प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अच्छे वक्ता
होने पर शायद ही किसी को संदेह हो। श्रोताओं को बांधे रखने की कला में भी वे माहिर
हैं और शब्दों का चयन भी सोच-समझकर ही करते हैं। लेकिन फ्रांस में भारतीय समुदाय को
संबोधित करते हुए मोदी ने कोयला घोटाले के मुद्दे को जिस ढंग से उठाया, उसका समर्थन
शायद ही कोई करे।
भाजपा को चाहने वाले भी नहीं। प्रधानमंत्री बनने के बाद ग्यारह
महीने के कार्यकाल में मोदी विदेश यात्रा पर जहां भी गए, वाहवाही लूटी। लेकिन
फ्रांस में देश के घोटाले को उठाने की वजह आम लोगों की समझ में नहीं आ रही। शायद यह
पहला अवसर होगा जब भारत के किसी प्रधानमंत्री ने विदेश में भारत के मुद्दे को दलगत
राजनीति के रूप में पेश किया। यूपीए सरकार के काल में अगर घोटाला हुआ तो उसकी जांच
के लिए कानून है, न्यायालय है। दोषियों को सजा भी मिलनी चाहिए।
घोटाला बेशक
कांग्रेस के शासन में हुआ हो लेकिन विदेश में इसका ढोल पीटकर सरकार क्या साबित करना
चाहती है? क्या ये कि भारत घोटालों का देश है? एक तरफ मोदी सरकार विदेशी निवेश लाकर
देश के आर्थिक ढांचे को मजबूत बनाने की बात करती है। दूसरी तरफ देश के घोटालों की
चर्चा विदेश में करती है। कोई विदेशी निवेशक उस देश में क्यों आना चाहेगा जहां न
सिर्फ घोटाले होते हों बल्कि उनके बारे में सरकार ही ढिंढोरा पीटती हो। देश के अंदर
हमारी पहचान भाजपा, कांग्रेस अथवा दूसरे अन्य दलों के रूप में होती होगी लेकिन देश
के बाहर तो हम भारतीय ही हैं।
बेहतर तो यही है कि विदेश की धरती पर ऎसे किसी काले
अध्याय का जिक्र नहीं किया जाए जिससे देश की शान पर बट्टा लगता हो। यूपीए के कामकाज
की आलोचना करने की बजाय भाजपा सरकार जनता से किए वादों को पूरा करने पर जोर लगाए तो
अच्छा होगा। बात कालेधन को वापस लाने की हो या महंगाई पर लगाम लगाने की। बेरोजगारों
को रोजगार देने का मामला हो या गंगा की सफाई की। नक्सलवाद पर अंकुश लगाने का मुद्दा
हो या पाक घुसपैठ की।
जनता सरकार की तरफ देख रही है। चौदह करोड़ बैंक खाते खोलना
उपलब्घि तो मानी जा सकती है लेकिन सिर्फ इसके भरोसे देश की तस्वीर बदलने की उम्मीद
नहीं की जा सकती। आम आदमी के लिए अच्छे दिन तभी आएंगे जब इसके बैंक खातों में धन भी
जमा हो। महंगाई के बोझ से छुटकारा भी मिले और बच्चों को रोजगार भी। जनता ने भाषणों की कलाबाजी तो बहुत देख ली, अब वह परिणाम चाहती है।