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आपकी बात, कृषि कानूनों पर विवाद क्यों नही थम रहा?

Published: Jul 28, 2021 07:44:24 pm

Submitted by:

Gyan Chand Patni

पत्रिकायन में सवाल पूछा गया था। पाठकों की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं आईं, पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं।

आपकी बात, कृषि कानूनों पर विवाद क्यों नही थम रहा?

आपकी बात, कृषि कानूनों पर विवाद क्यों नही थम रहा?

समस्या का हल निकाला जाए
किसान लगभग आठ माह से आंदोलनरत हैं, परन्तु सरकार उनकी एक नहीं सुन रही है। यह सरकार की हठधर्मिता और तानाशाही है। सरकार और किसानों को मिलबैठ कर इस समस्या का हल अवश्य ही निकालना चाहिए, अन्यथा चुनावों में भाजपा को इसका खमियाजा अवश्य ही भुगतना पड़ेगा। सरकार कहती है कि कृषि कानून किसानों के लिए फायदेमंद हैं और किसान कहते हैं कि ये कानून हमें नहीं चाहिए। बेहतर तो यह था कि इन कानूनों को पास करने से पहले किसानों को विश्वास में लेना चाहिए था। अब जब किसान कह रहें हैं कि हमें ये काले कानून नहीं चाहिए, तो एक बार किसानों की बात मानकर इनको वापस लेने में हर्ज ही क्या है। बाद में किसानों को विश्वास में लेकर इनको पुन: पारित भी कराया जा सकता है। सरकार एवं किसानों दोनों को ही समस्या का हल निकालकर शांति स्थापना की ओर कदम बढ़ाने चाहिए।
-आशुतोष मोदी, सादुलपुर, चूरू
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किसानों से वार्ता करे सरकार
कृषि कानूनों पर विवाद नहीं थमने का मूल कारण है केंद्र सरकार व उनके प्रतिनिधियों द्वारा किसानों से वार्ता न करना। अगर वार्ता होती तो जरूर कुछ ना कुछ समाधान निकलकर आता। जब तक वार्ता नहीं होगी, किसान मानने वाले नहीं हंै, क्योंकि इन कानूनों से किसानों पर बहुत ज्यादा मार पड़ेगी और अगर किसान बिना किसी वार्ता के पीछे हटेंगे तो सात- आठ महीने का पूरा आंदोलन ही बेकार जाएगा। किसानों की समस्याओं के हल के लिए केंद्र सरकार को जल्दी से जल्दी किसानों से वार्ता करनी चाहिए ।
– अजय बुरड़क, दांतारामगढ़, सीकर
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खत्म हो जाएंगी सरकारी मंडियां
यह कानून निकट भविष्य में सरकारी कृषि मंडियों को खत्म कर देगा। सरकार निजी क्षेत्र को बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी जवाबदेही के कृषि उपज के क्रय-विक्रय की खुली छूट दे रही है। इस कानून की आड़ में सरकार निकट भविष्य में खुद बहुत अधिक अनाज न खरीदने की योजना पर काम कर रही है। सरकार चाहती है कि अधिक से अधिक कृषि उपज की खरीदारी निजी क्षेत्र करे, ताकि वह अपने भंडारण और वितरण की जवाबदेही से बच सके। सोचिए कि अगर निकट भविष्य में कभी कोरोना जैसी विषम परिस्थिति का सामना करना पड़ा तो उस दौरान सरकार खुद लोगों को बुनियादी खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने के लिए निजी क्षेत्र से खरीदारी करेगी। जैसे ही सरकारी मंडियों की प्रासंगिकता खत्म होगी, ठीक उसी के साथ एमएसपी का सिद्धांत भी प्रभावहीन हो जाएगा, क्योंकि मंडियां एमएसपी को सुनिश्चित करती हैं। इसके साथ ही साथ एक और हिस्सा है जहां ध्यान देने की जरूरत है। कांट्रैक्ट फार्मिंग की वजह से देश में भूमिहीन किसानों के एक बहुत बड़े वर्ग पर गहरा संकट आने वाला है।
-अजय सिंह सिरसला, चूरू
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निजी क्षेत्र को लाभ
देश के अन्नदाता कहे जाने वाले किसानों की आर्थिक आजादी के रूप में लाए गए कानूनों को कृषि व्यवस्था में सुधार के रूप में प्रचारित किया जा रहा है, परंतु इन कानूनों के लागू होने के बाद किसानों को नुकसान और निजी क्षेत्र के खरीदारों को लाभ होगा क्योंकि कानून के जरिए सरकारी मंडियों की प्रासंगिकता समाप्त हो जाएगी। किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म होने का भी डर है। साथ ही आवश्यक वस्तु संशोधन कानून से केवल किसानों को ही नहीं आने वाले समय में दूसरे लोगों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
-नीता टहिलियानी, जयपुर
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कृषि विशेषज्ञों की मदद लें
सरकार को किसानों की समस्याओं को समझना होगा। कृषि कानून पर विवाद के चलते आठ माह बीत गए हैं, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला है। सरकार को अपनी रणनीति बदलनी होगी। कृषि विशेषज्ञों की मदद से किसानों की समस्याओं को समझना होगा। प्रधानमंत्री और कृषि मंत्री को किसान दलों के नेताओं से विचार-विमर्श करना चाहिए। किसान अन्नदाता हैं, उनके दर्द को समझकर कृषि कानून में जल्द से जल्द उचित बदलाव लाना ही एकमात्र विकल्प है।
– अंजलि राठी, नापासर, बीकानेर
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मुद्दों का अभाव
ऐसा लगता है जैसे विपक्ष के पास सरकार को घेरने तथा मीडिया में छाए रहने के लिए मुद्दों का अभाव हो गया हो। जब सरकार कानून में संशोधन के लिए तैयार है तो विपक्ष तथा किसानों को अपनी यथोचित मांगों के साथ सरकार से बात करनी चाहिए।
-एकता शर्मा, गरियाबंद, छत्तीसगढ़
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अभी नहीं थमने वाला विवाद
कृषि कानूनों को विभिन्न राजनीतिक पार्टियों ने वोट बैंक का जरिया मान लिया है। उनके राजनीतिक भविष्य के हिसाब से यह मुद्दा बेहद संवेदनशील है। सच तो यह है कि सभी पार्टियां किसानों के वोट बैंक को साधना चाहती हैं। आज कृषि कानून पर विवाद इतना गंभीर हो चुका है कि यह विवाद किसानों एवं राजनीतिक पार्टियों की अहं से जुड़ गया है। इसीलिए कृषि कानूनों पर विवाद निकट भविष्य में भी थमने के आसार काफी कम है।
-सतीश उपाध्याय, मनेंद्रगढ़ कोरिया, छत्तीसगढ़
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सरकार का जिद्दी रवैया
कृषि कानूनों पर विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। केंद्र सरकार अपनी जिद पर अड़ी है। विपक्ष हमेशा से इन तीनों बिलो को वापिस लेने के लिए लगातार दबाव बना रहा है। केंद्र सरकार को जिद्दी रवैया छोड़कर किसान नेताओं और विपक्ष के साथ बैठकर समस्या का हल निकालना चाहिए। इस प्रकार सत्ता में बैठकर जिद्दी रवैया अपनाना लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है।
-रेवत सिंह राजपुरोहित, सांचोर
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कृषि कानून पर राजनीति
कृषि कानूनों पर राजनीति हो रही है। कुछ लोग इस मुद्दे को हवा देकर व फंडिंग करके देश में विरोध का वातावरण बनाना चाहते हैं। यदि इन कानूनों में वास्तव में कुछ कमी है तो सरकार के साथ बैठकर संशोधन करवा लेना चाहिए। इसके लिए कृषि मंत्री व प्रधानमंत्री कई बार कह भी चुके हैं।
– प्रेम शर्मा रजवास, टोंक
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कानून में संशोधन करना चाहिए
कृषि कानूनों पर किसानों की बात को नजरअंदाज किया जा रहा है। सरकार को किसानों की राय लेकर कानून में संशोधन करना चाहिए। किसानों को भी हठ छोडऩा चाहिए। कानून को वापस लेना इसका समाधान नहीं है। हां इसमें बदलाव करके इसको किसानों के लिए विश्वसनीय बनाना होगा। सरकार को भी राजनीति और अहंकार छोड़ कर आंदोलन को खत्म करवाने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए।।
-भपाराम सुथार, जालौर
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बातचीत से निकलेगा हल
लंबे समय से कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन कर रहे हैं, मगर सरकार जिद पर अड़ी है और कोई हल नहीं ढूंढ रही है। अब समय आ गया है जब दोनों मिलकर कोई सर्वमान्य रास्ता निकालें। आपसी बातचीत से ही इस समस्या का समाधान निकल सकता है।
-साजिद अली चंदन नगर इंदौर
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हर तरफ डर
आढ़तियों और मंडी के कारोबारियों को डर है कि जब मंडी के बाहर बिना शुल्क के कारोबार होगा तो कोई मंडी नहीं आना चाहेगा। किसानों को यह डर है कि नए कानूनों के बाद एमएसपी पर फसलों की खरीद अगर सरकार ने बंद कर दी तो वे कहां जाएंगे? राज्य सरकारों को चिंता है कि किसान मंडियों के बाहर फसल बेचेंगे, जिससे राजस्व घटेगा।
सरिता प्रसाद, पटना, बिहार
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राजनीतिक महत्वाकांक्षा
कृषि कानूनों पर विवाद नहीं थमने के पीछे आंदोलन से जुड़े आयोजकों की अपनी राजनीतिक जमीन बनाने की महत्वाकांक्षा छिपी हुई है। किसानों के कंधे पर बंदूक रख कर देश में अस्थिरता पैदा करने का प्रयास हो रहा है।
बाल कृष्ण जाजू, जयपुर
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हठधर्मिता त्यागे सरकार
कृषि कानूनों के खिलाफ 8 महीने से किसान आंदोलन कर रहे हैं। सर्दी, गर्मी, बरसात और कोरोना काल की परेशानी झेलते हुए किसान आंदोलनरत हैं। आंदोलन में करीब 400 किसानों की मौत भी हो गई है। सरकार को इस मुद्दे को प्रतिष्ठा का सवाल न बनाकर अपनी हठधर्मिता त्याग कर कृषि विरोधी कानूनों को वापस लेकर आंदोलन समाप्त कराना चाहिए।
-शिवजी लाल मीना, जयपुर
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ताकि जल्दबाजी में पारित न हों कानून
कृषि कानूनों पर विवाद नहीं थमने का मुख्य कारण सरकार को एकजुटता का संदेश देना है, ताकि भविष्य में ऐसा कोई भी कानून आनन-फानन में पारित नहीं किए जाए। साथ ही कोई भी कानून पारित करने से पहले गहन विचार किया जाए।
-चन्द्रवीर सिंह भाटी, जैसलमेर
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हो जाएगा पूंजीपतियों का वर्चस्व
किसान संगठनों को यह डर सता रहा है कि नए कानून के लागू होते ही कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉर्पोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा। नए कृषि कानूनों से कॉर्पोरेट घरानों को फायदा होगा और नुकसान किसानों के खाते में आएगा। नए कानून के अनुसार सरकार आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई पर असाधारण परिस्थिति में ही नियंत्रण लगाएगी। ये स्थितियां अकाल, युद्ध, कीमतों में अप्रत्याशित उछाल या फिर गंभीर प्राकृतिक आपदा हो सकती हंै। साथ ही नए कानूनों के माध्यम से विवाद निराकरण का तरीका गलत है। इसमें शिकायत निपटाने की समय सीमा तय नहीं की गई है।
-डॉ.अजिता शर्मा, उदयपुर
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