scriptकिसान विधेयकों पर चर्चा से क्यों भागी सरकार? | why farmers are in trouble Agriculture bill in RS View of Vivek Tankha | Patrika News

किसान विधेयकों पर चर्चा से क्यों भागी सरकार?

locationनई दिल्लीPublished: Sep 21, 2020 02:33:06 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

आज किसानों में एक डर है कि यह पूरी कोशिश न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को खत्म करने के लिए है
यह बिल मोदी सरकार के लिए नई चुनौती होगा।

Agriculture Market's interest waiver scheme extended till 30 September in bhilwara

Agriculture Market’s interest waiver scheme extended till 30 September in bhilwara

यह ऐसा वक्त था जब सरकार को कोविड पर ध्यान देने की जरूरत थी। ऐसे में इस तरह के बिल को लाने की जरूरत क्या आ गई? अभी मंडियों का क्या मुद्दा था? गलत समय पर गलत बात के लिए सरकार आखिर जिद क्यों कर रही हैï? जब अध्यादेश बना लिया तो फिर उसे बिल की शक्ल लेकर सदन के भीतर पास कराने के लिए इतना उतावलापन दिखाने की जरूरत क्या थी? आज राज्यसभा में एक बज गया था, मंत्री का भाषण चल रहा था। लोकसभा को शुरू होना था। ऐसे में सदन को खत्म करने की बात हो रही थी। उप सभापति ने सेंस ऑफ द हाउस लिया, इसका मतलब होता है कि सदन का समय आगे बढ़ाना है या फिर नहीं, इसके लिए सांसदों की राय ली जाती है। एक भी सांसद की राय महत्वपूर्ण होती है।
सामान्यत: किसी के इनकार के बाद सभापति आगे नहीं बढ़ते हैं। यहां तो खुद विपक्ष के नेता गुलामनबी आजाद ने सदन में चर्चा अगले दिन कराने की बात कही। लेकिन उप सभापति विपक्ष की बात को दरकिनार कर सदन को आगे चलाते रहे। पूरा विपक्ष चिल्ला रहा था और उपसभापति अपनी मनमानी कर रहे थे। जब बिल पर वोटिंग की बात आई तो विपक्ष ने आवाज लगाई कि वोटिंग कराई जाए, लेकिन उसे भी अनसुना कर दिया गया। उसके बाद जो कुछ हुआ वह अप्रत्याशित था। सदन के लिए सबसे ज्यादा दुखद क्षण था। क्या कुछ नहीं हुआ, लेकिन इसके लिए जिम्मेदार कौन है, सीधे तौर पर मोदी सरकार। सड़क से लेकर संसद तक जिस बिल का विरोध हो रहा है, उसे पारित कराने की इतनी हड़बड़ी क्यों है? क्या सरकार एक दिन भी नहीं रुक सकती थी?
आज किसानों में एक डर है कि यह पूरी कोशिश न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को खत्म करने के लिए है। भारतीय खाद्य निगम को सालाना चार लाख करोड़ का नुकसान हो रहा है, उसकी भरपाई के लिए है। खेती-किसानी सब्सिडी का कारोबार है, सभी देशों में यही नीति है। जिससे लोगों को सस्ता मिले और किसानों को उनकी फसल का सही मूल्य मिले। खुले बाजार में किसान को सब्सिडी कौन देगा? यह सिर्फ किसानों का मुद्दा नहीं है, बल्कि मोदी सरकार ने राज्यों को भी इसमें शामिल नहीं किया। जबकि किसान राज्यों का विषय है। पंजाब की दलील क्या है, यही तो कह रहा है कि जमीन हमारी, किसान हमारे, पानी हमारा और सब्सिडी भी हमारी तो फिर किसानों की नीति तय करने में हमारी भूमिका क्यों नहीं? बिल पर राज्यों से चर्चा करने की जरूरत क्यों नहीं समझी गई? मोदी सरकार चाहती क्या है? कोविड में लॉकडाउन की जल्दबाजी की और उसका खामियाजा एक करोड़ से ज्यादा लोगों ने पलायन के तौर पर भुगता। आज हालात इतने बुरे हो चुके हैं कि लाशों को अंत्येष्टि के लिए लाइन में लगना पड़ रहा है। मरीजों को पैसा देने के बाद भी अस्पतालों में जगह नहीं मिल रही है। वेंटीलेटर खाली नहीं हैं और आप कोविड को छोड़कर इस बिल के पीछे पड़े हैं। एक दिन भी रुकने को तैयार नहीं है। इससे पूरे देश में असंतोष फैलेगा।
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश से लेकर कई राज्यों में किसानों के प्रदर्शन चल रहे हैं। ये मोदी सरकार की जिद ही है कि पंजाब के सांसदों को कहना पड़ा कि जब पंजाब भारत का हिस्सा बना था तो उन्हें उनकी विरासत, संस्कृति और उनकी खेती को बचाए रखने का वादा किया गया था, आज सरकार वादा निभाने को तैयार नहीं है। पंजाब के किसान अतिरिक्त सुरक्षा चाहते हैं, तो इसमें आपत्ति क्या है? हमारा देश अभी कान्ट्रेक्ट फार्मिंग के लिए तैयार नहीं है। हमारे यहां पर 80 फीसदी छोटे किसान हैं, वह बड़े और निजी घरानों से कैसे मोल-भाव करेंगे? वह कैसे उनसे अपनी कीमत के लिए दबाव बनाएंगे? वह तो बात भी कर पाएंगे ऐसे घरानों से। इस व्यवस्था के लिए अभी देश तैयार नहीं हुआ है। बेहतर होता कि अगर सरकार को इसे लागू ही करना था तो किसी एक राज्य से पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू करते और इसके परिणामों का आंकलन करने के बाद ही पूरे देश में लागू करते। गुजरात प्रधानमंत्री का राज्य है, बेहतर होता कि पायलट प्रोजेक्ट वहां से शुरू होता।
भाजपा को अपने भीतर ही इसके नुकसान दिखाई देने लगे होंगे, आरएसएस से लेकर अकाली और दुष्यंत चौटाला तक इसका विरोध कर रहे हैं। मानकर चलिए जिस तरह मंदसौर गोली कांड मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार के लिए ताबूत की कील बना था, यह बिल मोदी सरकार के लिए नई चुनौती होगा। अगर वाकई में प्रधानमंत्री मोदी अच्छी सोच लेकर आए भी थे तो यह समय और तरीका दोनों ही गलत हैं। तरीका और समय ही किसी भी निर्णय को सही और गलत परिभाषित करते हैं।
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