scriptसवाल आत्महत्या क्यों करते हैं, जवाब खोखले रिश्ते और मानसिक दबाव है कारण | Why the suicide, the answer is hollow relationship and mental pressure | Patrika News

सवाल आत्महत्या क्यों करते हैं, जवाब खोखले रिश्ते और मानसिक दबाव है कारण

locationनई दिल्लीPublished: Aug 11, 2020 04:49:40 pm

Submitted by:

shailendra tiwari

पत्रिकायन में मंगलवार को सवाल पूछा गया था कि आखिर क्यों बढ़ रही हैं देश में आत्महत्याएं…हर किसी की अपनी राय थी। पेश हैं पाठकों की चुनिंदा राय

suicide

खुर्सीपार सरपंच पति ने की आत्महत्या, परिजनों ने कहा कार्य को लेकर था मानसिक दबाव …

एक नहीं, अनेक कारण
जिसने जन्म लिया है, उसे एक न एक दिन मृत्यु का भी सामना करना पड़ता है, लेकिन जीवन से ऐसी विरक्ति कि समय से पहले ही मौत को गले लगा लेना सभी को हतप्रभ कर देता है। सब की जुबां पर एक ही प्रश्न होता है कि आखिर उसने ऐसा क्यों किया?
इसके निम्न कारण हो सकते हैं:-
बहुत ही भावुक औऱ सीधा—सादा इंसान छल-कपट और झूठ-पाखण्ड से भरी इस दुनिया में अपने आपको एडजस्ट नहीं कर पाता। दूसरों की बातें उसे अंदर तक चोट पहुंचा देती हैं और वह सोचने लगता है कि नफरत भरी इस दुनिया से चले जाना ही बेहतर है। दूसरा यह है कि व्यक्ति को जब यह लगता है कि वह किसी असाध्य रोग से पीड़ित है, इलाज कराने में बहुत पैसा खर्च हो जाएगा, तो उसके बच्चों के सिर कर्ज का बोझ और चढ़ जाएगा और वह सोचने लगता है कि ऐसे जीवन का क्या फायदा।
तीसरा कुछ लोग शॉर्टकट अपना कर बहुत जल्दी और बहुत सारा पैसा कमाना चाहते हैं और इस फिराक में वे गैर कानूनी काम करने लग जाते हैं और एक दिन ऐसा समय उनके सामने आ जाता है कि मरने के सिवाय उनके सामने कोई विकल्प नहीं बचता।
नवयुवकों में तो यह देखादेखी से एक फैशन सा बन गया है। एकाकीपन और जरा सी उदासी से ही जीवन को समाप्त कर लेने की इच्छा होने लग जाती है। प्रेम में असफलता भी इसकी वज़ह हो सकती है। साथी की बेवफाई उन्हें आत्महत्या की ओर धकेल देती है। साथ ही घरवालों के द्वारा उनके सम्बन्धों को स्वीकार नहीं करने के कारण भी प्रेमी-प्रेमिका दुनिया छोड़ देने का कदम उठा लेते हैं। परीक्षा में अपेक्षित अंक प्राप्त नहीं करने पर भी नवयुवकों में हताशा हो जाती है और जब उन्हें यह लगता है कि वह दौड़ से बाहर हो चुके हैं, तो निराशा में उन्हें आत्महत्या जैसा कदम उठा लेना पड़ता है।
नौकरी-पेशा व्यक्तियों पर काम का बोझ, कार्यकुशलता की कमी, उच्चाधिकारियों द्वारा परेशान किए जाने तथा नौकरी चले जाने का भय भी उन्हें कमजोर कर देता है और वह जीवन को समाप्त कर लेने की सोच बैठते हैं।
इसके अतिरिक्त वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखा जाए, तो आदमी बेहद कठिन दौर से गुजर रहा है। इस दुनिया मे अपने आपको प्रतिस्पर्धा में बनाए रखने के लिए उसे दिन—रात कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, पर इतना कुछ करने के बाद भी उसे वह नही मिल पाता, जो वह प्राप्त करना चाहता है। इससे उसके दिलोदिमाग पर अवसाद हावी हो जाता है और ऐसे में जीवन बोझिल हो जाता है और इंसान इस जीवन से छुटकारा पाने की सोचने लगता है।
जीवन अनमोल है, उसे यूं नही गंवाना चाहिए। एकांत और उदासी में प्रेरक साहित्य पढ़ना चाहिए।
—सुरेन्द्र कुमार मीणा, (प्रधानाचार्य) राउमावि नांगलिया गुर्जरवास, तहसील खेतड़ी, जिला झुंझुनूं


खोखले होते रिश्ते
वर्तमान परिस्थितियों में एक आम आदमी चाह कर भी तनाव व अवसाद से दूर नहीं रह सकता। बढ़ती महत्वकांक्षाएं, पारिवारिक रिश्तों में दूरी, बुजुर्गों के अनुभवों से सीखने के वातावरण का अभाव, ये सभी कारण परोक्ष रूप से हमें अवसाद के गर्त में ले जाते हैं। परिवार के सदस्यों में भावनात्मक संबंधों का अभाव अकेलेपन में आत्महत्या के लिए प्रेरित करते हैं। ऐसे में व्यक्ति की मनोस्थिति को समझना अति आवश्यक है। सम्बंधों में मधुरता के माध्यम से काफी हद तक इस समस्या को दूर करने का प्रयास किया जा सकता है।
—डॉ. अजिता शर्मा,उदयपुर

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मानसिक तनाव
देश भर में आज आत्महत्या की घटनाएं बढती ही जा रही हैं, जो एक चिंता की बात है। आत्महत्या का कोई एक कारण नहीं है, अपितु अनेक कारण हैं। इस समस्या पर गम्भीरता के साथ विचार करके ऐसी घटनाओं की रोकथाम करने पर ध्यान देना होगा। अन्यथा यह नासूर गंभीर होता चला जाएगा और हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रह जाएंगे। आत्महत्या के मूल कारण हैं मानसिक तनाव, आर्थिक संकट, बेरोजगारी, असाध्य रोग, भय, आंतक का माहौल, घरेलू कलह, आक्रोश, असफलता, हताशा, संशय, अनादर आदि – आदि । मनोचिकित्सको से राय लेकर इस नासूर का खात्मा करना होगा।
सुनील कुमार माथुर,जोधपुर
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बेरोजगारी असली समस्या
वर्तमान समय में देश में आत्महत्याएं दिन प्रतिदिन बढ़ रही हैं, जिसके लिए कहीं न कहीं आज के हालात जिम्मेदार हैं। जैसे ही देश में कोरोनो का कहर बढ़ा पूरे देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई। छोटे—मोटे व्यापार धंधे चौपट हो गए। छोटे व्यापारियों का खुद का जीवन—यापन करना मुश्किल हो गया है। ऐसे में वह अपने कर्मचारियों को कैसे और कहां से वेतन दे। ऐसे में देश में बेरोजगारी बढ़ गई है। गरीब आदमी के समक्ष तो पेट भरने की भी समस्या पैदा हो गई है। ऐसी परिस्थिति में कई लोगों ने आत्महत्या की है। सरकार को रोजगार बढ़ाने पर जोर देना होगा।
आशुतोष शर्मा, विद्याधर नगर, जयपुर
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प्रेम प्रसंग भी कारण
देश में आत्महत्या के केस बढ़ते ही जा रहे हैं। किसान तो आत्महत्या कर ही रहे हैं, युवा और धनवान माने जाने वाले लोग भी आत्महत्या कर रहे हैं। युवा बेरोजगारी, प्रेम में विफल होने पर आत्महत्या जैसे कदम उठाने लगे हैं। किसान फसल के नुकसान, अपने ऊपर कर्ज की समस्या से नहीं निकल पाते हैं और आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं। देश के उच्च वर्गीय पदों पर बैठे लोग भी कई बार पारिवारिक समस्याओं की गिरफ्त में आकर अपनी जान गंवा बैठते हैं। यही वजह है कि देश मे आत्महत्या का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है
सियाराम मीना, पिपलिया,बून्दी
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आत्महत्या नहीं, हत्या कहिए
परिवार रिश्तों और मित्रों में अपनापन कम होने के कारण लोग अपनी परेशानियां किसी से शेयर नहीं कर पा रहे हैं। फेसबुक, वॉट्सएप से समस्या का समाधान नहीं मिल पाता। अकेलेपन के कारण व्यक्ति निराश हो रहा है। असल में हर आत्महत्या अपरोक्ष रूप से परिवार और समाज के द्वारा हत्या है। अकेलेपन के कारण आत्महत्याएं दिनों—दिन बढ़ती ही रहेंगी।
दिलीप भाटिया, सेवानिवृत्त परमाणु वैज्ञानिक, राजस्थान परमाणु बिजली घर रावतभाटा, राजस्थान
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खतरनाक है अति महत्वाकांक्षा

अति महत्वाकांक्षा के चलते भी आत्महत्या की घटनाएं होती हैं। अपनी क्षमता और योग्यता से अधिक पाने की चाह व्यक्ति को अवसाद की तरफ ले जाती है। संतुष्ट नहीं होना और ज्यादा से ज्यादा पाने की लालसा की वजह से उसकी मानसिकता कुंठित हो जाती है।
थानसिंह सिनसिनवार, तिलचिवी, भरतपुर
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सहनशक्ति का अभाव
आज के इस दौर में मनुष्य के पास सहनशक्ति नहीं है। वह छोटी-सी बात पर उत्तेजित हो जाता है, चाहे वह बात उसके माता -पिता या घर के किसी सदस्य ने ही कही हो। यदि मनुष्य थोड़ा सा धैर्य व सहनशीलता धारण कर ले, तो उसकी जीवनलीला समाप्त होने से बच सकती है।
हर हालत में मजबूत रखकर जीवन का आनन्द लेना चाहिए।
कमलेश कटारिया, जोधपुर
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बदले परिवेश का परिणाम
भारत वीरों और क्रांतिकारियों की भूमि है। सवाल यह है कि बीते कुछ सालों मे हमारे सामाजिक परिवेश में ऐसे क्या परिवर्तन आए कि हमारे समाज में चुनौतियों से लड़ने की बजाय आत्महत्या की प्रवत्ति मजबूत हो गई? विभिन्न आयु वर्ग द्वारा आत्महत्या करने के भिन्न—भिन्न कारण हैं। बढता तनाव, भौतिकवादी आकर्षण, छात्रों में शिक्षा व उनके भविष्य को लेकर अभिभावकों द्वारा डाला गया दबाव, बेरोजगार युवाओं मे नौकरी संबंधी आदि। इसमें एक मुख्य कारण आज के भौतिकवादी समाज का ‘कर्ज लेकर घी पियो’ की आदत का बढना है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में आत्महत्या के कुल मामलों में से 40 प्रतिशत युवाओं से जुड़े हैं। युवाओं में इस तरह की प्रवृत्ति का एक प्रमुख कारण सोशल मीडिया भी है। इससे युवाओं में मानसिक अस्थिरता, स्नायु विकार, अत्यधिक चिंता उत्पन्न होती है। इस तरह देश के युवाओं का नष्ट होना उस देश के विकास में बहुत बड़ी बाधा हैं। इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए हमें धैर्य बढाना होगा और किसी परिस्थिति से घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उसमें सकारात्मक रवैया अपनाना चाहिए। या कहें आपदा को अवसर में बदलना चाहिए। हमारी मानसिक स्थिति को ‘स्ट्रेस डायरी’ मे नोट करना चाहिए और उसके बारे में परिवार और मित्रों से सलाह लेनी चाहिए।
—लक्ष्यदीप सिंह शक्तावत, हमेरगढ, उदयपुर
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जटिल जीवनशैली
वर्तमान युग प्रतिस्पर्धा का है। तनाव का अतिरेक इंसान को आत्महत्या की तरफ धकेल रहा है। नवयुवकों में जिद बढ़ रही है, वहीं सहनशीलता की कमी भी देखी जा रही है। सामाजिक खर्चो का अत्यधिक होना ओर आधुनिक जीवन शैली का जटिल होना भी इंसान को आत्महत्या की तरफ ले जा रही है।
—अरविंद भंसाली जसोल,बाडमेर
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कर्ज के कारण करते हैं किसान आत्महत्या
भारत में किसान आत्महत्या कर रहे हैं। इसके कई कारण हैं। मुख्य कारणों में से एक देश में अनियमित मौसम की स्थिति है। ग्लोबल वार्मिंग ने देश के अधिकांश हिस्सों में सूखा और बाढ़ जैसी चरम मौसम की स्थिति पैदा की है। ऐसी चरम स्थितियों से फसलों को नुकसान पहुंचता है और किसानों के पास खाने को कुछ नहीं बचता। जब फसल पर्याप्त नहीं होती, तो किसान अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्ज लेने पर मजबूर हो जाते हैं। कर्ज चुकाने में असमर्थ कई किसान आत्महत्या करने का दुर्भाग्यपूर्ण कदम उठाते हैं।
मुकेश कुमार लोहार, कुड़ी, बाड़मेर
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मानसिक अवसाद
देश में लगातार बढ़ रही आत्महत्याएं बहुत ही दुखद एवं चिंताजनक विषय है। युवा वर्ग इच्छित पद प्रतिष्ठा व अपेक्षित परीक्षा परिणाम ना मिलने से मानसिक अवसाद का शिकार हो जाता है। वह अपना मानसिक संतुलन खो कर आत्महत्या जैसा कदम उठा लेता है। इसके अलावा इस भौतिकवादी युग में लोगों की बढ़ती लालसा, बेरोजगारी, गरीबी एवं घरेलू कलह भी आत्महत्या के प्रमुख कारण हैं। हमें समझना होगा यह मानवीय जीवन एक संघर्ष है। सुख-दुख व हार-जीत जीवन का हिस्सा है। व्यक्ति को धैर्य रखते हुए विपरीत परिस्थितियों में भी अपने आप को समायोजित करके सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए।
तेजपाल गुर्जर, हाथीदेह, श्रीमाधोपुर
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सोशल मीडिया भी जिम्मेदार
वर्तमान समय में बदलती जीवनशैली व सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण आत्महत्या की दर निरंतर बढ़ रही है। आम किसान से लेकर बड़े- बड़े स्टार आज टेंशन, डिप्रेशन आदि
के चलते अपनी जीवन लीला समाप्त कर देते हैं। इस आपाधापी के युग में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ भी आत्महत्या का मुख्य कारण है। इससे बचने के लिये जरूरी है कि सर्व प्रथम व्यक्ति अपने जीवन का महत्व समझे।
—रौकन महिया, सादुलपुर, श्रीगंगानगर
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मानसिक अवसाद
बढ़ते भौतिकतावाद, बेरोजगारी, भाग—दौड़ आदि के कारण लोग खासकर युवा वर्ग पहले ही तनाव में हैं। फिर माता-पिता उन पर ऐसी अपेक्षाएं थोप देते हैं, जिन्हें पूरा करना उनकी सीमा से परे होता है। लोग मानसिक अवसाद, सहनशीलता की कमी के चलते जिन्दगी के इतने संकुचित मायने लेने लगे हैं कि उन्हें छोटी-मोटी असफलता पर ही जीवन व्यर्थ और नीरस लगने लगता है। बाजार में जहरीले पदार्थ इतनी आसानी से मिल जाते हैं कि अपरिपक्व लोग जीवनलीला समाप्त करने में ज्यादा समय नहीं लगाते।
– मेघा गोयल, अलवर।
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एकाकी परिवार
आत्महत्या के कई कारण हैं। जैसे महत्वाकांक्षा, रिश्तों की जगह पैसों को ज्यादा महत्व देना,
सहनशीलता व सहनशक्ति में कमी। बड़ों के प्रति आदर भाव में कमी व बड़ों के अनुभव व सलाह को नकारने के कारण भी जीवन में भटकाव आ जाता है। एकाकी परिवार, परिवार व समाज से दूर नौकरी करना भी आदमी में तनाव पैदा करता है। आपसी आचार- विमर्श में कमी व स्वयं की समस्याओं को व्यक्त नहीं करना, लोक दिखावा ज्यादा करने की होड़, बैंकों व फाइनेंस कम्पनियों के कर्ज में दबने से भी लोग आत्महत्या करते हैं। बेरोजगारी की समस्या का सीधा संबंध आत्महत्या से है।
—राधाकिशन,उप कमांडेंट,स्पेशल एक्शन कमांडो फ़ोर्स
कोबरा(सीआरपीएफ़)
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न करें आत्महत्या
जब सहनशक्ति व जीवन की आशा खत्म हो जाए, तो आत्महत्या करने की कोशिश ना करें। पहले अपनी आंखें बंद करके सफेद कपड़े में लपेटी अपनी अर्थी को देखें और देखें कि अपनी मां रो रही है, बच्चे बिलखते हैं, पत्नी बालों को पकड़ कर नोंच रही है।
—टीकूराम जयपाल बूंगड़ी, बीकानेर
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संतुलन का अभाव
देश मे बढ़ती आत्महत्याओं का प्रमुख कारण व्यक्ति का जीवन में आने वाले उतार-चढ़ावों में संतुलन नहीं कर पाना है। वर्तमान महामारी के चलते मानव जीवन कई संघर्षों से गुजर रहा है। ऐसी परिस्थितियों में जीवन में संतुलन बना रखना परम आवश्यक है। आदरणीय कवि नीरज जी ने कहा है कि “कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता।”
—कुमार पवन, उदयपुर
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अवसाद एवं निराशा
अति महत्वाकांक्षा, अपनी व्यक्तिगत सोच एवं विचार के अनुसार जब जीवन में काम नहीं होते तब अवसाद पैदा होता है। फिर व्यक्ति आत्महत्या के लिए कदम उठाता है। उसे ऐसा लगता है कि यह दुख मेरे जीवन में स्थाई रूप से घर कर गया है। जब ऐसे व्यक्ति अपने विचार को अभिव्यक्त नहीं करते। अपनी कमजोरी अपनी असफलता दूसरों के साथ साझा करना नहीं चाहते, उनका अपना स्वाभिमान होता है। इससे आत्महत्या की प्रवृत्ति विकसित होती है। अतः अवसाद एवं निराशा के क्षणों में अपनी दैनिक दिनचर्या से भी अलग होकर चिंतन मनन के लिए समय निकालना चाहिए। इससे आत्महत्या के विचार मन में नहीं आते।
सतीश उपाध्याय,मनेंद्रगढ़, छत्तीसगढ़
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स्वयं को अकेला न समझें

ऐसेकई कारण होते हैं, जिनसे व्यक्ति स्वयं को परेशान महसूस करता है। स्वयं को हीन या अकेला समझ बैठता है। वर्तमान समाज में अधिक महत्वाकांक्षी होना भी इस तरह के विचारों को प्रेरित करता है। हम अपेक्षा करते हैं, उम्मीदें बांधते हैं फिर उनका टूटना सहन नहीं कर पाते। बेहतर है कि आप बात साझा करें, बात करें अपने दोस्तों से, जो आपके करीब हैं उनसे। और हमें भी चाहिए कि जो हमारा मित्र, करीबी हमसे स्वयं के बारे में बात करना चाहता है, परेशानी साझा करना चाहता है, उसकी बात धैर्यपूर्वक सुनें और यथासंभव मदद करने की कोशिश करें।
“जीवन देना क्या है? पूछो उस मां से।
मरने में तो क्या है? पलभर लगता है।।”
-कवि दिव्यांश, कोटा
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घटती आमदनी
पिछले कई वर्षों से भारत में आत्महत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं। किसान बढ़ते कर्ज एवं घटती आय से परेशान होकर,युवा वर्ग शिक्षा के गिरते स्तर एवं बढ़ती बेरोजगारी से परेशान होकर, मध्य वर्ग बढ़ती मंहगाई एवं घटती आमदनी के कारण आत्महत्या कर लेते हैं।
आशीष,सीकर
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बना रहे संवाद
आत्महत्या के कई कारण होते हैं। संवादहीनता, अभिव्यक्ति की कमी और मानसिक रोग के कारण ऐसी घटनाएं ज्यादा हो रही हैं। दुनिया में ज्यादातर लोगों को अपनी भावनाएं प्रदर्शित करने का मौका ही नहीं मिलता। उन्हें प्यार, दुख, खुशी से भी डर लगता है। जोर से हंसना नहीं, मन करे तो बेचारे रो भी नहीं सकते, सभ्यता के विरुद्ध जो है। बच्चा भी अगर जोर से रोए तो डांट कर चुप करा दिया जाता है। इस तरह एक घुटन सी हो जाती है। अगर कोई बेटी ससुराल में सामंजस्य नहीं कर पाती है, तो उसके मायके वाले भी उसको बात कहने से रोकते हैं और इस तरह वह अंदर ही अंदर घुट कर मानसिक रोगों की शिकार हो सकती है। दुख हो या सुख शेयर करने में क्या जाता है, अभिव्यक्ति से जहां सुख बढ़ता है, वहीं दुख घटता है। इसलिए अभिव्यक्त तो करना ही चाहिए। आजकल जो इतनी आत्महत्याओं की घटनाएं बढ़ रही हैं, उसमें भी कहीं ना कहीं भावनाओं की शेयरिंग का अभाव कह सकते हैं। यह सब आधुनिक संस्कृति की देन है। अगर आपकी भावनाओं को पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं मिलती है, तो यह अंदर जाकर आपका बहुत नुकसान कर सकती हैं। अभिव्यक्ति का अर्थ किसी को भी हर्ट करना नहीं, दूसरों की भावनाओं की भी कद्र करनी होगी।
—मनु वाशिष्ठ,कोटा जंक्शन राजस्थान
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निराशावादी सोच का परिणाम

जीवन के प्रति निराशावादी सोच ही अनमोल जिंदगी समाप्त करने के लिए बार—बार प्रेरित करती है। जिंदगी की बढ़ती व्यस्तताओं और कार्य के मानसिक दबाव के कारण अवसाद युक्त जीवन ही निराशा का मूल कारण है। मनुष्य के मन में जीवन की विफलताओं की वजह से नकारात्मक विचार पैदा होने लगते हैं। जो समय के साथ मजबूत होते है और आत्महत्या को प्रेरित करते है;
—पवन पाराशर, जयंती नगर, भरतपुर
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शिक्षा प्रणाली जिम्मेदार
आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि के लिए सीधे तौर पर देश की शिक्षा प्रणाली भी जिम्मेदार है। व्यक्ति जिस प्रकार की शिक्षा प्राप्त करता है, उसी अनुसार जीवन में आगे चलकर हर एक परिस्थिति के प्रति अपनी प्रतिक्रिया देता है तथा व्यवहार भी करता है। जीवन में व्यक्ति के सामने परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं और वह उन परिस्थितियों को संतुलित नहीं कर पाता।
गोविंद राम, जालोर
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