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सेना पर राजनीति क्यों?

Published: Dec 02, 2016 10:04:00 pm

सेना को राजनीति में घसीटने की बढ़ती परम्परा लोकतंत्र के साथ-साथ देश
के लिए भी घातक संकेत है। खासकर तब, जब ममता बनर्जी सरीखी जमीन की राजनीति
से जुड़ी नेता ऐसा करने लगें

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सेना को राजनीति में घसीटने की बढ़ती परम्परा लोकतंत्र के साथ-साथ देश के लिए भी घातक संकेत है। खासकर तब, जब ममता बनर्जी सरीखी जमीन की राजनीति से जुड़ी नेता ऐसा करने लगें। सेना के सामान्य अभ्यास को जिस तरह ममता बनर्जी ने प. बंगाल में सेना की तैनाती करार दिया, वह गंभीर मुद्दा है।

एक दिन पहले ममता के विमान के कोलकाता हवाई अड्डे पर उतरने में हुई देरी का मुद्दा अभी थमा भी नहीं था कि कोलकाता के कुछ टोल बूथों पर सेना की तैनाती का मुद्दा गर्मा उठा। ममता के साथ तमाम विपक्षी दलों ने इसे आपातकाल जैसे हालात तक करार दे डाला। दूसरी तरफ इस मामले पर सेना ने साफ किया कि कोलकाता के कुछ इलाकों में टोल बूथों पर जवानों की तैनाती सामान्य अभ्यास है। सेना ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर स्पष्ट किया कि टोल नाकों पर गाडिय़ों की जांच सिर्फ कोलकाता ही नहीं बल्कि उत्तर पूर्व के सभी राज्यों में की जा रही है।

सवाल ये कि इस तरह के अभ्यास यदि सेना नियमित तौर पर करती रहती है तो इतनी हाय-तौबा किसलिए? और अगर बिना राज्य सरकार की जानकारी में ऐसी कार्रवाई हुई तो यह गंभीर बात है और इसकी जांच होनी चाहिए। ममता बनर्जी केंद्र में मंत्री रहने के साथ साढ़े पांच साल से प. बंगाल की मुख्यमंत्री भी हैं।

वे अच्छी तरह से जानती होंगी कि क्या इस देश में प्रचण्ड बहुमत से निर्वाचित सरकार को सेना के माध्यम से अस्थिर किया जा सकता है। राजनीतिक दलों के पास राजनीति करने के लिए मुद्दों की कमी नहीं है जो उन्हें सेना को घसीटने की जरूरत पडऩे लगे।
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