क्यों धोनी से जुड़ता है देश
धोनी अपनी मेहनत के बूते जिस मुकाम पर पहुंचे और टीम इंडिया को जिन बुलंदियों पर पहुंचाया, उसके बाद उऩ्होंने भारत के महानतम क्रिकेटरों की फेहरिस्त में अपने लिए स्थान स्थायी रूप से सुरक्षित करवा लिया है।

आर.के.सिन्हा, पूर्व सांसद व टिप्पणीकार
महेन्द्र सिंह धोनी के पिछले 15 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास लेने से देश के करोड़ों क्रिकेट प्रेमी उदास हो गए। धोनी न तो किसी महानगर से आते थे और न ही किसी खास महत्वपूर्ण परिवार से संबंध रखते थे। इसके बावजूद धोनी ने वह सब कुछ पाया जिसकी आमतौर पर इंसान सपने में भी उम्मीद नहीं करता है। उनकी कप्तानी में भारत लगातार क्रिकेट की दुनिया की बुलंदियों पर रहा।
दरअसल, विजय और पराजय दोनों ही मौकों पर किसी साधु की तरह से निर्विकार भाव से रहना-दिखना ही धोनी को बाकी सभी कप्तानों से अलग बनाता रहा। वे विपरीत हालातों में कहीं ज्यादा निखरते रहे । तब भी वे विश्वास से लबरेज दिखाई देते हैं। आपने इस बात को जरूर देखा-महसूस किया होगा कि जब भी उनकी कप्तानी में भारत ने कोई बड़ी चैंपियनशिप जीती तब वे वहां नहीं दिख रहे थे, जहां पर बाकी खिलाड़ी जश्न मना रहे थे। वे वहां पर भी पीछे खड़े दिखाई दिए जब खिलाड़ियों की ग्रुप फोटो खींची जा रही थी। यह धोनी का अपना अलग सा अँदाज रहा। यकीनन भारतीय क्रिकेट प्रेमियों ने जरूर कोई अच्छे कर्म किए होंगे कि उन्हें इतना बेहतरीन कप्तान और बल्लेबाज मिला। धोनी का जीवन वर्तमान गुरूओं और विद्यार्थियों के लिए भी एक आदर्श बना। धोनी में नेतृत्व के अद्भुत गुण देखने को मिलते रहे है। किसी बौद्ध भिक्षु की तरह हमेशा कूल बने रहना और जरूरत पड़ने पर रणभूमि पर अपने विरोधियों पर योद्धा की तरह टूट पड़ना धोनी की खासियत रही।
रांची के एक अति सामान्य परिवार से संबंध रखने वाले धोनी जब पत्रकारों के सवालों के जवाब देते तो समझ आ जाता कि इस शख्स में नैसर्गिक गुणों की भरमार है। अंग्रेजी और हिन्दी में पूरे विश्वास के साथ वे सारे कठिन से कठिन सवालों के जवाब देते हैं। हर सवाल के जवाब नपे-तुले ही होते हैं। उनके व्यक्तित्व का प्रभाव इसी से जानिए कि प्रेस कांफ्रेस में कोई पत्रकार उनसे हल्के सवाल पूछने की हिमाकत तक नहीं करता।
दूसरी तरफ उनकी विनम्रता भी गजब की है। मैंने उन्हें खुद दिल्ली और रांची एयरपोर्ट पर अपने कुछ बुजुर्ग संबंधियों और परिचितों के चरण स्पर्श करते देखा है। वे जितने बड़े सेलिब्रेटी हैं, वे उतने ही संस्कारी भी हैं। मुझे कई बार धोनी के साथ रांची से दिल्ली और मुंबई का हवाई सफर करने का मौका मिला। संयोग से हम दोनों साथ ही बैठे। मैंने महसूस किया कि वे सारी बातचीत के दौरान अति विनम्र रहे। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम मेकॉन के रांची दफ्तर में पंप गार्ड पान सिंह के पुत्र महेन्द्र सिंह धोनी ने मेकॉन के कर्मियो की कॉलोनी के बीच में अपना बचपन गुजारा। पान सिंह जी उत्तराखंड से नौकरी की तलाश में दूर झारखंड की राजधानी रांची आ गए थे। क्रिकेट की दुनिया के शिखर पर जाने और पैसे की बरसात होने के बाद धोनी सपरिवार रांची के पॉश इलाके में हरमू हाउसिंग कॉलोनी में रहते है। वे दिल्ली या मुंबई तो शिफ्ट नहीं हुए। वे कपिल देव की तरह चंडीगढ़ से दिल्ली या विराट कोहली की तरह दिल्ली से और बड़े महानगर मुंबई नहीं गए। इसीलिये तो झारखंड और रांची का अवाम भी आज अपने “माही भइया” पर जान निसार करता है।
कहते हैं कि इंसान के सफलता और संघर्ष के दिनों के मित्र अलग-अलग होते हैं। पर धोनी अपने बचपन और संघर्ष के दौर के मित्रों को कभी भी नहीं भूलते । वे अपने झारखंड के पुराने दोस्तों की हर संभव मदद के लिए भी तैयार रहते हैं। वे उन्हें भी याद रखते हैं जिनसे उन्हें कभी अपमान भी मिला होता है। वे एक दौर में उसी मेकॉन टीम के लिए खेलते थे, जिस कंपनी में उनके पिता जी नौकरी करते थे। वहां से बहुत थोड़ा सा उन्हें मानदेय मिलता था। पर मेकॉन ने उन्हें तब नौकरी देने से इंकार कर दिया। वक्त बदला। धोनी लगातार सफलता के झंडे गाड़ने लगे। उन्होंने भारतीय रेल में टी.टी.ई. की नौकरी शुरू कर दी। फिऱ उसे भी छोड़ दिया। तब मेकॉन की तरफ से उन्हें बड़े पद और मोटी सैलरी पर नौकरी करने की पेशकश हुई। पर धोनी को तो यह याद था वह अपमान जो उन्होंने झेला था। उन्होंने उस पेशकश को विनम्रता से ठुकरा दिया।
सच में कभी-कभी लगता है कि धोनी के लिए ही लिखा गया उर्दू का मशहूर शेर “ हिम्मते मर्द, मददे खुदा”। वे पूरे जज्बे के साथ क्रिकेट के मैदान में उतरते रहे । उनका किस्मत भी साथ देती रही । इसके चलते ही शायद उन्हें लगातार कामयाबी मिलती रही। धोनी ने इस तरह का कारनामा कर दिखाया है, जो दुनिया का कोई कप्तान अब तक नहीं कर पाया था। वह आईसीसी के तीनों टूर्नामेंटों विश्व कप, ट्वेंटी–ट्वेंटी विश्वकप और चैम्पियंस ट्रॉफी को जीतने वाले पहले कप्तान बने।
धोनी ने कभी भी अपने को असुरक्षित महसूस नहीं किया । इसलिए वे रिस्क लेने से कभी पीछे नहीं हटते। जरा 2008 के विश्व कप फाइनल को याद कीजिए। पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल मैच। उन्होंने निर्णायक अंतिम ओवर फेंकने के लिए दिया जोगिंदर शर्मा को। जोगिंदर सिंह ने कमाल ही कर दिया, जब उसने मिस्बाह-उल-हक को आउट किया। धोनी की रणनीति सफल रही और भारत ने पहले टी-20 वर्ल्ड कप को जीता । धोनी ने इस तरह से अनेकों ऐसे फैसले लिए जो पहली नजर में सबको गलत नजर आए। कभी-कभी लगता है कि धोनी उस गीता ज्ञान को अपने जीवन के साथ आत्मसात कर चुके हैं कि ‘कर्म करते जाओ और फल की चिंता मत करो” I अपना कर्म पूरी निष्ठा के साथ करोगे तो फल तो मिलेगा ही I
सबको पता है कि धोनी उस झारखंड से आते हैं, जिस राज्य के क्रिकेट संघ की कोई हैसियत ही नहीं है। उऩका अपना भी कभी कोई गॉडफादर नहीं रहा। इसके बावजूद धोनी जिस मुकाम पर पहुंचे और टीम इंडिया को जिन बुलंदियों पर पहुंचाया, उसके बाद उऩ्होंने भारत के महानतम क्रिकेटरों की फेहरिस्त में अपने लिए स्थान स्थायी रूप से सुरक्षित करवा लिया है।
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