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आपकी बात, रेजिडेंट डॉक्टर बार-बार आंदोलन क्यों करते हैं?

Published: Dec 09, 2021 04:12:15 pm

Submitted by:

Gyan Chand Patni

पत्रिकायन में सवाल पूछा गया था। पाठकों की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं आईं, पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं।

आपकी बात, रेजिडेंट डॉक्टर बार-बार आंदोलन क्यों करते हैं?

आपकी बात, रेजिडेंट डॉक्टर बार-बार आंदोलन क्यों करते हैं?

स्व अनुशासन की जरूरत
डॉक्टर को भगवान का दूसरा रूप माना जाता है। उनके कंधो पर मानव समाज की सेवा का उत्तरदायित्व होता है। यह बात डॉक्टर खुद समझें, तो वे आंदोलन पर कभी न जाएं। अपनी मांगों को मनवाने के लिए आंदोलन, हड़ताल जैसी कदम उठाना डॉक्टरों को कतई शोभा नहीं देता है। इसका खमियाजा मरीजों को भुगतना पड़ता है। कई लोग इलाज से वंचित हो जाते हंै और कई तो मर तक जाते हैं। ऐसी स्थिति में डॉक्टरों को आत्म चिंतन जरूर करना चाहिए। बेहतर तो यह है कि वे स्व अनुशासन में रह कर मानवता की सच्ची सेवा करें।
-अरुण कुमार भट्ट, रावतभाटा
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निजी जीवन जीने की असमर्थता
अस्पताल में रेजिडेंट डॉक्टर के काम का समय औसतन 12-18 घंटे रहता है, जिससे अधिकतर रेजिडेंट डॉक्टर मानसिक तनाव में रहते हैं। दिनभर रोगियों के बीच रहकर चिकित्सक अपना निजी जीवन भी नहीं जी पाते हैं। प्रशासन को रेजिडेंट डॉक्टरों की समस्याओं पर गौर करना चाहिए, जिससे उनका मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहे।
-मनु प्रताप सिंह, चींचडौली,खेतड़ी
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फिर कैसे बचेंगे मरीज
वर्तमान में मौसमी बीमारियों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। कोरोना वायरस के नए वैरिएंट के कारण हर कोई डरा हुआ है। ऐसे विकट समय में भी चिकित्सक अपनी मांगों को मनवाने के लिए कार्य बहिष्कार करके मरीजों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। अगर चिकित्सक ही मरीजों को नहीं संभालेंगे, तो वे कैसे बच पाएंगे?
राजेंद्र वर्मा, हनुमानगढ़
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परेशान होते हैं मरीज
जितने अनुभवी डाक्टर सरकारी चिकित्सालय में होते हैं, उतने अनुभवी डॉक्टर प्राइवेट चिकित्सालय में नहीं होते। सरकारी चिकित्सालय में सभी चिकित्साकर्मी योग्यताधारी होते हैं, जबकि निजी चिकित्सालय में इसकी गारंटी नहीं होती। रेजीडेंट डॉक्टरों के बार-बार आंदोलन करने से मरीज परेशान होकर के निजी चिकित्सालयों की तरफ जाते हैं। यह प्रवृत्ति रोकनी होगी।
सत्य प्रकाश शुक्ला, ग्वालियर
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कार्यभार की अधिकता
सरकारी नौकरी सभी को चाहिए, पर काम करना किसी को पसंद नहीं। सरकारी अस्पतालों में मरीज पहुंचते हैं, तब वहां के सीनियर चिकित्सक अधिकांशत: नदारद मिलते हैं। वे मरीजों की पूरी जिम्मेदारी जूनियर डॉक्टरों के हाथों में सौंप देते हैं। यह स्थिति रात के समय तो और भी गंभीर हो जाती है, जब कोई मरीज आपातकालीन परिस्थितियों में अस्पताल पहुंचता है और उसे अनुभवी डॉक्टर नहीं मिलते। जूनियर डॉक्टर ही रात- दिन मरीजों की देखभाल में लगे रहते हैं। उनको कई बार मरीजों के परिजनों के कोप का भागी भी बनना पड़ता है। सीनियर डॉक्टर की भड़ास लोग इन पर निकालते हैं।
एकता शर्मा, गरियाबंद, छत्तीसगढ़
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सरकार शीघ्र निर्णय ले
कोरोना महामारी की तीव्रता के समय रेजिडेंट डॉक्टरों ने सेवा एवं समर्पण के साथ काम किया था। इसके लिए डॉक्टरों की हर जगह प्रशंसा हुई है। वे कोरोना वारियर्स रहे हंै। नीट पीजी की काउंसलिंग के निर्णय में हो रहे विलंब के कारण उनके मन में असंतोष है। यह मामला शीघ्र निपटाया जाए। सरकार को रेजिडेंट डॉक्टरों की मांगों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
-सतीश उपाध्याय, मनेंद्रगढ़ कोरिया, छत्तीसगढ़
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शपथ का उल्लंघन
रेजिडेंट डॉक्टर जिन मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं, वे वाजिब हो सकती हैं। अपनी मांगों के लिए संघर्ष करने का चिकित्सकों को भी अधिकार है, लेकिन यह अधिकार मरीजों के जीवन से बड़ा नहीं हो सकता। फिर कार्य बहिष्कार करके चिकित्सक अपने पेशे की शपथ का भी उल्लंघन कर रहे हैं।
-अजय शर्मा, जयपुर
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