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क्या किसानों को मिलेगा वाजिब हक?

Published: Mar 09, 2017 03:52:00 pm

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इस वजह से भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को भंडारण के लिए जगह की कमी महसूस नहीं हुई थी। ऐसी स्थिति में इस साल खरीदे हुए अनाज को रखने के लिए अतिरिक्त स्थान की जरूरत पड़ेगी।

केंद्रीय खाद्य, आपूर्ति एवं उपभोक्ता मंत्रालय ने कहा है कि अप्रेल से शुरू होने वाले गेहूं खरीद सत्र में सरकार ने 3.3 करोड़ टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा है। यह वर्ष 2016 में की गई 2.29 करोड़ टन खरीद से करीब 33 फीसदी अधिक है। सरकार ने गेहूं खरीद का लक्ष्य करीब 1 करोड़ टन बढ़ा दिया है। 
दरअसल सरकार का अनुमान है कि वर्ष 2016-17 के फसल सत्र में गेहूं की पैदावार अच्छी रहेगी। कृषि मंत्रालय ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि इस बार गेहूं की पैदावार 9.66 करोड़ टन रह सकती है। पिछले दो वर्षों में तो गेहूं पैदावार कम रहने से सरकारी खरीद में भी कम ही रही थी। 
इस वजह से भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को भंडारण के लिए जगह की कमी महसूस नहीं हुई थी। ऐसी स्थिति में इस साल खरीदे हुए अनाज को रखने के लिए अतिरिक्त स्थान की जरूरत पड़ेगी। हालांकि गेहूं खरीद का यह लक्ष्य पूरे साल के लिए रखा गया है लेकिन इसमें से बहुत बड़ा हिस्सा अप्रेल-जून की तिमाही के दौरान ही खरीद लिया जाएगा। 
एफसीआई को पिछले दो वर्षों में गेहूं के भंडारण की समस्या का सामना नहीं करना पड़ा था लेकिन इस बार गेहूं की अपेक्षाकृत बेहतर पैदावार और उसकी सरकारी खरीद बढऩे पर निगम के सामने अनाज के भंडारण का गंभीर मसला खड़ा हो सकता है। 
भंडारण लक्ष्य से तात्पर्य अकसर यह समझा जाता है कि सरकार तय सीमा से अधिक मात्रा में अनाज नहीं खरीदेगी लेकिन ऐसा नहीं है। जैसे इस वर्ष सरकार ने 3.3 करोड़ टन गेहूं खरीद का लक्ष्य रखा है तो इससे ज्यादा सरकार गेहूं नहीं खरीदेगी। यदि किसान बेचना चाहेंगे तो सरकार को इससे ज्यादा मात्रा में गेहूं खरीदना पड़ेगा। लेकिन, सरकार अपना तय लक्ष्य पूरा करने के लिए किसान को अनाज बेचने के लिए मजबूर नहीं कर सकती है। 
किसानों को यदि बाजार में अधिक भाव मिल रहा है तो वे बाजार में अपनी उपज बेचने को स्वतंत्र हैं। देश में 1990 के दशक तक ऐसा होता था कि यदि सरकार का अनाज खरीद का लक्ष्य पूरा हो गया तो वह उसके बाद अनाज खरीदना बंद कर देती थी। इससे किसान को कम कीमत पर भी मजबूरन अनाज बाजार बेचना पड़ता था और नुकसान उठाना पड़ता था। 
बाद में सरकार ने अपनी नीति बदली कि तय सीमा की खरीद के बाद भी यदि कोई किसान अपनी उपज बेचता है तो सरकार उसे खरीदेगी। इस बार गेहूं पैदावार बढऩे से उसकी खरीद की सीमा बढ़ाई गई है। गेहूं खरीद की सीमा बढ़ाने के पीछे सरकार की यह सोच हो सकती है कि बढ़े उत्पादन की वजह से किसानों को किसी प्रकार का नुकसान न उठाना पड़े। 
उनकी बढ़ी उपज का उचित मूल्य मिले इसलिए भी खरीद का लक्ष्य बढ़ाया जा सकता है। खरीद सीमा बढ़ाकर सरकारी खरीद से जुड़ी सरकारी एजेंसियों को एक तरह से यह संकेत दिया जाता है कि वे इस मात्रा तक खरीद करने के लिए जरूरी तैयारियां पूरी कर लें। 
चूंकि पिछले दो वर्षों में गेहूं पैदावार कम हुई तो सरकार ने घटी पैदावार की पूर्ति करने एवं खाद्य महंगाई को नियंत्रण में लाने के लिए गेहूं आयात किया। इसके लिए सरकार ने गेहूं आयात पर शुल्क हटा लिया और उत्पाद शुल्क शून्य कर दिया। इसलिए, जब सरकार ने खरीद लक्ष्य बढ़ाया तो अनाज के कारोबार से जुड़े कई लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि सरकार की एजेंसियों के पास खरीद सीमा के बढ़े एक करोड़ टन गेहूं के भंडारण की पर्याप्त सुविधा नहीं है। 
इस बढ़ाए गए एक करोड़ टन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए 30 लाख टन तक गेहूं आयात किया जा सकता है। यह निजी कंपनियों के द्वारा भ्रम फैलाने की कोशिश से ज्यादा और कुछ नहीं है। इनकी कोशिश यह है कि ऐसी भ्रम की स्थिति में उन्हें सस्ती दरों पर गेहूं मिल जाए। 
बहरहाल यह सच है कि पिछले कुछ वर्षों में अनाज की खरीद करने वाली सरकारी एजेंसियों ने अपनी भंडारण क्षमता में काफी सुधार किया है। केंद्र और राज्य सरकारों की खरीद एजेंसियों की कुल भंडारण क्षमता छह वर्षों में एक तिहाई बढ़कर 8.14 करोड़ टन हो गई है। 
इनके अलावा केंद्रीय भंडारण निगम, राज्य भंडारण निगम और निजी निवेशकों ने भी 1.33 करोड़ टन भंडारण की क्षमता का निर्माण किया है। एफसीआई ने इसमें से 1.24 करोड़ टन क्षमता वाले गोदामों का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया है। वैसे इस साल भी निजी गोदामों की जरूरत तभी पड़ेगी जब बड़ी बहुराष्ट्रीय अनाज कंपनियों की तरफ से किसानों की दी जाने वाली कीमतें सरकारी मूल्य से कम होंगी। 
यदि इन कंपनियों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से अधिक भाव दिया तो सरकारी एजेंसियों को गोदामों की जरूरत कम रहेगी। दरअसल अभी फसल निकलने के समय भावों में ज्यादा बढ़ोतरी नहीं होती है। गेहूं के भावों में बढ़ोतरी अकसर जनवरी-फरवरी के समय होती है। इसलिए निजी कंपनियां का भी अभी खरीद पर जोर ज्यादा बना रहता है। 
न्यूनतम समर्थन मूल्य से बाजार भाव अधिक रहना किसानों के लिए फायदेमंद रहता है और उन्हें अपनी फसल बेचने में भी आसानी रहती है। ऐसी स्थिति किसानों के लिए भी फायदेमंद होती है। उन्हें अपनी फसल का सही मूल्य मिल सकता है जिसके वे हकदार हैं।
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