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Patrika Opinion: क्यों ढोएं अंग्रेजों के बनाए कानून को

Published: May 12, 2022 08:54:46 pm

Submitted by:

Patrika Desk

राजद्रोह कानून से जुड़े प्रावधानों के दुरुपयोग पर चिंता जताते रहे सुप्रीम कोर्ट के निर्देश निश्चित ही सरकारों के हाथों में सौंपे गए ऐसे औजार की धार कुंद करने का काम करेंगे जिनका इस्तेमाल आम तौर पर सरकारें विरोध के स्वर को दबाने के लिए करती रही हैं

प्रतीकात्मक चित्र

प्रतीकात्मक चित्र

सुप्रीम कोर्ट ने सीधे तौर पर स्पष्ट कर दिया है कि राजद्रोह के मामले में फिलहाल नई कार्रवाई बिना जांच प्रक्रिया पूरी किए नहीं की जाए। सर्वोच्च अदालत ने यह भी कहा है कि यदि किसी पर मामला पहले से ही दर्ज है तो उस पर आगे की कार्रवाई को फिलहाल स्थगित किया जाए और नए मामले दर्ज नहीं किए जाएं। इतना ही नहीं, शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि जो लोग इसकी धाराओं में जेल में हैं, उन्हें जमानत के लिए कोर्ट जाने का अधिकार है। समय-समय पर इस कानूनी प्रावधान के दुरुपयोग पर चिंता जताते रहे सुप्रीम कोर्ट के ये निर्देश निश्चित ही सरकारों के हाथों में सौंपे गए ऐसे औजार की धार कुंद करने का काम करेंगे जिनका इस्तेमाल आम तौर पर सरकारें विरोध के स्वर को दबाने के लिए करती रही हैं।
दरअसल, अंग्रेजों के समय शुरू किए गए इस राजद्रोह कानून को लेकर पूरे देश में अब एक बहस खड़ी हो गई है। बहस इस बात को लेकर है कि क्या लोकतांत्रिक देश में इस तरह का कानून होना चाहिए। इस तरह के कानून में किसी के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले जांच क्यों नहीं होनी चाहिए। खासकर तब जबकि मामले में सीधे तौर पर राजनीति नजर आ रही हो। देश में सत्ताधारी पार्टियों पर इस धारा के दुरुपयोग के आरोप पहले भी लगते रहे हैं। शुुरुआत में केंद्र सरकार ने इस कानून को खत्म नहीं किए जाने की दलील दी थी और यहां तक कहा था कि कोर्ट को संविधान पीठ का फैसला नहीं बदलना चाहिए। लेकिन, देश में इसको लेकर शुरू हुई बहस के बाद सरकारी पक्ष भी लचीला हो गया है। यही वजह है कि अब की बार केंद्र सरकार ने भी इस कानून पर संयमित दलील दी। सुप्रीम कोर्ट में सरकारी वकील के तौर पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि संज्ञेय अपराध के तौर पर इसमें मामला दर्ज करने से नहीं रोका जा सकता है, लेकिन मामला दर्ज होने से पहले एक जिम्मेदार अधिकारी की जांच पूरी होना जरूरी है।
दरअसल, यह कानून राज्य और केंद्र सरकारों को विवेकाधीन अधिकार देता है। मतलब वह किसी पर भी सरकार के खिलाफ असंतोष फैलाने, नफरत फैलाने से लेकर अवमानना का मामला बना सकती है, सीधी गिरफ्तारी कर सकती है और उस पर कोर्ट में अपील का अधिकार भी नहीं मिलता है। ऐसे में यह कानून अंग्रेजों के कानून से अलग नहीं रह जाता है। सुप्रीम कोर्ट पहले भी कई बार कह चुका है कि सरकार की आलोचना या प्रशासन के खिलाफ टिप्पणी मात्र से राजद्रोह का मुकदमा नहीं बन सकता। माना जा रहा है कि आने वाले वक्त में सरकारों के इन बेजा अधिकारों पर लगाम जरूर कसेगी।

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