scriptWill have to be alert in Ladakh due to Chinese plans | चीनी मंसूबों के चलते लद्दाख में रहना होगा सतर्क | Patrika News

चीनी मंसूबों के चलते लद्दाख में रहना होगा सतर्क

Published: Mar 29, 2023 09:52:00 pm

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Patrika Desk

दोनों देशों के बीच 1993, 1996, 2005, 2012 और 2013 में द्विपक्षीय 'शांति और शांति बहाली समझौते ' हो चुके हैं, लेकिन जमीनी वास्तविकता पचास के दशक जैसी ही बनी हुई है। ऑफिसर्स मेस में यह सवाल अक्सर सुनाई पड़ता है, 'चीन अगला हमला अब कहां करेगा? '

चीनी मंसूबों के चलते लद्दाख में रहना होगा सतर्क
चीनी मंसूबों के चलते लद्दाख में रहना होगा सतर्क
सुधाकर जी
रक्षा विशेषज्ञ, भारतीय
सेना में मेजर
जनरल रह चुके हैं

भारत-चीन ने हाल ही एलएसी की स्थिति की समीक्षा करने के लिए एक अन्य कूटनीतिक वार्ता की तथा संघर्ष के शेष इलाकों से पीछे हटने के प्रस्तावों पर 'खुले और रचनात्मक ' तरीके से चर्चा की। इसके बावजूद प्रमुख टकराव वाले स्थान डेमचोक और डेपसांग पर गतिरोध बरकरार है। दोनों देशों के बीच 1993, 1996, 2005, 2012 और 2013 में द्विपक्षीय 'शांति और शांति बहाली समझौते ' हो चुके हैं, लेकिन जमीनी वास्तविकता पचास के दशक जैसी ही बनी हुई है। ऑफिसर्स मेस में यह सवाल अक्सर सुनाई पड़ता है, 'चीन अगला हमला अब कहां करेगा? '
राष्ट्र्रपति शी जिनपिंग ने देंग शियाओ पिंग के उस सिद्धान्त से किनारा कर लिया है कि लो प्रोफाइल में रहें, समय व्यतीत करें, साथ ही प्रगति और विकास करते रहें। इसके विपरीत वह आक्रामक रूप से अपनी वैश्विक महत्त्वाकांक्षाओं को अपना रहे हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि डेपसांग (2013), चुमार (2014), डेमचोक (2014-15), डेपसांग (2015), डोकलाम (2017), पैंगोंग त्सो झील (2019) में तनाव बढऩे और सैनिकों के आमने-सामने आने की घटनाएं हुईं। 2020 में चीन ने सभी प्रोटोकॉल और समझौतों का घोर उल्लंघन करते हुए गलवान घाटी में दुस्साहस किया। इस बीच कैलास रेंज पर कब्जा करने के लिए उठाए गए भारतीय सेनाओं के रणनीतिक कदम से चीन हैरान रह गया। शांति वार्ता और सेनाओं के हटाने की प्रक्रिया शुरू हुई। दिसम्बर २०22 में तवांग के निकट यांग्त्से में यथास्थिति को बदलने की चीनी सेना की कोशिशें ड्रैगन का एक कुत्सित इरादा लिए हुए थी। मौजूदा वक्त में पूर्वी लद्दाख में काराकोरम दर्रे से लेकर चुमार तक 65 पेट्रोलिंग पॉइंट (पीपी) प्रचलन में हैं। ये पॉइंट 1996 से चीन स्टडी ग्रुप के दिशानिर्देशों के आधार पर बने हैं। इन पेट्रोलिंग पॉइंट्स पर नियमित पेट्रोलिंग भारतीय सुरक्षा बल करते हैं। कुछ पॉइंट्स पर भारतीय बलों को कड़ी निगरानी रखनी चाहिए, जबकि शांति-वार्ताओं में चीनी राजनयिक अपने शब्दजाल बुनने की कोशिश करेंगे।
पूर्वी लद्दाख में भारत की हवाईपट्टी दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) से लगभग 18 किमी उत्तर में 5,540 मीटर की ऊंचाई पर काराकोरम दर्रा स्थित है। भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण मानी जानी वाली दारबुक-श्योक-डीबीओ (डीएस-डीबीओ) 256 किमी लम्बी सड़क को चीन अपने लिए खतरा मानता है। भविष्य में यह पहाड़ी मैदान भारतीय वायुसेना की सप्लाई के लिहाज से अच्छी लोकेशन है। हालांकि, काराकोरम दर्रा अच्छी तरह परिभाषित और दोनों देशों द्वारा स्वीकृत है, फिर भी पूर्णतया छिपकर और धोखे से पीपल्स लिबरेशन आर्मी यहां स्थिति बिगाड़ सकती है। भारतीय सीमा क्षेत्र के पीपी 10, 11, 11ए, 12 और 13 तक भारतीय सैनिकों की पेट्रोलिंग में पहुंच में लगातार चीनी सैनिक बाधा डालते हैं। डेपसांग में चीनी घुसपैठ लगभग 952 वर्ग किमी के भारतीय क्षेत्र पर हावी है। वैसे तो वार्ताओं के क्रम में सैनिक पीछे हटे हैं, फिर भी पीएलए भारत की प्रतिक्रिया की तुलना में मौजूदा स्थान पर फिर कब्जा करने में सक्षम होगी। सड़क नेटवर्क के कारण चीन सेना के लिए लाभ की स्थिति है। अगस्त 2020 में भारतीय सेना ने कैलास रेंज पर कब्जा कर लिया था। कैलास रेंज पर भारत की स्थिति से चीनी खतरा महसूस करते हैं और काउंटर चौकियां बनाने की कोशिशें कर सकते हैं। भारत को त्वरित गति से क्षेत्र में सर्विलांस क्षमताएं बढ़ाने की जरूरत है। इसी तरह डेमचेले चांग ला पर स्थित है, पर चीन ने अपने बुनियादी ढांचे को उन्नत किया है और पीएलए के बलों की मौजूदगी बढ़ी है। यह क्षेत्र भारतीय अधिकारियों के लिए गहरी चिंता का मुद्दा है। कैलास रेंज में भारत की कार्रवाई के बाद चीनियों ने मल्दो-रुडोक को दमचेले-शिक्वान्हे राजमार्ग से जोडऩे वाली एक सड़क का निर्माण किया है। इसके अलावा, पीएलए पारंपरिक चरागाहों के होने से इनकार करता रहा है। साथ ही पूर्व में भारतीय चरवाहों द्वारा निर्मित चरागाह बाड़ों को तोड़ा है। डेमचोक सेक्टर तिब्बत-झिनझियांग हाईवे जी-219 के नजदीक है। यह क्षेत्र एक संभावित फ्लैश पॉइंट है, जिसके बारे में भारत को चिंतित होना चाहिए। लद्दाख में विवादित डेमचोक सेक्टर चीन और भारत के बीच वास्तविक सीमा के रूप में है। यह क्षेत्र बकरियों, याक और अन्य पशुओं के लिए प्राकृतिक चरागाह है। चीनी भारतीय क्षेत्र वाले उत्तर में निलुंग टॉप से निकलने वाले चार्डिंग नाला और निलुंग नाला के बीच लगभग 150 वर्ग किमी के इलाके पर दावा करते हैं। निकट भविष्य में यह क्षेत्र चीनी कार्रवाइयों के प्रति संवेदनशील बना रहेगा। चुमार के पीपी 62-63 का इलाका चेपजी में भारत की तुलना में चीन के ज्यादा निकट है।
नौकरशाही की निष्क्रियता, नागरिक और सैन्य प्रतिष्ठानों के बीच समन्वय की कमी, बजटीय सीमाएं और हथियार खरीद नीति आदि ऐसी शाश्वत कमियां हैं, जिन पर भावनात्मक दृष्टिकोण के साथ तत्काल ध्यान देना और निवारक क्षमताएं हासिल करना जरूरी है। भले ही, हाल के वर्षों में दृष्टिकोण बदला हो, सतर्क रहना जरूरी है।
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