गंभीर समस्या का इलाज अगर उतनी ही गंभीरता के साथ नहीं किया जाए तो समस्या का समाधान कभी निकल
गंभीर समस्या का इलाज अगर उतनी ही गंभीरता के साथ नहीं किया जाए तो समस्या का समाधान कभी निकल ही नहीं सकता। प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी एक बार फिर अपने सांसदों से नाराज दिखे। कारण वही पुराना था। सांसद संसद में आते तो हैं लेकिन हाजिरी लगाकर निकल जाते हैं। पीछे से लोकसभाध्यक्ष और राज्यसभा सभापति कोरम के लिए घंटी बजाते नजर आते हैं। संसद को चलाने की जिम्मेदारी सत्ता पक्ष पर होती है।
इसलिए प्रधानमंत्री के नाते मोदी की चिंता लाजिमी लगती है। लेकिन सब जानते हैं कि चिंता से कुछ होने वाला नहीं। मोदी से पहले मनमोहन सिंह और उससे पहले
अटल बिहारी वाजपेयी और न जाने कितने प्रधानमंत्री और संसदीय कार्यमंत्री ऐसी ही चिंता जता चुके हैं। लेकिन लगता है कि प्रधानमंत्री की बात सांसद एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल देते हैं। सीधे शब्दों में कहा जाए तो भाजपा सांसद प्रधानमंत्री की बात को तवज्जो नहीं देते। मोदी ने सही कहा कि संसद सत्र सांसदों के लिए होता है।
सांसदों यानी देश की उस जनता के लिए जिसका प्रतिनिधित्व वे करते हैं। सालों से हालत यही है कि संसद को सांसद ही गंभीरता से नहीं ले रहे। ऐसा नहीं कि इस समस्या का इलाज नहीं है। इलाज है लेकिन उसके लिए 56 इंच का सीना चाहिए। आज की तारीख में भाजपा में मोदी का कहा ‘ब्रह्मवाक्यÓ बन गया है। मोदी बनाएं अपने उन सांसदों की सूची जो संसद को गंभीरता से नहीं लेते। और कर दें घोषणा, ऐसे सांसदों को आगे से टिकट नहीं देने की।
जो काम उनकी दस चेतावनियां नहीं कर पाई होंगी, ये एक घोषणा कर सकती है। अकेले भाजपा ही नहीं दूसरे दलों के सांसदों के सुधरने की भी गारंटी ली जा सकती है। संसद की गरिमा को बनाए रखना है तो सख्त चेतावनी की जगह कड़ा फैसला लेकर दिखाना होगा।
मोदी सरकार इन दिनों वैसे भी ‘बड़े फैसले और कड़े फैसलेÓ लेने को लेकर ‘चर्चाÓ में है। एक बड़ा और कड़ा फैसला और सही। ऐसा फैसला दशकों तक याद भी रखा जाएगा और संसद की सेहत भी सुधर जाएगी। बार-बार ये कहने की नौबत क्यों पड़े कि संसद होती ही सांसदों के लिए है। क्या सांसदों को संसदीय कार्य की जानकारी नहीं? या उन्हें अपने उत्तरदायित्व का बोध नहीं? संसद 134 करोड़ देशवासियों की उम्मीदों का केन्द्र है और सांसदों को उसी अनुरूप कार्य करना चाहिए।