जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद शिक्षकों के सम्मान कार्यक्रम में शिक्षकों से ही सवाल करते हैं कि क्या उन्हें तबादलों के लिए पैसे देने पड़ते हैं तो यह आसानी से समझा जा सकता है कि तबादलों में भ्रष्टाचार भी कम नहीं होता। ऐसे में केवल कमेटियां बनाने से ही काम नहीं चलेगा। पिछले सालों में तबादला नीति बनाने के नाम पर बनाई गई दर्जनों कमेटियों की सिफारिशें फाइलों की धूल खा रही हैं। शिक्षक के गरिमामय पद पर बैठे व्यक्ति को भी अपनी वाजिब मांग के लिए राजनेताओं का चक्कर लगाने को मजबूर होना पड़े तो यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का क्या होगा? यह बात सही है कि शिक्षकों की नियुक्ति काउंसलिंग प्रक्रिया से होने में पदस्थापन में भ्रष्टाचार की शिकायत खत्म-सी हो गई है। लेकिन तबादलों के लिए स्थायी और पारदर्शी नीति बनाए बिना यह उम्मीद करना व्यर्थ होगा कि तबादलों में डिजायर का दौर खत्म हो जाएगा। (ह.पा.)