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आपकी बातः बढ़ते हादसों के बावजूद सड़कों को ठीक क्यों नहीं किया जाता?

Published: Feb 15, 2021 03:55:28 pm

Submitted by:

Nitin Kumar

पत्रिकायन में सवाल पूछा गया था। पाठकों की मिलीजुली प्रतिक्रिया आईं, पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं।

बढ़ते हादसों के बावजूद सड़कों को ठीक क्यों नहीं किया जाता?

बढ़ते हादसों के बावजूद सड़कों को ठीक क्यों नहीं किया जाता?

कार्यशैली में खोट

बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं के बावजूद सड़कें ठीक न कराने के पीछे सरकारी उदासीनता व लापरवाही आएदिन सामने आती हैं। सड़कें बनाते समय घटिया सामग्री का उपयोग आम बात है। सड़कों पर गड्ढे जानलेवा साबित होते हैं। जलदाय विभाग की ओर से पाइपलाइनों व टेलीकॉम कंपनियों की ओर से भूमिगत केबल बिछाने के बाद उन्हें सही ढंग से नहीं भरना मुख्य कारण हैं। सड़कों पर गति अवरोधकों की कमी, और जहां ये हैं उनकी अनदेखी भी आमतौर पर दुर्घटनाओं के प्रमुख कारणों में से हैं।
गायत्री चौहान, जोधपुर

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चुनावी वादे कर भूल जाते हैं

क्षतिग्रस्त सड़कों को समय पर ठीक करने की जिम्मेदारी हमारी सरकारों की होती है। चुनाव के समय भी राजनेता जनता के बीच में मुख्य मुद्दा पानी, सड़क व बिजली का रखते हैं। लेकिन चुनाव जीतने के बाद वादों पर खरा नहीं उतरते। संबंधित महकमे भी आमजन की समस्या का समाधान करने के बजाए खानापूर्ति करते हैं।
जालम सिंह सोलंकी, बाड़मेर

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घटिया सड़कें ही हादसे का कारण

बढ़ते हुए हादसों के बाद भी क्षतिग्रस्त सड़कों को ठीक नहीं कराया जाता। जनता में जागरूकता नहीं है। वह भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज नहीं उठाती बल्कि देखते हुए अनदेखा करती है। सड़कों का घटिया निर्माण होता है, मरम्मत गारंटी पीरियड में भी नहीं होती है। भ्रष्ट ठेकेदार और भ्रष्ट अधिकारी उसका पूरा फायदा उठाते हैं।
श्रीकृष्ण पचौरी, ग्वालियर

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विश्व स्तर की सड़कों का दावा खोखला

भारत में सड़क पर बने गड्ढे हर साल सैकड़ों लोगों की मौत का कारण बनते है। लगातार हो रहे हादसों के बाद भी संबंधित विभाग सबक नहीं ले रहा। आज बाबू से लेकर अधिकारियों तक की जेब गर्म करनी पड़ती है। ऐसे में ठेकेदार अपने फायदे के लिए घटिया सामग्री का उपयोग करता है जो हादसों का कारण बनते हैं। यदि गुणवतायुक्त सड़कों का निर्माण होने लगे तो भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को अपने मुनाफे को खोने का भय होता है। इसलिए वे हादसों के बावजूद इस ओर ध्यान नहीं देते। ऐसे में विश्वस्तर की सड़कें बनाने का सरकारी दावा भी खोखला ही नजर आता है।
कमलेश कुमार कुमावत, चौमूं (जयपुर)

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सड़क बिछाने वाला ठेकेदार हो जिम्मेदार

टूटी सड़कें पहचान बनती जा रही हैं। सड़क टूटे ही नहीं और टूटे तो तुरंत मरम्मत हो जाए, क्या इसका इंतजाम नहीं हो सकता? सड़क की मरम्मत करने का काम भी उसी ठेकेदार को क्यों जिसकी लापरवाही से सड़कें टूटी? हर दूसरे साल में सरकार को घटिया निर्माण के चलते नुकसान उठाना पड़ता है। सरकार को एक ही ठेकेदार को ठेका नहीं देकर हर वर्ष अलग-अलग ठेकेदार को ठेका देना चाहिए।जिससे कम लागत में मजबूत सड़क निर्माण हो सके।
कांतिलाल मांडोत, सूरत

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मुआवजे के छींटे कब तक

प्रतिदिन खबरों में सड़क हादसों का सिलसिला देखने को मिलता है। कई परिवारों की जिंदगी सड़क हादसों में तबाह होती है, पुलिस कार्यवाही होती है, धरना-प्रदर्शन व अनशन होता है। फिर मुआवजे के छींटे देकर मामले को रफा-दफा कर दिया जाता है। सड़कों की मरम्मत की मांग पर आम जनता की आवाज को दबा दिया जाता है या नाममात्र की मरम्मत से संतुष्टि दे दी जाती है। अत: सरकारी तंत्र में आम आदमी के जीवन को सर्वोपरि मानकर गुणवत्तापूर्ण निर्माण सामग्री का प्रयोग किया जाना चाहिए।
मनीष शर्मा, लक्ष्मणगढ़ (सीकर)

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सड़कों की समय पर मरम्मत न होना बड़ी लापरवाही

वर्तमान समय में ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं हो रही हैं जिससे सड़क सुरक्षा का संकल्प टूटता नजर आ रहा है। चारों तरफ हर जगह लोग सड़क दुर्घटनाओं की वजह से काल का ग्रास बन जाते हैं। एक तरफ तो देश विकास की तरफ दौड़ने की कोशिश में है और दूसरी तरफ हम सड़कों को भी ठीक नहीं कर पा रहे हैं। आवश्यकता इस बात की है कि सड़कों को ठीक किया जाए, समय-समय पर उनकी मेंटीनेंस की जाए तभी जाकर सड़क दुर्घटनाओं में कमी आएगी।
बिहारी लाल बालान, लक्ष्मणगढ़ (सीकर)

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दुर्दशा का कारण सरकारों की उपेक्षा

आज आजादी के लगभग सात दशक बीत जाने के बावजूद भी पूरे देश में पक्की सड़कों का अभाव है। जहां पक्की सड़कें हैं वे भी अच्छी हालत में नहीं हैं। इससे परिवहन में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। परिवहन लागत भी बढ़ती है जिसका भार अन्ततोगत्वा आम जनता पर ही पड़ता है। इसका मुख्य कारण नेताओं द्वारा इस क्षेत्र की उपेक्षा और भ्रष्टाचार का होना है। क्योंकि जो सड़कें बनाई जाती हैं उसमें भी सामग्री कमीशन के चक्कर में इतनी घटिया किस्म की काम में ली जाती है जो एक साल भी नहीं चल पाती है। सड़क हादसों को रोकना है तो कमीशनखोरी एवं भ्रष्टाचार को मिटाना होगा।
कैलाश चन्द्र मोदी, सादुलपुर (चूरु)

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दूसरे कारण भी हैं जिम्मेदार

सड़क दुर्घटनाओं के बढ़ते हादसों के प्रमुख कारणों में ओवरलोडिंग, ओवरटेक, सड़क के गड्ढे, रोड कट, मिट्टी के ढेर, मापदण्ड रहित स्पीडब्रेकर प्रमुख हैं। हादसे के तत्काल बाद इन कारणों की पड़ताल हो जाए तो दुबारा उस स्थान पर हादसे की नौबत नहीं आए। राजमार्गों पर गश्त करने वाली टीम को दुर्घटनाओं के संभावित कारणों की सूचना देने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए।
बाल कृष्ण जाजू, जयपुर

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भ्रष्टाचार व कमीशनखोरी का जोर

सरकारों की लापरवाही के कारण सड़क हादसे बढ़ते जा रहे हैं। सरकारें नई सड़कों के लिए बजट में प्रावधान तो करती हैं, टेंडर भी जारी हो जाते हैँ लेकिन सडक़ें बनने से पहले ही भ्रष्टाचार व कमीशनखोरी की भेंट चढ़ जाती हैं। इसलिए सड़क बनाने से पहले उसकी गुणवत्ता पर विशेष ध्यान देना चाहिए। जहां भी सड़कें क्षतिग्रस्त हैं उनकी तुरंत मरम्मत कराई जानी चाहिए। जो भी इसमें भ्रष्टाचार व कमीशनखोरी करते हैं, उन्हें तत्काल पद से हटा देना चाहिए। सरकार को एक टोल फ्री नम्बर जारी करना चाहिए जिसके जरिए बेहाल सड़कों, भ्रष्टाचार व कमीशनखोरी की शिकायत आम जनता दर्ज करवा सके।
आलोक वालिम्बे, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

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कमीशन का खेल

सड़कें बनाते वक्त ऊपर से नीचे तक कमीशनखोरी का खेल चलता है। ये दौलत के लालची कभी नहीं सोचते कि सड़कें कमजोर बनाएंगे तो सड़क हादसों में लोगों की जान जा सकती है। अफसोस, जिन्हें पैसा प्यारा उन्हें किसी की जान की क्या परवाह?
शैलेंद्र गुनगुना, झालावाड़

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बजट का अभाव

हमारे देश में राष्ट्रीय राजमार्ग से लेकर गली-मोहल्ले की सड़कें क्षतिग्रस्त नजर आती हैं। सरकारें इसे नजरअंदाज कर देती हैं। कोई शिकायत भी करता है तो बजट की कमी का हवाला दे दिया जाता है। ऐसी स्थिति में जो दुर्घटनाएं हो रही हैं और जो भविष्य में होने वाली हैं क्या वे होती रहेंगी, यह बड़ा सवाल है।
सुरेंद्र बिंदल, जयपुर

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आए दिन हादसों की वजह

असली समस्या शहरों के अंदर बनी सड़कों की है। इन खस्ताहाल सड़कों और इन पर गड्ढों की ओर राज्य प्रशासन और स्थानीय प्रशासन का ध्यान नहीं जाता है। छोटे- बड़े शहरों में जिन सड़कों में गड्ढों को शुरुआत के चरण में ठीक किया जाना चाहिए उन गड्ढों के बड़ा आकार लेने का इंतजार किया जाता है। इन्हीं बड़े आकार लेते गड्ढों की वजह से शहरों में आएदिन हादसे हुआ करते हैं। इन इलाकों में वीआइपी लोगों का आंख पर पट्टी बांध सुबह-शाम आना जाना होता है। सुधार के नाम पर इन शहरी सड़कों पर पैचवर्क का काम कर लीपापोती की जाती है।
नरेश कानूनगो, बेंगलूरु, कर्नाटक

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