माइनिंग शब्द का जिक्र होते ही जेहन में महंगी धातुओं के खनन की तस्वीर सामने आती है। अरबन माइनिंग (शहरी खनन) परंपरागत माइनिंग से ठीक उलट है। जापान की तोहुकू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हिडियो नांज्यो ने पहली बार 1980 में इस शब्द का प्रयोग किया। इसमें कोयले, लौह अयस्क या बॉक्साइट के खनन जैसी गतिविधि नहीं होती बल्कि इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं से पैदा वेस्ट से महंगे खनिज और धातुएं निकाली जाती हैं। इस व्यवस्था में ई-कबाड़ का ढेर दुर्लभ खनिज का स्रोत साबित होता है, जिन्हें शहरी खदान या अरबन माइंस कहते हैं।
2018 के इकोनॉमिक सर्वे के मुताबिक शहरी ई-वेस्ट से 6,900 करोड़ रुपए का सोना हासिल किया जा सकता है। लिथियम, कोबाल्ट, कॉपर, एलुमिनियम, सिल्वर और पैलेडियम जैसी महंगी धातुओं के लिए इलेक्ट्रॉनिक कबाड़ अच्छा स्रोत है। यूएस इनवायरनमेंट प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) की रिपोर्ट कहती है कि एक मीट्रिक टन मोबाइल से 300 ग्राम सोना निकाल सकते हैं। परंपरागत खनन में सोने के अयस्क से प्रति टन महज दो या तीन ग्राम सोना ही मिलता है। अरबन माइनिंग की यह व्यवस्था किसी सामान के दोबारा उपयोग और रिसाइकलिंग को बढ़ावा देती है। इससे नए संसाधनों पर दबाव कम होगा और कच्चे माल की कमी पूरी होगी। इसे बढ़ावा देकर हम परंपरागत खनन में लगने वाली लागत, पर्यावरणीय नुकसान और वर्कफोर्स के संकट को दूर कर सकते हैं।
2015 में हुए पेरिस समझौते को लागू करने के दौरान अगले बीस साल में धरती के नीचे छिपे खनिजों की मांग चार गुना अधिक होगी। ट्रांसमिशन लाइन बिछाने के लिए कॉपर और ई-वाहनों में लिथियम, सोलर पैनल में सिलिकॉन और विंड टरबाइन के लिए जिंक की मांग पूरी करना बड़ी चुनौती है। अरबन माइनिंग के जरिए हम इन महंगी धातुओं को दोबारा उपयोग में ला सकते हैं। वैसे संसाधनों के बेहतर उपयोग में भारतीयों का दुनिया में कोई सानी नहीं। हमारे लिए जुगाड़ टेक्नोलॉजी सिर्फ सोशल मीडिया के मीम्स नहीं हैं। पुरानी वस्तुओं से नए सामान बनाकर उन्हें उपयोग में लेने की ‘सर्कुलर इकोनॉमी’ के सैकड़ों देसी उपाय हमारे घरों में मिल जाएंगे। जरूरत रिसोर्स मैनेजमेंट को लेकर विरासत से मिले ज्ञान को संस्थागत रूप देने की है। पिछले साल पर्यावरण मंत्रालय द्वारा न्यू बैटरी वेस्ट मैनेजमेंट रुल्स 2022 लागू किया गया है। इसमें प्रॉड्यूसर, डीलर और कंज्यूमर की जिम्मेदारी तय की गई है। पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की निगरानी में ईपीआर (एक्सटेंडेड प्रॉड्यूसर रिस्पॉसिबिलिटी) का तंत्र खड़ा किया जा रहा है। इससे कंपनियां कितनी बैटरी तैयार कर रही हैं, रिसाइकलिंग अनुपात क्या है, जैसी जानकारी मिलती है।
बैटरी वेस्ट मैनेजमेंट के नए नियम अरबन माइनिंग को बढ़ावा देंगे, पर इसके लिए हमें कुछ अहम कदम उठाने होंगे। पहला, ई-वेस्ट एकत्र करने की व्यवस्था मजबूत हो। उपयोग में नहीं लाए जा रहे इलेक्ट्रॉनिक साजो सामान को कहां और कैसे सौंपे, इसकी जानकारी सर्वसुलभ हो। दूसरा, हमें ऐसी तकनीक हासिल करनी होगी जो पुरानी वस्तुओं से महंगी धातुएं आसानी से निकाल सके। तीसरा, जरूरी नहीं पुरानी वस्तुओं से हासिल धातुओं की क्वालिटी पहले जैसी हो। ऐसे में इन मिनरल और मेटल को दोबारा कैसे और कहां उपयोग में लाया जाए, इसके विकल्प तैयार करने होंगे। चौथा, प्रोजेक्ट डिजाइनिंग ऐसे की जाए कि उसमें इस्तेमाल खनिज और महंगे एलिमेंट को रिकवर और रीयूज किया जा सके। अंत में कंस्ट्रक्शन से लेकर हर उस क्षेत्र को अरबन माइनिंग के दायरे में लाया जाए, जहां वेस्ट से वेल्थ क्रिएशन के अवसर मौजूद हैं।