अकाली दल गठबंधन की हार हुई?

vinod khanna

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– विपिन पब्बी, राजनीति समीक्षक

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि गुरदासपुर में पंजाब सरकार के स्थानीय कामकाज के आधार पर वोट नहीं पड़े बल्कि केंद्र सरकार के कामकाज को ही आधार बनाकर मतदाताओं ने मतदान किया और अपनी नाराजगी जाहिर की। पंजाब की गुरदासपुर लोकसभा सीट पर चार बार से भाजपा-अकाली दल गठबंधन के विनोद खन्ना जीतते आ रहे थे। उन्होंने पिछली बार यह सीट करीब सवा लाख मतों से जीती थी लेकिन उनके निधन पश्चात हुए उपचुनाव में भाजपा ने यह सीट 1.90 लाख मतों से गंवा दी। सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों इतने बड़े मतों से भाजपा-अकाली दल गठबंधन की हार हुई? कांग्रेस की राज्य सरकार बहुत बेहतर काम कर रही हो और उसके कामकाज के आधार पर वोट पड़े हों, ऐसा भी नहीं है।
दरअसल, भाजपा-अकाली गठबंधन की हार के कई कारण रहे। एक तो उनसे उम्मीदवार के चयन में गलती हो गई। भाजपा-अकाली दल गठबंधन उम्मीदवार स्वर्ण सलारिया भले ही इस क्षेत्र से ताल्लुक रखते हों लेकिन वे रहते मुंबई में हैं। और, उनकी छवि दागी उम्मीदवार के रूप में भी रही। उन पर बलात्कार तक का आरोप है। इस मामले से संबंधित फोटोग्राफ भी सार्वजनिक हुए। हालांकि उन्होंने इस मामले में समझौता होने की सफाई दी लेकिन उनके दामन में लगे दाग साफ नहीं हुए।
उनके स्थान पर यदि विनोद खन्ना की पत्नी कविता जिनकी छवि स्वच्छ रही है, को टिकट मिला होता तो यदि वे जीतती नहीं तो इतना जरूर तय है कि कम से कम इतने मतों से हारती भी नहीं। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि स्थानीय कामकाज के आधार पर वोट नहीं पड़े बल्कि केंद्र सरकार के कामकाज को ही आधार बनाकर मतदाताओं ने मतदान किया और अपनी नाराजगी जाहिर की। मतदाता बढ़ी हुई महंगाई, नोटबंदी से हुई असुविधा और जीएसटी से हो रही परेशानियों से गुस्से में थे। इसे यूं भी समझ सकते हैं कि पिछली बार 70 फीसदी मतदान हुआ था जबकि इस बार 56 फीसदी ही मतदान हुआ। यानी मतदाताओं ने भाजपा के विरोध में कांग्रेस को वोट दिया।
उधर, कांग्रेस ने पंजाब प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ को टिकट दिया। वे बेदाग छवि के नेता हैं। उनके लिए भाजपा सरकार के कामकाज के विरुद्ध अभियान चलाया गया। यहां तक कि राहुल गांधी भी उनके समर्थन में रैली करने यहां नहीं आए और ना ही किसी ने उनका नाम लिया। आम आदमी पार्टी ने भी यहां से चुनाव लड़ा लेकिन उसके उम्मीदवार को केवल 23 हजार ही मत मिले और उनकी जमानत जब्त हो गई। इसके दो संकेत हैं- पहला पंजाब में अब फिर से कांग्रेस बनाम अकाली दल भाजपा गठबंधन का ही मुकाबला रहेगा। दूसरे, निकटवर्ती हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए मुकाबला अब एकतरफा नहीं रहेगा। वहां कांग्रेस उसे टक्कर दे सकती है।
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