एक तरफ हम “डिजिटल” भारत की बात कर रहे हैं, दूसरी ओर हमारे अफसर उल्टी दिशा में चल रहे हैं। होना तो यह चाहिए था कि शहर के सभी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडरों और तकनीकी विशेषज्ञों की राय ली जाती। उनसे पूछा जाता कि अफवाहें और संवदेनशील सामग्री के प्रसार को रोकने के लिए किन-किन वेबसाइट या एप्स के संचालन को रोका जाए। मुश्किल से दो दर्जन सोशल मीडिया साइटों पर रोक लगाने से काम चल सकता था। मगर अफसरों ने आंख-मूंद कर पूरे इंटरनेट पर ही प्रतिबंध लगाने का निर्णय ले लिया।
जयपुर जैसे तेजी से आगे बढ़ते शहर में आज इंटरनेट उसी तरह जरूरी हो रहा है, जैसे हवा और बिजली। पैसों का लेनदेन हो, परीक्षा के फार्म भरने हों, चिकित्सा व्यवस्था हो, यातायात और परिवहन हो-हर तरह की आवश्यक सेवा इंटरनेट के बिना बेकार है। यहां तक कि टैक्सी (कैब सर्विस) और भोजन मंगवाने (फूड एप) की सेवाएं तक इंटरनेट बंद होने के कारण ठप हो जाएंगी। जयपुर में प्रदेश भर के हजारों विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। वे छोटी से छोटी आवश्यकता के लिए मोबाइल एप्स पर निर्भर हैं। अफसरों के आदेश ने सबको परेशानी में डाल दिया है। आज तकनीक में सब संभव है, बिना इंटरनेट को बंद किए कुछ चयनित साइटों को बंद किया जा सकता है या आवश्यक सेवाओं से जुड़ी चयनित साइटों को छूट दी जा सकती है। पर यह सब करने के लिए व्यवस्थित प्लानिंग की जरूरत है- जो उतनी आसान नहीं है, जितनी एक पंक्ति के आदेश से शहर को ठप कर देना।